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हेमंत के कदम बढ़ते गये सत्ता के शिखर तक, दुर्गा सोरेन के निधन के बाद पिता का बने सहारा, संभाली राजनीतिक विरासत

रांची : हेमंत सोरेन आज झारखंड की राजनीति के शिखर पर हैं. 10 अगस्त 1975 को रामगढ़ के नेमरा गांव में हेमंत सोरेन का जन्म हुआ. वह झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अगुवा व झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन के दूसरे पुत्र हैं. माता का नाम रूपी सोरेन है. हेमंत का बचपन बोकारो में बीता. […]

रांची : हेमंत सोरेन आज झारखंड की राजनीति के शिखर पर हैं. 10 अगस्त 1975 को रामगढ़ के नेमरा गांव में हेमंत सोरेन का जन्म हुआ. वह झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अगुवा व झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन के दूसरे पुत्र हैं. माता का नाम रूपी सोरेन है. हेमंत का बचपन बोकारो में बीता.
उनकी आरंभिक शिक्षा बोकारो सेक्टर-4 स्थित सेंट्रल स्कूल से हुई. उनके करीबी बताते हैं कि स्कूल में भी दोस्तों के साथ वह खूब मस्ती किया करते थे. बोकारो की सड़कों पर बेपरवाह साइकिल चलाते थे.1989 में हेमंत सोरेन ने पटना के एमजी हाइ स्कूल में 10वीं कक्षा में दाखिला लिया. पटना से ही उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई की.
1990 में उन्होंने बोर्ड की परीक्षा पास की. इसके बाद पटना विश्वविद्यालय से आइएससी 1994 में किया. इसके बाद हेमंत ने बीआइटी मेसरा में इंजीनियरिंग में दाखिला लिया.वह बीआइटी मेसरा के हॉस्टल मे ही रहते थे. बीआइटी मेसरा के अनुशासन का पालन करते थे. उन्होंने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि झारखंड की मांग करनेवाले एक शक्तिशाली नेता शिबू सोरेन के वह पुत्र हैं.
2003 में रखा राजनीति में कदम : पढ़ाई पूरी करने के बाद हेमंत कुछ खास कर नहीं रहे थे. इसी दौरान उन्होंने वर्ष 2003 में झामुमो के छात्र विंग झामुमो छात्र संघ के अध्यक्ष का कार्यभार संभाला. छात्र विंग का गठन उन्होंने राज्य के हर जिले में किया. छात्र राजनीति में रहते हुए ही वर्ष 2005 में वह दुमका सीट से चुनाव लड़े. पर झामुमो के ही उस दौरान बागी उम्मीदवार स्टीफन मरांडी से वह हार गये. उस समय हेमंत तीसरे स्थान पर थे.
इसी दौरान सात फरवरी 2006 को वह विवाह के बंधन में बंध गये. हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन हैं. वह भी इंजीनियर है. जो आज रांची में फर्स्ट मार्क स्कूल की संचालिका हैं. हेमंत के दो पुत्र हैं. 10 वर्षीय विश्वजीत और छह वर्षीय नीतिन. फिर 24 जून 2009 को वह राज्यसभा सांसद चुने गये.
बड़े भाई के निधन के बाद संभाली विरासत : झामुमो के प्रवक्ता और हेमंत के करीबी अभिषेक कुमार पिंटू बताते हैं कि वर्ष 2009 में हेमंत सोरेन के बड़े भाई दुर्गा सोरेन का निधन हो गया. इधर बड़े पुत्र के निधन के बाद शिबू सोरेन काफी दुखी रहते थे. तब हेमंत ने उन्हें सहारा दिया.
राजनीति की बागडोर हेमंत संभालने लगे. जब दिसंबर 2009 में विधानसभा चुनाव हुआ, तो वह दुमका विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और भाजपा की लुईस मरांडी और स्टीफन मरांडी जैसे दिग्गजों को हरा कर विधानसभा पहुंचे. हेमंत के प्रयास से ही झामुमो के नेतृत्व में भाजपा के समर्थन से सरकार बनी. शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने.
तब हेमंत ने कोई पद नहीं लिया था. भाजपा द्वारा समर्थन वापस ले लिये जाने कारण शिबू सोरेन की सरकार गिर गयी. इसके बाद फिर हेमंत सोरेन सक्रिय हुए. उनके प्रयास से ही दोबारा भाजपा के साथ गंठबंधन हुआ. इस बार मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा बने और हेमंत सोरेन उप मुख्यमंत्री बने. सत्ता में यह उनका पहला अनुभव था.
उनके हाथों में वित्त मंत्रालय जैसा विभाग था. पर हेमंत ने बखूबी अपनी जिम्मेवारियों को निभाया. भाजपा के साथ गंठबंधन जनवरी 2013 में आकर टूट गया. एक बार फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. फिर भी हेमंत इस मुहिम में लगे रहे कि राज्य में राष्ट्रपति शासन समाप्त कर लोकतांत्रिक सरकार का गठन हो. दिल्ली में वह कई बार कांग्रेस के नेताओं से मिले.
फिर 13 जुलाई 2013 को वह झारखंड के मुख्यमंत्री बने. गठबंधन में सरकार चली. दिसंबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनी. उस चुनाव में हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका सीट से चुनाव लड़े थे. पर दुमका सीट वह हार गये थे. हालांकि बरहेट से वह विधायक बने. हेमंत नेता प्रतिपक्ष बने. इन पांच सालों में उन्होंने पार्टी का विस्तार किया.
जिसका परिणाम है कि आज झामुमो 30 सीट जीत कर अायी है और सरकार बना रही है. जिस दुमका सीट को वह हार गये थे, वर्ष 2019 में उसी सीट को वापस जीता. हेमंत सोरेन आज भी राजनीतिक मामलों में पिता शिबू सोरेन से राय लेकर ही कोई कदम बढ़ाते हैं. 23 दिसंबर को जब चुनाव का रिजल्ट आ रहा था. हेमंत अपने पिता के घर में उनके पास बैठ कर राय-मशविरा कर रहे थे.

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