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शहर के आश्रय स्थल तक नहीं पहुंच रहे बेघर

छपरा : नगर विकास व आवास विभाग की ओर से छपरा शहर के सदर अस्पताल परिसर में शहरी निराश्रितों व बेघरों के लिए बनाये गये आश्रय स्थल की जानकारी नहीं होने से शहर के फुटपाथ पर रहने वाले गरीब व मानसिक रूप से विक्षिप्त यहां तक नहीं पहुंच पा रहे है. नगर निगम भी मजदूरी […]

छपरा : नगर विकास व आवास विभाग की ओर से छपरा शहर के सदर अस्पताल परिसर में शहरी निराश्रितों व बेघरों के लिए बनाये गये आश्रय स्थल की जानकारी नहीं होने से शहर के फुटपाथ पर रहने वाले गरीब व मानसिक रूप से विक्षिप्त यहां तक नहीं पहुंच पा रहे है. नगर निगम भी मजदूरी करने वाले, रिक्शा चलाने वाले, ठेला चलाने वाले, दूसरे जिलों से आकर शहर में दिहारी करने वालों को इस रैन बसेरे तक पहुंचा पाने में असमर्थ है.

व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार के अभाव में कड़ाके की इस ठंड में भी रिक्शाचालक व मजदूर वर्ग के लोग एक आसरे की तलाश में भटकते नजर आ रहे है. रविवार की रात हमने शहर के आश्रय स्थल का जायजा लिया. यहां गरीब निराश्रितों के लिए सभी सुविधाएं मौजूद तो थी, लेकिन इस तीन मंजिला इमारत में बेघरों के लिए लगाये गये 50 बेडों में से सिर्फ 10 पर ही कोई न कोई रहने आया था. 40 बेड जागरूकता के अभाव में खाली नजर आये.
जानकारी के अभाव में फुटपाथ पर ही सोते हैं निराश्रित
ग्रामीण क्षेत्रों से शहर में रिक्शा चलाने व अन्य मजदूरी का कार्य करने के लिए सैकड़ों लोग आते है. कुछ तो वापस चले जाते है. वहीं कुछ अगले दिन के दिहारी के लिए यहीं रह जाते है. ऐसे लोगों के पास अपना कोई घर नहीं है. रेलवे स्टेशन के पास या बस स्टैंड के शेड में ऐसे लोग सोते है.
वहीं कुछ लोग शहर के बाजारों में दुकानों के बरामदे में भी सोते नजर आते है. रविवार को जब हमने ऐसे कुछ लोगों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि हमें रैन बसेरा होने की कोई जानकारी नहीं है. नगर निगम के पहले एक रैन बसेरा था जो नये भवन के बन जाने के बाद अब बंद ही रह जाता है.
नहाने-खाने के साथ मनोरंजन की भी है सुविधा
इस आश्रय स्थल में रहने वाले लोगों के लिए व्यवस्थित शौचालय, स्नानागार, एलइडी टीवी समेत खाने की भी व्यवस्था की गयी है. 10 रुपये का शुल्क व एक पहचानपत्र देकर यहां रहा जा सकता है. वहीं बेघर व निराश्रित लोगों के लिए यह सुविधा नि:शुल्क है.
आश्रय स्थल की इंचार्ज रंभा कुमारी बताती है कि इस तीन तल्ला भवन में नीचे का फ्लोर दिव्यांगों के लिए है. पहली मंजिल पुरुषों व महिलाओं के लिए उपलब्ध है. वहीं दूसरी मंजिल सुरक्षित रखा गया है. जो रिक्शाचालक या मजदूर यहां आते है. उनके सामान की देख-भाल के लिए आलमारी भी है. इसमें अलग लॉकर भी मौजूद है.
सामाजिक कार्यकर्ता उठा रहे ऐसे बेघरों के भोजन की जिम्मेदारी
शहरी क्षेत्र में रह रहे निराश्रितों को आश्रय स्थल में भोजन की भी व्यवस्था न्यूनतम शुल्क के साथ की जानी है. फिलहाल आश्रय स्थल में ऐसी कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है. शहर के रोटी बैंक से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे निराश्रितों को रोजाना भोजन उपलब्ध करा रहे है.
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक कुमार ने बताया कि उनकी संस्था ने लगभग 15 बेघरों को आश्रय स्थल तक पहुंचाने का काम किया. उनकी टीम रोजाना भोजन देने निकलती है. इस दौरान उन्हें हरी मोहन गली, प्लाजा कंप्लेक्श, नगरपालिका चौक आदि जगहों पर गरीब निराश्रित व रिक्शाचालक ठंड में ठिठुरते नजर आ जाते है.
क्या कहते है जिम्मेदार
आश्रय स्थल 50 बेड की सुविधा उपलब्ध है. जो भी यहां आते है उन्हें बेड उपलब्ध कराया जाता है. अभी बहुत कम लोग यहां तक पहुंच पा रहें है. आश्रय स्थल में मनोरंजन के लिए एलइडी टीवी भी लगाया गया है.
रंभा कुमारी, अधीक्षक, आश्रय स्थल
नगर निगम कुछ दिनों से प्रचार-प्रसार कर रहा है. शहरी क्षेत्रों में बेघर व निराश्रित लोगों को चिह्नित कर यहां तक ले जाने का कार्य हो रहा है. आश्रय स्थल के केयर-टेकर को भी निर्देश दिया गया है. हमारा प्रयास है कि कोई भी ठंड में रात के समय फुटपाथ व सड़क किनारें न सोये.
संजय कुमार उपाध्याय, नगर आयुक्त, छपरा नगर निगम

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