प्रो आनंद कुमार
समाजशास्त्री
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हर नये वर्ष की तरह 2020 भी हमारे लिए कुछ नया और बेहतर लेकर आये, यही आशा है. पिछले वर्ष यानी 2019 में देश से लेकर दुनियाभर में बहुत कुछ आधा-अधूरा होता रहा है. इसलिए दुनिया में, विशेषकर भारत में, इस बात की प्रबल आशा की जा रही है कि नया साल पिछले साल से हर मोर्चे पर बेहतर रहेगा. मोटे तौर पर हमारे समाज की जिंदगी तीन प्रमुख मोर्चे पर आमने-सामने होती है- आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक. कई कारणों से पिछले कुछ वर्ष पूंजीवाद की फिसलन के साल रहे हैं.
पिछले कई वर्षों से यह प्रयास चलता आया है कि वैश्विकरण, उदारीकरण और निजीकरण की त्रिवेणी में जन-साधारण को भी स्नान का आनंद मिले. लेकिन, हमारे गांवों में किसान और सभी नगरों में छोटे और मझोले उद्योग धंधों में लगे तमाम लोगों को थोड़ी निराशा हुई. केंद्र के साथ कई राज्य सरकारों ने जन-साधारण के जीवन सुधार के लिए बेहद कम दाम पर चावल-गेहूं देने से लेकर गैस-चूल्हा, शौचालय और बैंक खातों का इंतजाम किया था.
जाहिर है, ये सब अच्छी पहलें हैं. लेकिन, यहां एक बात गौरतलब है कि जब तक घाटे की खेती और रोजगारविहीन उद्योगीकरण का निदान नहीं होगा, यह सब सिर्फ पीड़ा हरण मरहम जैसा साबित होगा. इसलिए साल 2020 से यह आशा है कि हम समावेशी विकास वाली नयी टिकाऊ नीतियों के आधार पर बननेवाले ग्रामीण और नगरी नवनिर्माण के देश बनेंगे.
सामाजिक मोर्चे पर पिछला साल कुछ फासलों को पैदा करनेवाले साल के रूप में यादें छोड़ गया है. बिना सामाजिक शांति के राष्ट्रीय एकता नहीं पैदा हो सकती है. बिना राष्ट्रीय एकता के राष्ट्र-निर्माण की सामाजिक नींव मजबूत नहीं होगी.
इसलिए टिकाऊ राष्ट्रीयता के लिए न्याय आधारित सामाजिक व्यवस्था का भूला हुआ लक्ष्य फिर से पूरे सम्मान से स्थापित हो, यह 2020 से आशा है. यह अकारण नहीं था कि हमारे संविधान निर्माताओं ने सत्तर साल पहले एक राष्ट्रीय लक्ष्य के रूप में वर्गहीन और जातिविहीन समाज की रचना को कार्यान्वित करने की कसम दिलायी थी. इसलिए हमें सांप्रदायिकता के ऊपर राष्ट्रीयता व जातीयता के ऊपर नागरिक एकता को महत्व दिलानेवाले साल के रूप में नव वर्ष से कई आशाएं हैं.
हमने पिछले कुछ वर्षों में सशक्त लोकतंत्र के निर्माण के बजाय संसदीय जनतंत्र को बहुत परेशान देखा है. उसमें सुधार के संकल्प को लेकर हमारे लिए 1974 के जयप्रकाश आंदोलन से लेकर 2011 के अन्ना आंदोलन तक में दिखा है. इस संबंध में अभी बहुत करना बाकी है. इसलिए हमें आशा करनी चाहिए कि जीवनदायक राजनीतिक सुधार अवश्य 2020 में संपन्न होंगे.
किसी भी साल की अच्छाई-बुराई का रिश्ता उस काल अवधि में नागरिकों की निष्क्रियता और सक्रियता से जुड़ा होता है. अगर हम स्वराज और लोकतंत्र की रचना यात्रा में सिर्फ मुठ्ठी भर दलों और कुछ हजार राजनीतिकर्मियों पर भरोसा रखेंगे, तो 130 करोड़ की जनशक्ति वाले इस महान देश की क्षमता का न्यायपूर्ण सदुपयोग नहीं हो सकता. इसलिए सरोकारी नागरिकता का दौर होना चाहिए. निजी हितों को सार्वजनिक हितों से ऊपर रखने की प्रवृत्ति में निजी जीवन में भ्रष्टाचार बढ़ता है.
इसीलिए हमारे पुरखों ने बताया है कि एक आदर्श समाज बनाने के लिए हमें निजी हितों को परिवार के लिए, परिवार के हितों को गांव-समुदाय के लिए, गांव-समुदाय के हितों को देश के लिए और देश के हितों को मानवता के हितों के संवर्धन के लिए त्यागना पड़ता है. रास्ता साफ है. इस संकल्प के साथ 2020 में हम आगे बढ़ें.
हमारे देश की प्रगति का रास्ता उच्च कोटि की शिक्षा और लोकतंत्र संवर्धक शिक्षा केंद्रों से होकर ही गुजरता है. पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि हमारी शिक्षा के व्यवसायीकरण हुआ है.
अगर शैक्षणिक संस्थानों में नये भारत यानी बढ़ रहे छात्र और वहां पढ़ा रही आचार्य-शक्ति पर प्रशासनिक बल हावी रहेगा, तो बहुत जल्दी पूरा देश अज्ञान के अंधकार और अवसरवादिता में डूब जायेगा. हमें यह समझना चाहिए कि विद्या केंद्रों और विद्यार्थियों के साथ छेड़छाड़ से देश और समाज का अहित होता है. इसलिए साल 2020 में इस संकल्प के साथ हमें यह आशा करनी चाहिए कि विधायिका से लेकर कार्यपालिका तक और न्यायपालिका से लेकर विश्वविद्यालय तक हमारी सभी संस्थाएं सत्य के प्रकाश और शुभ की सुगंध से आप्लावित हों.
हमारे लोक जीवन में खासतौर पर विचार और संवाद के स्तर पर 2019 में कई घटनाएं हुई थीं. विधायिका का कुछ अवमूल्यन हुआ. कार्यपालिका की खामियां सामने आयीं. हमारी कार्यपालिका के अधिकारी संविधान के अंतर्गत लोकसेवक होते हैं.
लेकिन बीते कई दशक से हमें लोकसेवक के बजाय सत्ता सेवक ही दिखायी पड़े हैं. जाहिर है, प्रशासनिक सुधारों के लिए बनी समितियों की संस्तुतियों को लागू किये बिना इस क्षेत्र में एक भी नया अध्याय नहीं लिखा जा सकेगा. हर स्तर पर बढ़ते भ्रष्टाचार के दोहरे संकट से मुक्ति दिलाना भी साल 2020 के खाते में लिखा हुआ है.
आज एक निष्पक्ष दृष्टि के माध्यम के रूप में मीडिया की स्वायत्तता को बचाये रखना स्वयं लोकतांत्रिक सरकारों की सबसे बड़ी जरूरत है. हमें आशा करनी चाहिए कि इस संबंध में हम सब सार्थक सोचेंगे. इन्हीं कुछ संकल्पों के साथ सभी देशवासियों को नये साल की शुभकामनाएं!