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‘आप’ का सुंदर कांड: काम वाली राजनीति से हनुमान वाली राजनीति तक

<p>दिल्ली चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद फिर आम आदमी पार्टी को हनुमान याद आए हैं. लेकिन इस बार हनुमान को याद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नहीं किया, बल्कि पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने किया है. </p><p>सौरभ भारद्वाज ने ट्विटर पर लिखा, &quot;हर महीने के पहले मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ […]

<p>दिल्ली चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद फिर आम आदमी पार्टी को हनुमान याद आए हैं. लेकिन इस बार हनुमान को याद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नहीं किया, बल्कि पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने किया है. </p><p>सौरभ भारद्वाज ने ट्विटर पर लिखा, &quot;हर महीने के पहले मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ अलग अलग इलाकों में किया जाएगा. इसकी शुरूआत 18 फरवरी यानी मंगलवार शाम से ही हो रही है.&quot;</p><p>समाचार एजेंसी एएनआई को दिए बयान में उन्होंने कहा, &quot;इस चुनाव में हमारे ऊपर बहुत संकट आए, जब जब हमारे ऊपर और दिल्ली की जनता के ऊपर संकट आए, संकट मोचन की तरह हनुमान जी ने हमें बाहर निकाला.&quot; </p><p>अपने एलान पर जनता की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, &quot;जब से मैनें ऐसे पाठ का एलान किया है मेरे पास कई फोन आए बुकिंग के लिए. दिसंबर तक हर महीने किस इलाके में पाठ होगा उसकी बुकिंग आ गई है. हमें आरडब्लूए के रूप में स्पॉन्सर भी मिल गए हैं.&quot;</p><p>उन्होंने आगे कहा, &quot;हनुमान जी ऐसे भगवान है जो ग़रीबों के भी हैं और अमीरों के भी हैं. महिलाओं के अंदर पॉपुलर हैं, बच्चों में भी. गड़बड़ लोगों को दूर रखने के लिए, भूतों को दूर रखने के लिए हनुमान जी बहुत बड़ी फोर्स हैं हमारे लिए.&quot; </p><p><a href="https://twitter.com/Saurabh_MLAgk/status/1229672801713262594">https://twitter.com/Saurabh_MLAgk/status/1229672801713262594</a></p><p>हालांकि सौरभ के ट्वीट में ये स्पष्ट नहीं है कि सुंदर कांड का आयोजन कौन करा रहा है. न तो उनके ट्वीट और न ही उनके बयान से साफ है कि ये पाठ पार्टी करवा रही है या फिर एमएलए के तौर पर करवा रहे हैं या फिर राज्य सरकार की तरफ से इसका आयोजन किया जाएगा. </p><h1>आम आदमी पाटी को कब-कब हनुमान याद आए</h1><p>वैसे ये पहला मौका नहीं है जब आम आदमी पार्टी को हनुमान का नाम याद आया हो. </p><p>लेकिन इतना ज़रूर है कि मीडिया के सामने इनका हनुमान प्रेम बहुत ज्यादा पुराना नहीं है. दिल्ली चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में पहले उन्होंने निजी चैनल के इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल ने हनुमान चालीसा पढ़ा और उसके बाद चुनाव प्रचार ख़त्म होते ही हनुमान मंदिर जा कर सपरिवार दर्शन किया. </p><p>केजरीवाल के बाद अब पार्टी के दूसरे कार्यकर्ता और विधायक उनकी राह पर चल चुके हैं. सौरभ के ट्वीट के ये बात स्पष्ट हो जाती है. </p><p>11 फरवरी को जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ने जो भाषण दिया था, उसमें भी उन्होंने कहा था कि ये जीत हनुमान जी ने दिलाई है. </p><p>केजरीवाल शपथ ग्रहण वाले दिन भी माथे पर तिलक लगा कर शपथ ग्रहण करने रामलीला मैदान पंहुचे थे. </p><p>इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने जब दो बार शपथ लिया था, तब वो तिलक लगा कर मंच पर नहीं दिखे थे. </p><p>पहली बार जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने तो उनके पार्टी दफ्तर से चंद कदम की दूरी पर था दिल्ली के कनॉट प्लेस वाला हनुमान मंदिर. अरविंद उस वक़्त न तो जीत के बाद मंदिर गए थे न ही भाषण में हनुमान का जिक्र किया था. दूसरी बार जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने ऐतिहासिक 70 में से 67 सीट जीती थी, तब आम आदमी पार्टी का दफ्तर दिल्ली के पटेल नगर में था. वहां से लगभग कुछ किलोमीटर की दूरी पर था, दिल्ली का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर. मीडिया के कैमरों के बीच वो उस प्रचंड जीत के बाद भी हनुमान मंदिर नहीं गए थे. इस बार आम आदमी पार्टी का दफ्तर आईटीओ के पास राऊज़ एवेन्यू पर है, जहां से मंदिर की दूरी भी ठीक ठाक है. लेकिन इस बार चुनाव प्रचार के बाद भी वो हनुमान मंदिर गए और जीत के बाद भी.