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CAA: केरल और पंजाब की चुनौती मोदी सरकार को कितना बड़ा झटका

<p>एक तरफ़ देश भर की ग़ैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारें नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रही हैं और कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रही हैं तो दूसरी तरफ़ विपक्ष के वरिष्ठ नेता राज्य सरकारों के इस क़दम को असंवैधानिक बता रहे हैं. </p><p>इस लिस्ट में नया नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील <a href="https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/have-to-follow-caa-until-supreme-court-intervenes-congress-salman-khurshid/videoshow/73371479.cms">सलमान ख़ुर्शीद […]

<p>एक तरफ़ देश भर की ग़ैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारें नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रही हैं और कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रही हैं तो दूसरी तरफ़ विपक्ष के वरिष्ठ नेता राज्य सरकारों के इस क़दम को असंवैधानिक बता रहे हैं. </p><p>इस लिस्ट में नया नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील <a href="https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/have-to-follow-caa-until-supreme-court-intervenes-congress-salman-khurshid/videoshow/73371479.cms">सलमान ख़ुर्शीद </a>का जुड़ गया है. </p><p>समाचार एजेंसी एनआई को दिए इंटरव्यू में सलमान ख़ुर्शीद ने कहा, &quot;सीएए संवैधानिक है या नहीं, ये मामला कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट को अंतिम फ़ैसला सुनाना है. अब ये क़ानून बन गया है. सुप्रीम कोर्ट अगर इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करता तो सीएए पर केंद्र सरकार की बात ही मानी जाएगी.&quot; </p><p>&quot;और जो कोई क़ानून नहीं मानेगा तो उसके परिणाम भी भुगतने के लिए तैयार रहे. राज्य सरकारें इसका विरोध कर रही हैं, राज्य सरकारों को भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार है.&quot;</p><p>इसके पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में ये कहा गया कि नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) संसद में पारित हो चुका है और अब कोई राज्य इसे लागू करने से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना ‘असंवैधानिक’ होगा. </p><p><a href="https://twitter.com/KapilSibal/status/1219106382898593792">https://twitter.com/KapilSibal/status/1219106382898593792</a></p><h1>कपिल सिब्बल का बयान</h1><p><a href="https://indianexpress.com/article/india/kapil-sibal-congress-caa-nrc-6223563/">इंडियन एक्सप्रेस में 18 जनवरी</a> को प्रकाशित इस ख़बर के मुताबिक़, कपिल सिब्बल ने कहा, &quot;सीएए के पारित हो जाने के बाद कोई राज्य ये नहीं कह सकता कि मैं इसे लागू नहीं करूंगा. ये असंभव है और ऐसा करना असंवैधानिक होगा. आप इसका विरोध कर सकते हैं, विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर सकते हैं और केंद्र सरकार से इसे वापस लेने के लिए कह सकते हैं.&quot;</p><p>लेकिन पिछले दो दिनों में उन्होंने मीडिया पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया और ट्वीट किया, &quot;मैंने हमेशा सीएए को असंवैधानिक ही कहा है. केरल में 18 जनवरी को पब्लिक मीटिंग में मैंने कहा था कि नागरिकता संशोधन क़ानून को अरब सागर में फेंक देना चाहिए.