नयी दिल्ली: आज केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में आम बजट पेश करने जा रही हैं. सभी को इस बात का इंतजार है कि मंदी के दौर से गुजर रहे उद्योगों के इससे क्या मिलने जा रहा है. सबको पता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने 2025 तक पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य तय किया है. लेकिन इस समय देश का जीडीपी ग्रोथ केवल 4 फीसदी है. नए वित्त वर्ष के लिए आर्थिक सर्वे में जीडीपी ग्रोथ 6 से साढ़े छह फीसदी रखने का अनुमान लगाया गया है.
हालांकि यदि भारत को अगले चार वर्षो में पांच ट्रिलियन की इकोनॉमी बनाना है तो जरूरी है कि देश की अधिकांश आबादी को रोजगार मिले. लेकिन, कड़वा सच ये है कि पिछले 45 सालों में देश में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है.
धीमी अर्थव्यवस्था और नौकरी की चुनौती
बीते कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था की लगातार धीमी होती रफ्तार की वजह से कई नौकरी पेशा लोगों की नौकरियां गयी हैं. विशेषतौर पर ऑटोमोबाइल सेक्टर में. विशेषज्ञों को आशंका है कि जिस तरह से आईटी और ऑटोमोबाइल कंपनियों में रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीनों का दखल बढ़ता जा रहा है, नौकरियों की स्थिति और भी खराब हो सकती है. ऐसे में ये सवाल पूछा जाना लाजिमी है कि क्या डिजिटल इंडिया की बात करने वाली सरकार उपरोक्त व्यवधानों को पार करके अधिकांश आबादी के लिए नौकरियों का सृजन करने को तैयार है. फिलहाल की हालत को देखकर तो लगता है कि नहीं.
जमीनी स्तर पर संसाधनों की बड़ी जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि उपरोक्त चुनौतियों से तभी निपटा जा सकता है जब इस खाई को पाटने के लिए जमीनी स्तर पर व्यापक संसाधन उपलब्ध करवाया जाए और उनका समुचित उपयोग हो. इसके लिए जरूरी है कि जमीनी स्तर पर संसाधनों के जरिए नौकरियों का सृजन किया जाए. उम्मीद यही है कि जब आज वित्तमंत्री बजट पेश करेंगी तो इसमें युवा और पढ़ी-लिखी आबादी को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए पर्याप्त धनराशि की घोषणा होगी.
स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की जरूरत
अध्ययन बताया कि यदि भारत को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के अपने लक्ष्य को हासिल करना है तो इसको सक्षम और कौशलयुक्त युवाओं के जरिए ही हासिल किया जा सकेगा. लेकिन हालात ये हैं कि पढ़ी-लिखी अधिकांश युवा आबादी एक अदद नौकरी के लिए शहरों की खाक छान रहा है. जरूरी है कि इनको मुख्यधारा में जोड़ा जाए और मानव संसाधन के तौर पर विकसित किया जाए. भारत में एक कमी जो साफ तौर पर दिखती है वो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है.
स्कूलों में या फिर कॉलेजों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा तकनीक, मैनेजमेंट, मशीन लर्निंग आदि की पढ़ाई अथवा प्रशिक्षण की कोई सुविधा नहीं है. जो इस तरह की ट्रेनिंग देते हैं, ऐसे शिक्षण संस्थानों की संख्या काफी कम है. जरूरी है कि सरकार ऐसी व्यवस्था के लिए अधिक धनराशि की घोषणा करे.
शिक्षा बजट में बढ़ोतरी की जरूरत होगी
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को शिक्षा बजट को बढ़ाना चाहिए. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स जैसी उभरती तकनीकों तक आम युवा की पहुंच बढ़ाने के लिए शिक्षा बजट में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए. ना केवल इसकी शिक्षा बल्कि इनका प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए. इस समय भारत की आईटी कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना कर रही हैं इसलिए जरूरी है कि इन कंपनियों को रफ्तार देने के लिए बड़ी संख्या में कुशल आईटी कर्मचारियों की नियुक्तियां हों.
सरकार को इस दिशा में पहल करना चाहिए. कौशल आधारित शिक्षा जिसमें कि स्कूल और कॉलेजों में ही युवाओं की प्रतिभा को प्रशिक्षण के जरिए निखारकर उन्हें प्रतिस्पर्धी बाजार में बढ़िया नौकरियां हासिल करने के योग्य बनाया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों को कमी ना हो.
जानिए पिछली बार कितना था शिक्षा बजट
पिछली बार साल 2019 में सरकार गठन के बाद जो अंतरिम बजट पेश किया गया था उसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शिक्षा बजट में 10 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की थी. कुल मिलाकर 93,847.64 की राशि, देशव्यापी विभिन्न शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए जारी की गयी थी. उम्मीद की जा रही है कि इस साल शिक्षा बजट में और भी ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. ये भी उम्मीद है कि शिक्षा बजट में कौशल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्रौद्योगिकी आधारित प्रशिक्षण आदि पर विशेष जोर दिया जाएगा.