रांची/नयी दिल्ली : पद्मश्री के लिये चुने जाने वाले दिन ही संशोधित नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शन में कथित तौर पर शामिल होने के कारण सुर्खियों में आये झारखंड के प्रसिद्ध नागपुरी गायक मधु मंसूरी ने कहा कि वह अब तटस्थ हैं और राजनीति से दूर रहना चाहते हैं क्योंकि पद्म सम्मान ने ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी है.
‘गांव छोड़ब नही , जंगल छोड़ब नही’ जैसे गीतों से झारखंड आंदोलन की सांस्कृतिक मशाल जलाने वाले मंसूरी का नाम इस साल पद्मश्री पाने वालों की सूची में शामिल है. जिस दिन उनके नाम का ऐलान हुआ, उसी दिन हालांकि सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल होकर वह चर्चा में रहे.
उन्होंने कहा, मैं हर विषय पर बोल सकता हूं, लेकिन बोलना नहीं चाहता. मैं किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहता. मैं सांस्कृतिक कर्मी होने के नाते राजनीति पर कुछ भी बोलना नहीं चाहता. अब तक 3000 से अधिक मंचों पर प्रस्तुति दे चुके 72 वर्ष के मंसूरी ने सीएए के बारे में उनका रूख पूछने पर कहा, मैं तटस्थ हूं.
देश के नियम कानून को मानता हूं. उसे नहीं मानने का क्या मतलब. पहले कोई चीज लागू तो हो , फिर देखा जायेगा कि सही है या गलत. पेड़ लगने पर ही पता चलेगा कि फल कैसे हैं. उन्होंने यह भी कहा, लेकिन हम इससे दूर रहना चाहते हैं. हमको बतौर कलाकार राजनीतिज्ञों का संरक्षण चाहिये लेकिन हमें राजनीति नहीं करनी. यह पूछने पर कि वह राजनीति से परे क्यों रहना चाहते हैं, उन्होंने कहा, अब तो वैसे भी पद्मश्री सम्मान ने एक ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी है.
मंसूरी ने स्पष्ट किया , उस दिन मैं वहां (प्रदर्शन स्थल पर) गया था, लेकिन एनआरसी की बैठक में नहीं गया था. जनवादी लेखक संघ ने उस विद्यालय के प्रांगण में मुझे बुलाया था. मैं उधर बैठक में नहीं गया था. मुझे बुलाया गया तो भी मैंने साफ तौर पर कहा कि वहां जाने की मेरी औकात नहीं है.
पद्मश्री को सबसे बड़ा सम्मान बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे नयी ऊर्जा के साथ वह झारखंडी संस्कृति, साहित्य, नाटक पर काम करेंगे. बारह बरस की उम्र में झारखंड आंदोलन में पहला गीत गाने वाले इस कलाकार ने कहा, हम चाहते हैं कि झारखंड में नीचे स्तर से लेकर राज्य के कामकाज तक, सब हमारी भाषा में हो.
बंगाल में बंगाली और बाकी राज्यों में जैसे उनकी भाषा में कामकाज होता है, वैसे ही यहां भी होना चाहिये. उन्होंने कहा कि वह सरकार से लोक कलाकारों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने की दिशा में प्रयास का भी अनुरोध करेंगे.
मंसूरी ने कहा , लोक कलाकारों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब होती है. उन्हें पेंशन मिलनी चाहिये , आर्थिक सहायता मिलनी चाहिये. पढे़ लिखे हैं तो नौकरी मिले. समय आने पर हम अनुरोध करेंगे और करना भी चाहिये. इस सम्मान का श्रेय अपने पिताजी , अपने प्रेरणास्रोत झारखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और झारखंड की जनता से मिले प्रेम को देते हुए उन्होंने बताया कि आदिवासियों के प्रेम ने उन्हें कभी अभाव महसूस नहीं होने दिया.
उन्होंने कहा , हम करीब करीब भूमिहीन हैं, लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने हमें जमीन दी जिस पर हमारे बेटे खेती करते हैं. कार्यक्रम में दो हजार, चार हजार रुपया मिल जाता है और इसी तरह जीवन चलता आया है. लोगों के प्यार ने कोई कमी महसूस नहीं होने दी. अपने बच्चों को संगीत में नहीं उतारने की वजह पूछने पर उन्होंने कहा, मैं सफल हो गया, लेकिन वे सफल होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है ना.