&quot; </p><p>&quot;मैंने ट्विटर पर अपनी स्पीच का हिस्सा भी डाला है. प्लीज़ चेक करें. सुप्रीम कोर्ट में इस बिल को भी अवैध क़रार देते हुए मैंने पक्ष रखा है. मैंने कहा है कि जिन राज्यों में विधानसभा ने सीएए के ख़िलाफ़ सदन में प्रस्ताव पारित किया है वो भी वैध है. झूठ फैलाना बंद करें.&quot; </p><p><strong>भारत का</strong><strong> संविधान </strong></p><p>केरल और पंजाब सहित राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी सीएए का विरोध करते हुए कहा है कि वो इसे लागू नहीं करेंगी. </p><p>इसी के बाद ये बहस शुरू हो गई है कि क्या राज्य सरकारें चाहें तो सीएए लागू नहीं होगा. </p><p>दरअसल भारत से संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकारों का विभाजन है. यूनियन लिस्ट में 97 मुद्दे हैं, स्टेट लिस्ट में 66 आइटम हैं और कॉनकरंट लिस्ट में 44 मुद्दे हैं.</p><p>यूनियन लिस्ट में दिए मुद्दों पर केवल देश की संसद क़ानून बना सकती है और नागरिकता इस लिस्ट में 17वें स्थान पर है.</p><p>तो ऐसे में स्पष्ट है कि नागरिकता के संबंध में केवल संसद क़ानून बना सकती है, किसी राज्य को ये क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 11 में भी साफ़ तौर पर ये अधिकार संसद को दिया गया है. </p><p>नालसार, हैदराबाद के वाइस चांसलर <a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51135860?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">फ़ैज़ान मुस्तफ़ा</a> राज्यों और केंद्र को संविधान से मिले अधिकारों पर कहते हैं, &quot;आमतौर पर इंटरप्रिटेशन में विवाद ये होता है कि कोई चीज़ यूनियन लिस्ट में है या फिर स्टेट लिस्ट में. और ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिनमें राज्य सरकार ने कहा है कि संसद को फ़लां क़ानून बनाने का हक़ नहीं था.&quot;</p><figure> <img alt="सीएए" src="https://c.files.bbci.co.uk/1049D/production/_110571766_anuragkashyapshahrukhkhan.png" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>क्या कहते हैं संविधान के जानकार</h1><p>जब नागरिकता का विषय केंद्र सरकार के अधिकार के दायरे में आता है तो क्या राज्य सरकारें इसे लागू नहीं करने का फ़ैसला ले सकती हैं? यही सवाल हमने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से पूछा. </p><p>संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के मुताबिक़ राज्य सरकारों के पास सदन में किसी विषय पर प्रस्ताव पास करने का अधिकार है और उस प्रस्ताव को लेकर कोर्ट जाने का भी अधिकार है. </p><p>&quot;ये दोनों ही अधिकार विचारों की अभिव्यक्ति है और इस पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है. इसलिए सीएए के ख़िलाफ़ भी राज्य सरकारें ऐसा प्रस्ताव पास कर सकती हैं.&quot;</p><p>केरल के मामले में राज्य सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत कोर्ट में गुहार लगाई है. </p><p>लेकिन फ़ैज़ान मुस्तफ़ा के मुताबिक़ केरल का मामला अलग है.</p><p>वे कहते हैं, &quot;मेरे हिसाब से ये शायद चौथी-पाँचवी बार ऐसा मामला आया है जिसमें राज्य सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन क़ानून संविधान के मूलभूत ढांचे के ख़िलाफ़ है. ये कुछ समुदायों को स्वीकार करता है, कुछ को नहीं करता. साथ ही कुछ पड़ोसी देशों को शामिल करता है तो कुछ को नहीं करता. उन देशों के भी सभी प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय को ये शामिल नहीं करता.