नयी दिल्ली : मोबाइल सेवा प्रदाताओं के संगठन सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने समायोजित सकल राजस्व के बकाये के भुगतान के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दूरसंचार कंपनियों की पुनर्विचार याचिका खारिज किये जाने पर ‘गहरी निराशा’ जतायी है. संगठन ने कहा कि इससे सकंट में फंसे क्षेत्र की समस्या बढ़ेगी. अदालत ने दूरसंचार कंपनियों को 1.47 लाख करोड़ रुपये के वैधानिक बकायों की रकम 23 जनवरी तक जमा करने के अपने आदेश पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाएं गुरुवार को खारिज कर दीं.
सीओएआई के महानिदेशक राजन एस मैथ्यूज ने एक बयान में कहा कि हम समायोजित सकल राजस्व मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन दूरसंचार क्षेत्र में इससे गहरी निराशा हुई है. उन्होंने कहा कि फिलहाल, यह क्षेत्र 4 लाख करोड़ रुपये का कर्ज से जूझ रहा है. ग्राहकों को लाभ पहुंचाने, रोजगार के अवसर बढ़ाने, (सरकार के लिए) राजस्व सृजित करने आदि की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है. यह क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6.5 फीसदी का योगदान कर रहा है.
मैथ्यूज ने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र पहले से कर और शुल्कों के भारी बोझ से जूझ रहा है. यह 29 से 32 फीसदी तक बैठता है और यह दुनिया में सर्वाधिक है. उन्होंने कहा कि कंपनियों के लिए पुनर्विचार याचिका ‘तिनके का सहारा था’, लेकिन इसके खारिज होने से वित्तीय संकट और बढ़ेगा और यह देखने वाली बात होगी कि क्या उद्योग इससे उबर पायेगा? इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया दृष्टिकोण पर भी असर पड़ेगा.
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 24 अक्टूबर, 2019 को अपनी व्यवस्था में कहा था कि वैधानिक बकाये की गणना के लिए दूरसंचार कंपनियों के समायोजित सकल राजस्व में उनके दूरसंचार सेवाओं से इतर राजस्व को शामिल किया जाना कायदे कानून के अनुसार ही है.
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