सांस की तकलीफ से होती है 44% शिशुओं की मौत
पटना : केयर संस्था ने एडवायजरी जारी कर अभिभावक दाई या स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों की सलाह पर प्रसूति को ऑक्सीटोसिन देने से बचने की सलाह दी है. एडवायजरी के मुताबिक प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया होती है.
यदि प्रसव को समय पूर्व प्रेरित करने के लिए ऑक्सीटोसिन जैसे इंजेक्शन का प्रयोग किया जाये तब यह जन्म लेने वाले शिशु के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल सकता है. गांव में प्रसव कराने वाली दाई एवं स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों की सलाह पर प्रसूति को ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन दिया जाता है. इससे जन्म लेने शिशु को दम घुटने की गंभीर समस्या हो सकती है. चिकित्सकीय भाषा में इसे एस्फिक्सिया (सांस की तकलीफ) के नाम से जाना जाता है.
स्टेट रिसोर्स यूनिट के बाल स्वास्थ्य टीम लीडर डा पंकज मिश्रा ने बताया सांस की तकलीफ नवजातों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है. राज्य में लगभग 44 प्रतिशत नवजातों की मृत्यु सांस की बीमारी के कारण होती है. ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल यूटेरस के संकुचन के लिए किया जाता है.
खासकर प्रसव के बाद अत्याधिक रक्त स्त्राव रोकने के लिए ही ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. समुदाय स्तर पर दाई या कुछ स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों द्वारा प्रसूति को प्रसव दर्द से छुटकारा दिलाने एवं शीघ्र प्रसव कराने के उद्देश्य से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके कारण बच्चों में सांस की बीमारी के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है.उन्होंने बताया ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का प्रयोग प्रसव के दौरान करने से पहले विशेषज्ञ चिकित्सकीय सलाह जरूरी है.