&quot;</p><h1>क्या है अनुच्छेद 131? </h1><p>सुभाष कश्यप के मुताबिक़ अनुच्छेद 131 ऑरिजिनल जूरिशडिक्शन तय करने के लिए होता है. कोई भी राज्य सरकार, केन्द्र और अपने बीच किसी तरह के अधिकारों के मतभेद को लेकर कर अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल कर सकती है और सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. </p><p>&quot;दो राज्यों के बीच भी अधिकारों को लेकर मतभेद हो तो भी इस अनुच्छेद का सहारा लिया जा सकता है. इस अनुच्छेद का सहारा केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों ही ले सकती है. लेकिन नागरिकता का मामला केन्द्र और राज्य सरकारों के अधिकार के संबंध का है या नहीं ये फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा. सीएए के मामले में भी ऐसा ही होना है. और यही बात सलमान ख़ुर्शीद भी कर रहे हैं.&quot;</p><p>इतिहास में पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं. झारखंड बनाम बिहार का एक मामला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार को 131 के तहत कोर्ट में जाने से रोका नहीं जा सकता और उन्होंने ये मामला एक बड़ी बेंच को भेजने की बात की थी.</p><figure> <img alt="सुप्रीम कोर्ट" src="https://c.files.bbci.co.uk/7B81/production/_110571613_07e86f7f-ba9e-4267-b38f-d132307e8536.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>एनपीआर का विरोध </h1><p>सीएए का विरोध करने वाली राज्य सरकारें एनपीआर का भी विरोध ये कह कर कर रही हैं कि सीएए और एनपीआर एक दूसरे से जुड़ी हैं. </p><p>तो क्या राज्य सरकार चाहे तो बिना सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आए एनपीआर का कामकाज रोक सकती हैं? </p><p>इस सवाल पर सुभाष कश्यप कहते हैं, &quot;राज्य सरकार किसी भी सूरत में ये क़दम नहीं उठा सकती. एनपीआर की पूरी प्रक्रिया नागरिकता से जुड़ी है. इसलिए राज्य सरकारें इसका काम नहीं रोक सकती.&quot; </p><p>उनके मुताबिक़ अगर कोई राज्य सरकार ऐसा क़दम उठाती है तो वो संविधान के विरुद्ध क़रार दिया जाएगा जिसके दूसरे परिणाम हो सकते हैं. </p><p>सुभाष कश्यप को लगता नहीं कि सीएए के मुद्दे पर कोई राज्य सरकार ऐसा करेगी. </p><p>उनका कहना है कि ये एक काल्पनिक सवाल है. लेकिन फिर भी राज्य सरकार केन्द्र के विरुद्ध जाती है तो केंद्र सरकार उनको संविधान के अनुच्छेद 256, 257 के तहत डायरेक्टिव इशू कर सकती है. केन्द्र सरकार के पास आंतरिक हालात का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन लगाने का भी विकल्प है. </p><h1>तो फिर संघीय ढांचे का क्या? </h1><p>सुभाष कश्यप मानते हैं कि राज्य सरकारों का कोर्ट जाने का पूरा मामला राजनीति ज़्यादा है और संविधान का मामला कम है. अनुच्छेद 131 का हवाला देकर कोर्ट जाने तक का राज्य सरकारों के पास अधिकार है और इस अधिकार का वो इस्तेमाल कर चुकी है. लेकिन संविधान के मुताबिक़ उनकी दलील कोर्ट में टिक पाती है या नहीं इस पर फ़ैसला कोर्ट को करना है. </p><p>सीएए के ख़िलाफ़ होने के बाद भी राज्य सरकारों को इसे लागू करना हो – तो क्या ये संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ नहीं है? </p><p>इस सवाल पर सुभाष कश्यप कहते हैं कि ऐसा बिलकुल ही नहीं है. सीएए को केन्द्र, राज्य सरकार पर थोप नहीं रही है. ये पूरा मामला बस इतना है कि केन्द्र के पास नागरिकता पर क़ानून बनाने का अधिकार है या नहीं. इसका स्पष्ट जवाब है कि नागरिकता पर क़ानून बनाने का अधिकार केन्द्र के पास है. </p><p>&quot;क्योंकि देश की नागरिकता एक है, हम भारत के लोग एक हैं. भारत अमरीका की तरह नहीं है. अमरीका में राज्यों की नागरिकता अलग है. भारत में ऐसा नहीं है. भारत में संघीय सूची के विषयों पर क़ानून बनाने का हक़ केवल केन्द्र सरकार और संसद को है और नागरिकता का मुद्दा संघीय सूची में आता है.&quot; </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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