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बायोपिक फिल्मों का दौर

‘बॉलीवुड बायोपिक्स’ किताब में लेखक ने हिंदी सिनेमा उद्योग में बायोपिक फिल्म के पहले कदम से लेकर अब तक बनी कई सारी बायोपिक फिल्मों को शामिल किया है. बी ते कुछ वर्षों में हिंदी सिनेमा में कई प्रयोग देखने को मिले हैं. नये फिल्मकारों ने जहां फिल्म के विषयों का फलक खोल दिया है, वहीं […]

‘बॉलीवुड बायोपिक्स’ किताब में लेखक ने हिंदी सिनेमा उद्योग में बायोपिक फिल्म के पहले कदम से लेकर अब तक बनी कई सारी बायोपिक फिल्मों को शामिल किया है. बी ते कुछ वर्षों में हिंदी सिनेमा में कई प्रयोग देखने को मिले हैं. नये फिल्मकारों ने जहां फिल्म के विषयों का फलक खोल दिया है, वहीं कुछ कलाकार भी हैं, जो लीक से हटकर सशक्त भूमिकाएं कर रहे हैं. इन दिनों बायोपिक फिल्मों का चलन तेज हुआ है और कुछ ने तो बॉक्स ऑफिस पर अच्छी-खासी सफलता भी हासिल की है. ऐसा माना जा रहा है कि यह साल बायोपिक फिल्मों का साल होगा,

जिसमें गंगूबाई काठियावाड़ी, जे जयललिता, पृथ्वीराज चौहान, गुंजन सक्सेना, कपिलदेव, तानाजी, सरदार उधम सिंह, सईद अब्दुल रहीम आदि कई और हस्तियों पर फिल्में आनेवाली हैं. एक साल में दर्जन भर के करीब बायोपिक फिल्मों का आना संकेत है कि अब बॉलीवुड असली कहानियों की ओर भी ध्यान देने लगा है.
बायोपिक फिल्मों की लोकप्रियता को देखते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक फजले गुफरान ने ‘बॉलीवुड बायोपिक्स (आधी हकीकत बाकी फसाना)’ नाम से यह किताब लिखी है,
जिसमें उन्होंने हिंदी सिनेमा उद्योग में बायोपिक फिल्म के पहले कदम से लेकर अब तक बनी कई सारी बायोपिक फिल्मों को न सिर्फ शामिल किया है, बल्कि बायोपिक फिल्मों के बाजार, मुनाफा, निवेश और ट्रेंड के बारे में भी विस्तार से बताया है. यश पब्लिकेशंस से आयी फजले गुफरान की बॉलीवुड पर यह दूसरी किताब सिनेमा के विभिन्न विषयों को पढ़नेवाले लोगों के लिए एक जरूरी किताब हो सकती है.
रीयल को रील में बदलने की ललक तो हिंदी सिनेमा उद्योग में उफनती ही रही है, लेकिन पिछले कुछ साल से बायोपिक फिल्मों का जो दौर चल रहा है, वह सिनेमा देखने के नजरिये को भी विस्तार दे रहा है. रियल किरदार दर्शकों से बहुत जल्दी कनेक्ट कर जाते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है. दर्शक असल जिंदगी को परदे पर देखना चाहते हैं.
फजले गुफरान ने इसी बात को शिद्दत से महसूस किया है कि अपने लेखन में वे बॉलीवुड के उन पहलुओं को शामिल करें, जो अमूमन अछूते ही रह जाते हैं. बॉलीवुड के कई नायकों पर किताबें लिखी गयी हैं, लेकिन अपनी पहली किताब का विषय गुफरान ने खलनायकों को बनाया, जिसका शीर्षक था- ‘मैं हूं खलनायक’, जो काफी चर्चित रही. बायोपिक फिल्मों की आधी हकीकत और बाकी फसाने को समझने के लिए पाठक इस किताब को जरूर पढ़ना चाहेंगे.
– वसीम अकरम

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