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कूटनीतिक उतार-चढ़ाव

वर्ष 2019 वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते महत्व और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारतीय कूटनीति की महत्वाकांक्षाओं का साक्षी रहा है. पुलवामा आतंकी हमले के बाद बालाकोट की कार्रवाई कर भारत ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वह प्रतिबद्ध है. इस मामले में पाकिस्तान न केवल अलग-थलग पड़ा, […]

वर्ष 2019 वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते महत्व और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारतीय कूटनीति की महत्वाकांक्षाओं का साक्षी रहा है. पुलवामा आतंकी हमले के बाद बालाकोट की कार्रवाई कर भारत ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वह प्रतिबद्ध है.

इस मामले में पाकिस्तान न केवल अलग-थलग पड़ा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ भी भारत को मिला. इसका एक प्रमाण अजहर मसूद पर सुरक्षा परिषद की पाबंदी है. अनुच्छेद 370 और दो केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन पर पाकिस्तान और चीन की आपत्ति का भी संज्ञान नहीं लिया गया तथा विश्व ने स्वीकार किया कि यह भारत का आंतरिक मामला है, पर कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं होने और नागरिकता संशोधन को लेकर दुनिया को भरोसे में लेना नये साल की एक प्रमुख कूटनीतिक चुनौती होगी. भारतीय विदेश नीति में जोखिम उठाना एक विशेष तत्व है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर इसे दायरे और विकल्पों के विस्तार के लिए निरंतर प्रयास के रूप में परिभाषित करते हैं. आर्थिक सहयोग और वाणिज्य भी अब कूटनीति के केंद्र में हैं. विभिन्न परियोजनाओं के लिए विदेशी सहयोग, निवेश और तकनीक के हस्तांतरण के मोर्चे पर उत्साहवर्द्धक प्रगति हुई है. इसके अलावा दूसरे देशों में परियोजनाओं में हिस्सेदारी तथा खाद्य व ऊर्जा सुरक्षा के लिए बैठकें कूटनीति और आर्थिक हितों के सकारात्मक जुड़ाव के उदाहरण हैं. छह साल की बातचीत के बावजूद चीन समेत 15 देशों के क्षेत्रीय व्यापार समझौते में भारत का शामिल नहीं हो पाना निराशाजनक है, लेकिन इस निर्णय से सरकार ने यह भी संकेत दे दिया कि राष्ट्रीय हित उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता हैं.

चीन की चुनौतियों का सामना करने के साथ भारत अच्छे संबंध बनाने की दिशा में लगातार कोशिश कर रहा है. दोनों देशों के नेताओं की अनेक मुलाकातें इस वर्ष हुईं और अक्तूबर की अनौपचारिक शिखर बैठक के बाद आर्थिक और वाणिज्यिक संवाद के लिए एक उच्चस्तरीय प्रणाली स्थापित की गयी है. राजनीतिक मसलों पर तो अमेरिका के साथ सहयोग गहरा हुआ है, पर दोनों देश इस वर्ष व्यापारिक समझौता नहीं कर सके. व्यापार विवादों, आयात शुल्क और डेटा संग्रहण पर नियमन जैसे कारकों से दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ सकता है.

एस जयशंकर चीन और अमेरिका में राजदूत रह चुके हैं, सो इन देशों से संबंध बेहतर होने की आशा है. अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से व्यापार बढ़ाने पर अधिक ध्यान देना और अनेक देशों को ऋण उपलब्ध कराना इस वर्ष की बड़ी उपलब्धियां हैं. बहरहाल, जैसा कि अरविंद कुमार व शेषाद्रिचारी जैसे जानकारों ने रेखांकित किया है, विश्व में प्रभाव बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर भी भारत पर है कि वह कैसे अपने घरेलू और वैश्विक जटिलताओं व विरोधाभासों को सुलझाता है. यही नये वर्ष में भारतीय कूटनीति की परीक्षा भी है.

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