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कोरोना कहीं जैविक हथियार तो नहीं? रूस, अमेरिका समेत कई देशों ने इसे बताया चीन के जैविक युद्ध की तैयारी का हिस्सा

चीन सहित 27 देशों में कोरोना नाम के जिस वायरस ने आतंक मचाया हुआ है, उसे वुहान स्थित वायरस प्रयोगशाला पी-4 में तैयार किये जाने की वैज्ञानिकों ने आशंका जतायी है. इस्राइल के एक जैविक हथियार विश्लेषक और इस्राइली सेना के पूर्व खुफिया अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल डैनी सोहम ने बताया कि वुहान में जैविक हथियार […]

चीन सहित 27 देशों में कोरोना नाम के जिस वायरस ने आतंक मचाया हुआ है, उसे वुहान स्थित वायरस प्रयोगशाला पी-4 में तैयार किये जाने की वैज्ञानिकों ने आशंका जतायी है.
इस्राइल के एक जैविक हथियार विश्लेषक और इस्राइली सेना के पूर्व खुफिया अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल डैनी सोहम ने बताया कि वुहान में जैविक हथियार तैयार करने की गोपनीय परियोजना है, जहां चीन ने जैविक हथियार को लेकर काफी काम किया है. सोहम ने दावा किया कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी चीन के जैविक हथियार का केंद्र है.
यहां मारक विषाणुओं पर काफी काम होता है. यह संस्थान चीन की सेना के लिए जैव युद्ध कार्यक्रम में भी योगदान करता है. यह विषाणु शोध का चीन का एकमात्र शोध संस्थान है, जिसकी मौजूदगी के बारे में चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है.
चीन के जैविक हथियार कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिये हैं. हालांकि, चीन ने इन खबरों पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
अमेरिकी सीनेटर टॉम कॉटन ने भी कहा है कि चीन ने वुहान के सीफूड मार्केट से कोरोना के फैलने की बात करके दुनिया को बरगलाने की कोशिश की है. हो सकता है यह वायरस वुहान की ही ‘सुपर लेबोरेटरी’ वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से निकला हो. वहीं, रूस वायरस के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहरा रहा है. रूस ने कहा है कि चीन में कोरोना फैलने के पीछे पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका की साजिश है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना को कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है. इसके पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी और फार्मास्यूटिकल कंपनियां है. रूसी मीडिया ने दावा किया कि अमेरिका ने जॉर्जिया में एक प्रयोगशाला बनायी है, जहां इंसान पर जैविक हथियारों का परीक्षण किया गया था. यह आशंका इसलिए भी है, क्योंकि चीन ने एक महीने तक इस बीमारी के फैलने की जानकारी सार्वजनिक नहीं की.
विश्व के 4.5 करोड़ लोगों पर मंडराया खतरा, हर रोज हो रहीं 100 से ज्यादा मौतें
चीन की मदद करने पर अमेरिकी वैज्ञानिक गिरफ्तार
पिछले हफ्ते हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रमुख चार्ल्स लीवर को वुहान यूनिवर्सिटी की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. उनपर आरोप है कि उन्होंने चीन को जैविक हथियार विकसित करने में मदद की है.
इससे सवाल उठ रहा है कि क्या चीन ने अमेरिका तक पैठ बना ली है? इधर, जैविक हथियारों को लेकर दुनिया भारी चिंता में है. अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन जैसे देश पहले ही जैविक हथियार ईजाद कर चुके हैं. उत्तर कोरिया भी तेजी से जैविक हथियार बना रहा है. एक देश से दूसरे देश में जैविक हथियारों की स्मगलिंग का भी खतरा बना हुआ है. अमेरिका ने कहा है कि उसके कुछ नागरिक जो कोरोना से ग्रस्त हैं, वे कभी किसी से संक्रमण के संपर्क में नहीं रहे हैं.
अबतक 1,113 मरे, 44 हजार से अधिक लोग हुए संक्रमित
चीन में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,113 हो गयी है, जबकि कन्फर्म मामलों की संख्या भी बढ़कर 44,653 हो गयी है. चीनी प्रशासन ने बुधवार को यह जानकारी दी. समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को कोरोना संक्रमण के कन्फर्म 2,015 नये मामलों और 97 मौतों की जानकारी मिली है. खबर के अनुसार दुनियाभर की 4.5 करोड़ आबादी के फरवरी के अंत तक संक्रमित होने की आशंका है.
कोरोना की सच्चाई बताने वाला पत्रकार गायब
सबसे पहले कोरोना की जानकारी देने वाले डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत के बाद एक चीनी नागरिक पत्रकार चेन कुशी गायब हैं. कुशी के गायब होने का मामला संदेहास्पद हो गया है. चेन वुहान से कोरोना पर रिपोर्टिंग कर रहा था.
बहुत पुराना इतिहास है जैविक हथियारों का
1925 में जैविक हथियारों को लेकर जेनेवा में एक संधि हुई थी जिसमें इसके इस्तेमाल को लेकर प्रतिबंध की बात हुई लेकिन भंडारण पर कोई रोक नहीं लगायी गयी.
1932 में जापान ने चीन पर हवाई जहाज से कुछ कीटाणुओं से संक्रमित गेहूं के दानों का छिड़काव किया था. उसके बाद वहां फैले प्लेग ने करीब तीन हजार चीनियों की जान ले ली थी.
1972 में भंडारण पर प्रतिबंध का नया नियम जोड़ा गया जो 1975 में लागू हुआ. इस संधि में 180 से ज्यादा देश शामिल भी हैं लेकिन किसके पास जैविक हथियार हैं या नहीं हैं या कौन विकसित कर रहा है आदि की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है.
2016 में अंतरराष्ट्रीय खुफिया संगठनों ने आशंका जतायी थी कि खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट जैविक हथियारों तक पहुंच बनाने में लगा हुआ है. उस वक्त अमेरिकी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी जेम्स स्टॅवरिडिस ने चेतावनी दी थी कि इबोला और जीका जैसे रोगों के वायरस यदि आतंकियों के हाथ लग गये तो कोहराम मच जायेगा. 40 करोड़ से ज्यादा लोग मारे जायेंगे.
2017 में अफगानिस्तान में जब कुछ इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों के शरीर पर फफोले होने लगे थे तब रासायनिक हमले की बात उठी थी.
2017 में अफगानिस्तान की घटना का जिक्र करते हुए पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के सीमाई इलाके में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है. उन्होंने देश को तैयार रहने को कहा था.

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