1967 के बाद कांग्रेस को नहीं मिली थी जीत
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#JharkhandElection: 52 वर्ष बाद झरिया में कांग्रेस का वनवास खत्म, जेठानी ने देवरानी को दी पटखनी
1967 के बाद कांग्रेस को नहीं मिली थी जीत 1967 में चुनाव जीत पहले विधायक बने थे कांग्रेस के एसआर प्रसाद 13 बार हुए चुनाव में आठ बार दूसरे स्थान पर रही थी कांग्रेस 2009 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश सिंह ने दी थी कड़ी टक्कर धनबाद-झरिया: झरिया सीट से पूर्णिमा नीरज सिंह की […]
1967 में चुनाव जीत पहले विधायक बने थे कांग्रेस के एसआर प्रसाद
13 बार हुए चुनाव में आठ बार दूसरे स्थान पर रही थी कांग्रेस
2009 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश सिंह ने दी थी कड़ी टक्कर
धनबाद-झरिया: झरिया सीट से पूर्णिमा नीरज सिंह की जीत ने कांग्रेस को 52 वर्ष बाद उसकी खोई सीट दिलायी है. पार्टी वर्ष 1967 के बाद एक बार भी झरिया से चुनाव नहीं जीत सकी थी. हालांकि अब तक 13 बार हुए विधानसभा चुनाव में आठ बार दूसरी स्थान पर रह कर मुकाबले में जरूर बनी रही. झरिया सीट से चुनाव जीत कर पूर्णिमा नीरज सिंह ने न सिर्फ झरिया से भाजपा व सिंह मैंशन का किला ध्वस्त किया है, बल्कि कांग्रेस के हाथ को मजबूत किया है.
पहले विधायक बने थे एसआर प्रसाद : वर्ष 1967 में हुए विधान सभा चुनाव में जीत दर्ज कर एसआर प्रसाद यहां के पहले विधायक बने थे. कांग्रेस प्रत्याशी श्री प्रसाद ने अपने प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी (जेकेडी ) एसके राय को 2,874 वोट से हरा कर झरिया सीट पर अपना कब्जा जमाया था. एसआर प्रसाद को कुल 10024 वोट मिले थे, जबकि एसके राय को 7150 वोट मिले थे. 1967 के बाद अबतक हुए 12 विधानसभा चुनावों व एक उप चुनाव में कांग्रेस पार्टी झरिया से एक बार भी जीत का स्वाद नहीं चख सकी.
महज 3017 वोट से चुनाव हारे थे सुरेश सिंह : भाजपा का गढ़ व सिंह मैंशन का प्रभाव क्षेत्र होने के बावजूद वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में झरिया सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश सिंह ने भाजपा प्रत्याशी कुंती सिंह को कड़ी टक्कर दी थी. सुरेश सिंह महज 3,017 वोट से चुनाव हारे थे. कुंती सिंह को 49131 वोट मिले थे, जबकि सुरेश सिंह को 46114 वोट मिले थे.
पूर्णिमा हो सकती हैं मंत्री पद की दावेदार
पूर्व डिप्टी मेयर-सह-कांग्रेस नेता नीरज सिंह की हत्या के बाद ‘रघुकुल’ में राजनीतिक शिथिलता आ गयी थी, लेकिन उनकी पत्नी पूर्णिमा सिंह के चुनावी मैदान में आने से एक फिर से उम्मीद जग गई. झरिया सीट से चुनाव जीत कर पूर्णिमा नीरज सिंह ने न सिर्फ झरिया कोयलांचल में ‘रघुकुल’ की बादशाहत कायम की है, बल्कि झारखंड की राजनीति में भी ‘रघुकुल’ की पकड़ और प्रभाव बढ़ा दिया है. धनबाद से मंत्री पद के लिए भी पूर्णिमा सिंह को बड़े दावेदार के रूप में देखा जा रहा है.
जेठानी ने देवरानी को हराया
वर्तमान विधायक स्वर्गीय सूर्यदेव सिंह के पुत्र संजीव सिंह इस बार चुनाव मैदान में नहीं थे. भाजपा की तरफ से उनकी पत्नी रागिनी सिंह चुनाव लड़ रही थीं. जबकि विरोध में कांग्रेस की तरफ से पूर्णिमा सिंह थीं, जो रिश्ते में भाजपा प्रत्याशी की जेठानी हैं. पिछले चुनाव में झरिया दो भाइयों के संघर्ष का गवाह बना था. इस बार दो गोतनी की लड़ाई का गवाह बना. एक ही घर की दोनों बहू इस समय मैदान में थीं. इसलिए झरिया का मुकाबला काफी रोचक माना जा रहा था.
कब कौन जीता चुनाव
1967 एसआर प्रसाद (कांग्रेस)
1969 एसके राय(बीकेडी)
1972 एसके राय (सीपीआइ)
1977 सूर्य देव सिंह(जेएनपी)
1980 सूर्य देव सिंह (जेएनपी)
1985 सूर्य देव सिंह (जेएनपी)
1990 सूर्य देव सिंह (जेडी)
1991-उप चुनाव आबो देवी (जेडी)
1995 आबो देवी (जेडी)
2000 बच्चा सिंह (समता पार्टी)
2005 कुंती देवी (भाजपा)
2009 कुंती देवी (भाजपा)
2014 संजीव सिंह (भाजपा)
जीत के लिए मैं जनता के प्रति आभारी हूं. जो वादा किया है, उसे पूरा करूंगी. झरिया में जो 15 सालों से विकास रुक गया था उसे प्राथमिकता के साथ करूंगी. झरिया में विकास के लिए हर संभव कार्य करूंगी. मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास करूंगी.
पूर्णिमा नीरज सिंह, कांग्रेस
झरिया के जनादेश का सम्मान करती हूं. मेरे प्रति जिन्होंने भी विश्वास जताया उनका बहुत-बहुत आभार. झरिया की जनता के हर सुख दुःख में मैं खड़ी थी, हूं और रहूंगी. हार-जीत से बहुत विशेष फर्क नहीं पड़ता. लोगों की सेवा के लिए राजनीतिक जीवन में आयी हूं.
रागिनी सिंह, भाजपा
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