नयी दिल्ली : दिल्ली में लगभग 234 रैन बसेरा हैं. इनमें से 84 स्थायी बिल्डिंग में है. बाकी पोर्ट केबिन और टेंट हैं. स्थायी रैन बसेरे में लगभग 3,585 लोगों ने पांच फरवरी की रात बितायी. पोर्ट केबिन में 4,137 लोगों ने और टेंट में 1,514 लोगों ने रात बितायी. कुल मिलाकर 9,236 लोग टेंट में रहे. ये लोग सालों से दिल्ली में रह रहे हैं. कोई ऑटो चलता है, कोई मजदूरी करता है. कोई यूपी से है, कोई बिहार से, कोई बंगाल से तो कोई दिल्ली से ही. विधानसभा चुनाव में मुद्दों की रेस में ये बहुत पीछे रह गये हैं. इनका कहीं कोई जिक्र नहीं होता. कोई नेता नहीं, जो इस तरफ आकर इनकी बात करे, इनकी समस्या पूछे. सभी प्रमुख पार्टियां, बिजली, पानी, शिक्षा जैसी जरूरतों पर बात कर रही हैं, लेकिन दिल्ली में रहने वाले उन लोगों का क्या, जिन्हें अब तक इस शहर में एक आशियाना न मिला. उन लोगों का क्या, जो रोज कमाते हैं, कुछ पैसे घर के लिए बाचते हैं और जैसे-तैसे दिन काटते हैं. दिल्ली चुनाव कवरेज के दौरान हम सिर्फ नेताओं के पीछे नहीं भागे. सिर्फ राजनीतिक तौर पर जरूरी मुद्दों की बात नहीं की हमने रैन बसेरा जाकर वहां के लोगों की आवाज नेताओं तक पहुंचाने की कोशिश की है. पढ़ें सूरज ठाकुर के साथ पंकज कुमार पाठक की रिपोर्ट.
हमने दिल्ली में गणेश नगर इलाके में रैन बसेरे का रुख किया. खाना खाने के बाद लोग सोने की तैयारी में थे. जमीन पर हरे रंग की चादर, हल्के लाल और काले रंग को मिलाकर बनी दरी बिछी थी. लोग सिर भी कंबल से ढककर सोने की कोशिश कर रहे थे. हमने रैन बसेरा की देखरेख करने वाले आकाश गुप्ता से बात की. उन्होंने बताया कि हर रात यहां 30-35 लोग आते हैं. इस रैन बसेरे में गद्दे की कमी को आकाश स्वीकार करते हैं.
दिल्ली में घर का सपना
जग्गी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले हैं. लगभग 20 साल से दिल्ली में रह रहे हैं. जग्गी का कहीं कोई परिवार नहीं है. न गांव में, न दिल्ली में. अकेले हैं. उनका कहना है कि दिल्ली में बिजली-पानी मुफ्त है. इससे लोगों को राहत मिली है. मैं घर लेना चाहता हूं, लेकिन मेरा घर फिलहाल यही है.
12 घंटे काम करते हैं, साढ़े सात हजार कमाते हैं
शिवकुमार पासवान बिहार के मधुबनी जिले से हैं. साल 2011 से दिल्ली में रह रहे हैं. शिव कहते हैं कि मजदूर का कोई ठिकाना नहीं है. बेरोजगारी पहले भी थी, आज भी है. काम मिलता भी है, तो मजदूरी कम मिलती है. 12 घंटे काम करते हैं. साढ़े सात हजार रुपये मिलते हैं. इसमें क्या खाइयेगा, क्या बचाइयेगा. घर पैसे भेजने के सवाल पर कहते हैं कि शादी नहीं की. शादी क्यों नहीं की, इस सवाल को टाल देते हैं. दिल्ली में जो सरकार आयेगी, उसे कौन-सा काम सबसे पहले करना चाहिए. शिव कहते हैं कि महंगाई के हिसाब से सैलरी होनी चाहिए. महंगाई कम होनी चाहिए.
