30 जनवरी 1948. आजाद भारत का 169वां दिन. देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ तब तक दिल्ली भी दंगों और दंगाइयों की चपेट में आ चुकी थी. देश में आजादी और बंटवारा एक साथ आया और नाथूराम विनायक गोडसे सहित कुछ अन्य लोगों की नजर में गांधीजी इसके सबसे ज्यादा जिम्मेदार थे.
इस बात से अनजान, गांधीजी ने सरदार पटेल को बातचीत के लिए शाम चार बजे मिलने के लिए बुलाया था. पटेल अपनी बेटी मणिबेन के साथ गांधीजी से मिलने के लिए पहुंच गये थे.
प्रार्थना के लिए निकला जा रहा था वक्त
इधर, बिड़ला भवन में हर शाम पांच बजे प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता था. इस सभा में गांधी जी जब भी दिल्ली में होते, तो शामिल होना नहीं भूलते थे.
शाम के पांच बज चुके थे. गांधीजी सरदार पटेल के साथ बैठक में व्यस्त थे. तभी अचानक सवा पांच बजे गांधी जी की नजर घड़ी पर गयी और उन्हें याद आया कि प्रार्थना के लिए वक्त निकलता जा रहा है.
जो देर करते हैं उन्हें सजा मिलती है
बैठक समाप्त कर गांधी लगभग भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ बढ़ रहे थे. आभा और मनु उनके साथ-साथ चल रही थीं.
इस बीच गांधीजी के स्टाफ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा था- बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई.
गांधी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था- जो लोग देर करते हैं उन्हें सजा मिलती है. कुछ ही पल बीते होंगे कि अचानक उनके सामने नाथूराम विनायक गोडसे आ गया.
गोडसे ने मनु को धक्का देकरपिस्टलनिकाली
गोडसे ने अपने सामने गांधीजी को देखकर हाथ जोड़ लिया और कहा- नमस्ते बापू! तभी गांधीजी के साथ चल रही मनु ने कहा- भैया, सामने से हट जाओ बापू को जाने दो, पहले से ही देर हो चुकी है.
तभी अचानक गोडसे ने मनु को धक्का दे दिया और अपने हाथों में छुपा रखी छोटी बेरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी और तड़ातड़ गांधीजी के सीने पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं.
और गिर पड़े बापू
दो गोलियां बापू के शरीर से होती हुईं बाहर निकल गयीं, जबकि एक गोली उनके शरीर में ही फंसी रह गई. गांधीजी वहीं पर गिर पड़े. बापू के आसपास खड़े लोग दूर भाग गये.
उसने सरेंडर के लिए दोनों हाथ ऊपर कर पुलिस-पुलिस चिल्लाया. उसके बाद भीड़ जमा हो गई और लोग गोडसे को पीटने लगे. बाद में उसकी गिरफ्तारी हुई.
महात्मा गांधी की हत्या की खबर आग की तरह फैल गयी. बिड़ला हाउस में ही गांधी के पार्थिव शरीर को ढककर रखा गया था.
तभी वहां उनके सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी पहुंचे और उन्होंने बापू के पार्थिव शरीर से कपड़ा हटा दिया, उनका कहना था कि अहिंसा के पुजारी के साथ हुई हिंसा को दुनिया देखे.
क्या कहा गोडसे ने?
लाल किले में चले मुकदमे में न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे ने अदालत में गोडसे ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही गांधी को मारा है.
अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा- गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूं. उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था लेकिन जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है.
गांधी जी ने देशसे छल कर इसके टुकड़े किये. चूंकि ऐसा न्यायालय और कानून नहीं था जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गांधी को गोली मारी.
आठ लोग बनाये गये आरोपी
गांधीजी की हत्या के बाद इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहितआठ लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें नाथूराम गोडसे, गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, मदनलाल पाहवा, विष्णु रामकृष्ण करकरे, शंकर किस्तैया, दिगंबर बड़गे,विनायकदामोदर सावरकर का नाम शामिल है.
इन लोगों में से दिगंबर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया. वहीं शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय से माफी मिल गई. जबकि सावरकर के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से बरी कर दिया गया.
बाकी बचे पांच अभियुक्तों में से गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ था, जबकि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर लटका दिया गया.