प्रह्लाद कुमार
24 साल बाद भी बिहार का एक भी जिला नहीं हो पाया बालश्रम से मुक्त
पटना : केंद्र सरकार ने 1987 बाल उन्मूलन के लिए अधिनियम बनाया गया था. इसके बाद बिहार में फरवरी, 1996 में बाल श्रम उन्मूलन नियमावली बनायी गयी, लेकिन 24 साल बीत जाने के बाद भी बिहार का एक भी जिला बालश्रम से मुक्त नहीं हो पाया है.
बाल श्रम उन्मूलन के लिए हर साल प्रचार-प्रसार और धावा दल पर खर्च किया जाता है. बाल श्रमिकों के उन्मूलन के लिए मंत्री विजय कुमार सिन्हा जेनेवा में आयोजित कार्यक्रम में भी गये थे. वहीं, अधिकारी भी कई राज्यों में जाकर बाल श्रमिकों के लिए होने वाले काम को देखकर आये हैं.
इसके बावजूद बाल श्रमिकों को छुड़ाने में फील्ड अधिकारी सुस्त हैं.2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार में काम करने वाले 61 फीसदी बच्चे या तो खेतों में मजदूरी करते हैं या फिर किसी के घरों या सड़कों पर काम कर रहे हैं. बालश्रम उन्मूलन के लिए 2018-19 में 172 लाख खर्च किये गये और 2019-20 में 259 लाख खर्च करने के लिए स्वीकृत है.
20 जिलों के नगर निगम, नगर पंचायत और नगर पर्षद के व्यावसायिक क्षेत्र को बाल श्रम से मुक्त करने की घोषणा मंत्री ने की थी, लेकिन इन जिलों से शपथपत्र नहीं मिला है. जिन जिलों को लेकर घोषणा की गयी है, उनमें भोजपुर, खगड़िया, बक्सर, गया, शिवहर, सारण, मुजफ्फरपुर,सुपौल, लखीसराय, बेगूसराय, मधेपुरा, नवादा, नालंदा, कैमूर, शेखपुरा, गोपालगंज, सीवान, पश्चिम चंपारण, दरभंगा, किशनगंज शामिल हैं.सूत्रों के मुताबिक इन जिलों से शपथपत्र नहीं मिलने के बाद यह संदेह है कि यहां अभी तक व्यावसायिक क्षेत्रों में बाल श्रमिक काम कर रहे है.
छुड़ाये गये बाल मजदूरों की संख्या
2014 से 2019 तक 3800 बच्चों को राज्य के विभिन्न जिलों से रेस्क्यू किया गया. इनमें से 14 साल से कम उम्र के 1500 बच्चों को 25 हजार रुपये दिये गये. वहीं, अन्य राज्यों से 2000 बच्चों छुड़ाया गया है.
रेस्क्यू के बाद बच्चों को मिलती है सहायता राशि
2009 Rs 1800
2016 Rs 3000
यहां खुलेगा आवासीय प्रशिक्षण केंद्र
सीतामढ़ी
नवादा
मुजफ्फरपुर
विशेष आवासीय प्रशिक्षण केंद्र में
बच्चों की संख्या
पटना 100
जमुई 72
बांका 78
गया 54
जिलों में बालश्रम के कारण पढ़ाई पर असर
जहां तक बच्चों के बीच निरक्षरता का सवाल है, तो पूर्णिया, कटिहार व मधेपुरा जिलों में इसका अनुपात 46 फीसदी है. इसके बाद 44 फीसदी की तादाद के साथ सीतामढ़ी व बांका का नंबर आता है. आंकड़ों के मुताबिक सीवान, भोजपुर, बक्सर व रोहतास 30 फीसदी के साथ कुछ बेहतर स्थिति में हैं. इसके बावजूद अधिकारी बाल श्रमिक को मुक्त नहीं करा पाते हैं क्योंकि उनके पास कहीं से कोई शिकायत नहीं आती है.
ग्रुप में मैसेज आने की संख्या बहुत कम : बाल श्रम खत्म करने के लिए विभाग ने वाट्सएप ग्रुप बनाया है, जहां कोई भी व्यक्ति बाल श्रमिकों की तस्वीर खींच कर भेज सकता है, लेकिन इस ग्रुप का प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है. इस कारण ग्रुप में सप्ताह में दो से तीन तस्वीरें आती हैं.