14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ढुलू काे कुल 72 माह की सजा, सदस्यता रद्द कर दें

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का दिया हवाला कुल 27 माह की सजा में केरल के विधायक पर लगा था आजीवन प्रतिबंध बाघमारा विधायक को कुल 72 माह की हाे चुकी है सजा कतरास : बाघमारा विधायक ढुलू महतो का निर्वाचन रद्द करने की मांग विधानसभा अध्यक्ष से की गयी है. बियाडा के पूर्व चेयरमैन और […]

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का दिया हवाला

कुल 27 माह की सजा में केरल के विधायक पर लगा था आजीवन प्रतिबंध
बाघमारा विधायक को कुल 72 माह की हाे चुकी है सजा
कतरास : बाघमारा विधायक ढुलू महतो का निर्वाचन रद्द करने की मांग विधानसभा अध्यक्ष से की गयी है. बियाडा के पूर्व चेयरमैन और सामाजिक कार्यकर्ता विजय झा ने विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो को एक आवेदन देकर यह मांग की है. उन्होंने केरल के एक विधायक के निर्वाचन को रद्द करनेवाले सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए बाघमारा विधायक की सदस्यता रद्द करने का आग्रह किया है.
श्री झा ने रविवार काे यहां इस संदर्भ में एक प्रेस कांफ्रेंस की और कहा है कि ढुलू महतो को अलग-अलग मामलों में कुल 72 महीने की सजा हो चुकी है. चूंकि केरल के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट विधायक के निर्वाचन को रद्द कर चुका है, उसी आधार पर ढुलू महतो की भी विधायिकी खत्म हो जानी चाहिए. श्री झा ने वर्ष 2005 में केरल के विधायक पी जयराजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति भी संलग्न की है.
हाइकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया था
श्री झा ने कहा कि तत्कालीन चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस शिवराज वी पाटील, जस्टिस केजी बालाकृष्णन, जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण और जस्टिस जीपी माथुर शामिल थे, ने के प्रधान बनाम पी जयराजन केस में 11 जनवरी, 2005 को अपना फैसला सुनाया था. इसमें (C.A. No. 8213/2001) कोर्ट ने केरल के कुथुपरांबा विधानसभा क्षेत्र से चुने गये विधायक पी जयराजन के निर्वाचन को वैध करार देने वाले केरल हाइकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था. अप्रैल-मई 2001 में हुए केरल के चुनावों में के प्रभाकरण और पी जयराजन समेत तीन उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे.
24 अप्रैल, 2001 को नामांकन दाखिल हुआ और 10 मई, 2001 को मतदान. 13 मई, 2001 को चुनाव परिणाम आये और पी जयराजन विजयी घोषित किये गये. के प्रभाकरण ने रिटर्निंग ऑफिसर से लेकर हाइकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में पी जयराजन के खिलाफ याचिका दाखिल की. उन्होंने कहा कि 9 दिसंबर, 1991 के एक मामले में जयराजन के खिलाफ मुकदमा चल रहा है.
प्रभाकरण ने कोर्ट को बताया कि 9 अप्रैल, 1997 को इस मामले में कुथुपरांबा स्थित फर्स्ट क्लास न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जयराजन को दोषी पाया और उन्हें कई धाराओं (143, 149, 447, 427 और 353) में कुल ढाई साल की सजा सुनायी. 24 अप्रैल, 1997 को जयराजन ने थालासेरी के सेशन कोर्ट में अपील दाखिल की. सेशन कोर्ट ने जयराजन की सजा पर रोक लगा दी और उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी कर दिया था.
जयराजन को मिली सजा की वजह से ही प्रभाकरण ने अपने प्रतिद्वंद्वी के नामांकन को चुनौती दी, लेकिन रिटर्निंग ऑफिसर ने उनकी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए जयराजन के नामांकन को स्वीकार कर लिया. रिटर्निंग ऑफिसर ने कहा कि आरोपी को किसी एक मामले में दो साल या उससे ज्यादा की सजा नहीं हुई है. इसलिए रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट, 1951 की धारा 8(3) के तहत उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता.
प्रभाकरण अपना केस लेकर केरल हाइकोर्ट पहुंचे. हाइकोर्ट ने 5 अक्टूबर, 2001 को पी जयराजन के निर्वाचन को वैध ठहराया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और देश की सर्वोच्च अदालत ने केरल हाइकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए के प्रभाकरण की याचिका पर अंतिम सुनवाई के बाद 11 जनवरी, 2005 को अपना फैसला सुना दिया. इसमें पी जयराजन के निर्वाचन को रद्द कर दिया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें