डॉ सुदीप नाथ: एमडी(मेडिसीन), डीएनबी(मेडिसीन).
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अनियंत्रित खानपान व शारीरिक श्रम की कमी से होता है डायबिटीज
डॉ सुदीप नाथ: एमडी(मेडिसीन), डीएनबी(मेडिसीन). सिलीगुड़ी : मधुमेह अथवा डायबिटीज कहने से हम खून में चीनी की मात्रा बढ़ जाना समझते हैं. लेकिन अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक ऐसा रोग है जिसमें खून में चीनी की मात्रा बढ़ता सिर्फ दिखता है. विशेषकर किडनी, आंख और नस को अनियंत्रित करता है. इसलिए […]
सिलीगुड़ी : मधुमेह अथवा डायबिटीज कहने से हम खून में चीनी की मात्रा बढ़ जाना समझते हैं. लेकिन अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह एक ऐसा रोग है जिसमें खून में चीनी की मात्रा बढ़ता सिर्फ दिखता है.
विशेषकर किडनी, आंख और नस को अनियंत्रित करता है. इसलिए इस रोग का इलाज भी सिर्फ खून में मौजूद चीनी की मात्रा को कम करके ही पूर्ण नहीं होगा, बल्कि सुगर कम करने के साथ-साथ रोगी की आंख, किडनी, नस, रक्तचाप व कोलेस्ट्रॉल को भी हमेशा नियंत्रण में रखना होगा.
ये बातें डॉ सुदीप नाथ ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कही. डॉ नाथ ने कहा कि अगर हम जान जाएं कि यह रोग क्यों और कैसे होता है तो इसका निदान भी संभव होगा. वास्तव में यह रोग कई सामूहिक कारणों से होता है. इनमें से आनुवांशिकी, अत्यधिक मोटापा, शारीरिक श्रम की कमी और अनियंत्रित खानपान जैसे कारण शामिल हैं. इन्हीं कारणों से रोगी के शरीर में आवश्यकतानुसार इंसुलिन नहीं बन पाता है.
हम जानते हैं कि इंसुलिन नामक हार्मोन पेट में स्थित अग्नाशय ग्रंथि में बनता है. खून में मिल जाने के बाद इसका काम होता है भोजन में मौजूद शर्करायुक्त खाद्य को कैलोरी में परिवर्तित करना. पर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन की कमी होने पर खासकर शर्करा खून में मिल जाता है. जिसे हम ब्लड सुगर की संज्ञा देते हैं. डॉ सुदीप नाथ ने बताया कि डायबिटीज रोग मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं.
इसे डॉक्टर की भाषा में टाइप-1 और टाइप-2 कहा जाता है. टाइप-1 रोग आम तौर पर 20 साल से कम उम्र में होता है. टाइप-1 रोगी के शरीर में इंसुलिन तैयार करने की क्षमता पूर्ण रूप से बंद रहती है. ऐसे रोगी को सारा जीवन बाहर से लिए जाने वाले इंसुलिन के उपर ही निर्भर रहना पड़ता है. टाइप-1 रोगी मात्र पांच फीसदी देखने को मिलता है. जबकि 85 फीसदी से ज्यादा टाइप-2 के रोगी होते हैं.
इन लोगों में यह बीमारी 30 से 40 की उम्र में दिखाई देती है. ऐसे रोगी में प्रथम अवस्था में इंसुलिन निर्माण सामान्य स्थिति में रहता है. डायबिटीज रोगियों में यह धारणा बनी हुई है कि उन्हें चावल नहीं खाना चाहिए. इस संबंध में डॉ नाथ ने कहा कि डायबिटीज रोगी भी सामान्य व्यक्तियों की तरह संतुलित एवं सीमित खाना खा सकते हैं.
पर जिन खाद्य सामग्रियों में शर्करा की मात्रा भरपूर होती है, जैसे-चीनी, ग्लूकोज आदि का सेवन वर्जित है. हरी सब्जी का प्रचुर मात्रा में सेवन हितकारी होगा. आलू को भी सीमित मात्रा में खाया जा सकता है. जिन फलों में मिठास कम हो, जैसे खीरा, नासपाती, मौसंबी, नारंगी, बेदाना आदि खाये जा सकते हैं. विभिन्न प्रकार के दाल, सोयाबीन, चना, राजमा का भी सेवन किया जा सकता है.
चाय, कॉफी आदि दिन में दो-तीन बार बिना चीनी के पीने पर कोई आपत्ति नहीं है. प्रत्येक डायबिटीज मरीज को नियमित तौर पर व्यायाम करना जरूरी है. कम से कम आधा घंटा पैदल चलना आवश्यक है. पैदल चलने से खून में शर्करा की मात्रा में कमी आती है. अग्नाशय में इंसुलिन पैदा करने की क्षमता बढ़ती है. शरीर की चर्बी घटती है. वजन कम होता है.
उन्होंने कहा कि इंसुलिन के संबंध में हमारे मन में काफी गलत धारणाएं हैं. जैसे-एक ओर तो यह माना जाता है कि इसे सिर्फ इंजेक्शन की सहायता से लिया जा सकता है तो दूसरी ओर यह भी अफवाह प्रचलित है कि इंसुलिन एक बार शुरू करने के बाद सारा जीवन इससे पीछा नहीं छूटता. इस बारे में उन्होंने कहा कि यदि डॉक्टर यह कहते हैं कि किस परिस्थिति में रोगी को सारा जीवन इंसुलिन लेना होगा और रोगी के लिए इसे लेने का समय आ गया है तो तब इससे परहेज नहीं करना चाहिए.
इंसुलिन लेनेवाले रोगी को कभी व्रत या उपवास नहीं करना चाहिए. अगर कभी धार्मिक भावना के कारण उपवास करना पड़े तो उस दिन सुबह इंसुलिन न लें. इंसुलिन के इंजेक्शन को फ्रीज या किसी ठंडे स्थान में रखना मुनासिब होगा. गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज होने पर विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है. मां के खून का सुगर के साथ उसके गर्भ में पल रहे शिशु का सीधा संबंध होता है.
डायबिटीज नियंत्रित न होने पर गर्भ में स्थित शिशु का आकार बड़ा हो सकता है और उसमें जन्मगत विकृतियां हो सकती है. इसलिए गर्भावस्था में डायबिटीज की चिकित्सा हमेशा इंसुलिन के माध्यम से की जाती है. गर्भवती महिलाओं को अपने खान-पान में विशेष सतर्कता बरतना चाहिए.
उसे पौष्टिक आहार के साथ नियंत्रित मात्रा में कैलोरीयुक्त खाद्य सामग्री, ताजा सब्जी, फल, दूध आदि नियमित रूप से लेना चाहिए. डायबिटीज के हर तरह के मरीजों को धूम्रपान से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि डायबिटीज बीमारी को पूरी तरह निर्मूल नहीं किया जा सकता है, पर खून में मौजूद सुगर को हमेशा नियंत्रित कर एवं वैज्ञानिक तरीके से उपचार के इस पर काबू पाया जा सकता है.
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