आदर्श बोले : मैं वोट नहीं देता
आदर्श गर्ग कहते हैं : मुझे दिल्ली में आये काफी साल हो गये. अभी भी गांव जाकर खेती का काम संभालता हूं. मुझे बहुत खुशी होती है कि मैं यहां आकर चैन से सोता हूं. मुझे इस घर में ऐसी नींद आती है, जैसे मां अपने बेटे को सुलाती है. मैं तो हिमाचल की जनता से प्रभावित हूं. वह जिस तरह का फैसला लेती है, वही दिल्ली की जनता को करना चाहिए. मैंने आज तक सिर्फ एक बार वोट दिया. मुझे लगता है कि नेता लेता है, देता नहीं. इसलिए मैं वोट नहीं देता हूं.
दो पत्नी चार बच्चे, फिर भी अकेले
मीठाराम कहते हैं कि अयोध्या से आकर दिल्ली में रहते हुए लगभग 50 साल हो गये. घर से भागकर दिल्ली आया था. 10 साल की उम्र थी. मैं इस शहर में बगैर कपड़ों के आया था. इस शहर ने मुझे कपड़ा दिया है. काम दिया है, रोजी दी है. मुझे पहला काम बोरिंग करने का मिला था. मैंने इसके बाद प्लंबर का काम किया. मेरी शादी हो गयी. मैं राम मंदिर आंदोलन में भी शामिल रहा. मेरा बेटा अब मुंबई में काम करता है. पत्नी से अलग रहता हू्ं. दो पत्नी है. चार बच्चे. फिर भी अकेले रहता हूं.
वह कहते हैं कि दिल्ली में चुनाव है. सरकार कहां हमारे लिए सोचती है. पहले बिल्डिंग वालों की सोचती है. बिजली माफ, पानी माफ. लेकिन किराये पर रहने वालों को दोनों के पैसे देने पड़ते हैं. गरीब सरकारी योजना के अभाव में मर जाते हैं. सड़क पर सोने वाले की कौन साचेगा. सरकार हमें खाना दो.
पूर्वांचल के लोग कम पैसे में मजदूरी कहते हैं
विकास दिल्ली के ही वोटर हैं. कहते हैं कि सरकार सबसे पहले महंगाई पर ध्यान दे. उस पर नियंत्रण होगा, तो गरीबों का जीवन आसान होगा. पूर्वांचल से जो लोग आते हैं, वह सपने लेकर आते हैं. कुछ पैसे कमायें, कुछ बचायें. बाहर से आने वाले लोग कम पैसे में काम करते हैं. भोजन और रोजमर्रा की जरूरतें इन्हें पूरी करनी है. खाना होटल में खाते हैं. रैन बसेरा में सब कुछ है, जो होना चाहिए. रहने के लिए.
किसे इच्छा नहीं होती कि घर लौट जायें
करणवीर लगभग 75 साल के हैं. कहते हैं कि दिल्ली आया था, कुछ मजबूरी थी. नोटबंदी के बाद मेरा काम ठप हो गया. पहले मैं सात हजार किराया देता था. सब ठप हो गया, तो रैन बसेरा आ गया. यह नहीं होता, तो अब तक मैं मर गया होता. दिल्ली में मैं 10 साल से रह रहा हूं. मैं होमलेस श्रेणी का वोटर हूं.
वह कहते हैं कि हमारे जमाने में कम पार्टियां थीं. कांग्रेस थी, जनसंघ था. ऐसा नहीं है कि सरकार ने काम नहीं किया, लेकिन सीनियर सीटीजन का बस पास फ्री करने की बात थी, वह नहीं किया. मैं राजनीति कम समझता हूं, लेकिन जितना समझता हूं, वही बता रहा हूं. मैं वोट डालते वक्त कई चीजें देखूंगा. कई चीजें हो रही हैं. यह पूछने पर कि घर लौटने की इच्छा नहीं होती, करणवीर कहते हैं, ‘किसका मन नहीं होता. मैं हनुमान नहीं हूं कि सीना चीरकर दिखाऊं. मेरी समस्या जिस दिन हल हो जायेगी, उस दिन लौट जाऊंगा.’