</p><h2>आम आदमी पार्टी के इस नए स्वरूप पर पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का नज़रिया</h2><p>ये बहुत ही रोचक बात है. जिस दिन चुनाव प्रचार में उन्होंने हनुमान चालीसा का पाठ किया तब लगा था कि उन्होंने बहुत ही भक्ति भाव से पाठ किया. उसी वक्त एक अंदाजा हो गया था कि आम आदमी पार्टी भक्तिभाव से हिंदू बनने का प्रयास करेगी. और लगता है आज इसकी शुरूआत हो गई है. </p><p>भारतीय जनता पार्टी के रास्ते को आम आदमी पार्टी ने एक नए रूप में अपनाया है.</p><p>आम आदमी पार्टी फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के पहले कार्यकाल वाली राह पर चल रही है. जिस तरह से भाजपा के पहले कार्यकाल में घोषणापत्र में राम मंदिर का जिक्र थोड़ा शब्दों में था और दूसरा कार्यकाल आते ही वो उस मुद्दे को पूरी तरह भुनाने लगे. उसी रास्ते पर आम आदमी पार्टी भी चलती नज़र आ रही है. </p><h1>अन्ना आंदोलन और केजरीवाल</h1><p>आम आदमी पार्टी जब पार्टी नहीं बनी थी और अन्ना के नेतृत्व में जब शुरुआती दौर में केवल आंदोलन चल रहा था, तब भी केजरीवाल के मंच पर भारत माता की तस्वीर होती थी और ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ नारों से उनके भाषणों की शुरूआत होती थी. </p><p>लेकिन उस वक्त एक दूसरी भारतीय जनता पार्टी तो बन नहीं सकती थी. इसलिए बाद में खुद को उन्होंने थोड़ा बदला. आरोप तो तब ये भी लगे थे कि इस पार्टी को खड़ा करने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी हाथ था. </p><p>लोग आज भले ही केजरीवाल के इस चेहरे को देख कर आश्चर्य कर रहे हों. लेकिन ये बदलाव अचानक से आया बदलाव नहीं है. जो अंदर होता है वो धीरे धीरे बाहर आएगा ही. भारतीय संस्कृति से जुड़ाव होना अलग बात है लेकिन भाजपा के हिंदुत्व की काट के तौर पर खुद को पेश करना अलग बात है. भाजपा के हिंदुत्व में एक नफ़रत की बू भी आती है. </p><figure> <img alt="अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल" src="https://c.files.bbci.co.uk/178C6/production/_110945469_4475ce39-3cd1-4e24-93fc-47587c0c3cf2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>आम आदमी पार्टी को हनुमान क्यों याद आए ?</h1><p>बनारस में नरेंद्र मोदी के सामने जब अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ने गए थे तो भी उन्होंने गंगा में स्नान किया था. डुबकी लगाई, ध्यान किया. </p><p>इसलिए इसे हम आदमी पार्टी के ‘विकास’ के तौर पर देखें. ये एक नया ज्ञान है जो उन्हें अब दिखाई पड़ा है. </p><p>केजरीवाल को मुसलमान वोट भाजपा विरोध की वजह से तो मिलना ही था. उनको ये बात पता है कि मुसलमान एकमुश्त वोटिंग करते हैं. तो उन्हें चुनाव में हिंदू वोट की चिंता थी. इस तरीके से उन्होंने हिंदुओ के बीच एक पैठ बनाने की कोशिश की. </p><p>धीरे धीरे ये अपने आप को बदलना चाहते है. ये प्रयास सतत है. पिछली सरकार में अरविंद केजरीवाल ने बुजुर्गों के लिए मुफ्त तीर्थ योजना की भी शुरूआत की थी. तो हिदुओं से राजनीतिक लाभ उठाने की चेष्ठा तो वो पहले से कर ही रहे हैं. </p><p>सुंदर कांड के पाठ को इनके हिंदुओं को लुभाने की योजना के विस्तार के तौर पर देखना चाहिए. इस छवि को छह छह महीने में बदलने की कोशिश भी वो करते दिखेंगे. इसलिए इस घोषणा पर मुझे आश्चर्य नहीं है. </p><p>हां, इतना जरूर है कि इस प्रकार की नाटकीयता के साथ वो काम वाली राजनीति को भी साथ लेकर चलेंगे. उनको पता है कि उनके वोटर ज्यादातर शहरी है, तो वो काम वाली राजनीति को छोड़ना भी नहीं चाहेंगे. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a 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