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शांति से सुलझे राष्ट्रीय मसला
राष्ट्रीय महत्व के मसलों को हिंसा के सहारे नहीं सुलझाया जा सकता. हिंसा से तो वैमनस्य ही बढ़ेगी, जबकि जरूरत सामंजस्य बढ़ाने की है. बाहर से आये जो लाखों लोग दशकों से पूर्वोत्तर में रह रहे हैं, उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता. उन्हें नागरिक या शरणार्थी घोषित करने का काम करना ही […]
राष्ट्रीय महत्व के मसलों को हिंसा के सहारे नहीं सुलझाया जा सकता. हिंसा से तो वैमनस्य ही बढ़ेगी, जबकि जरूरत सामंजस्य बढ़ाने की है.
बाहर से आये जो लाखों लोग दशकों से पूर्वोत्तर में रह रहे हैं, उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता. उन्हें नागरिक या शरणार्थी घोषित करने का काम करना ही होगा.
इस मामले में एक सीमा तक ही उदारता दिखायी जा सकती है, क्योंकि भारत के पास इतने संसाधन नहीं कि वह हर किसी को देश में रहने का अधिकार दे दे. विपक्ष असम की तर्ज पर पूरे देश में एनआरसी लागू करने की घोषणा का भी विरोध कर रहा है, लेकिन उसे यह समझना होगा कि हर देश को यह जानने का अधिकार है कि उसके यहां रह रहे लोगों में कौन उसके नागरिक हैं और कौन नहीं?
अन्य देशों की तरह भारत को भी अपने और दूसरे देश के नागरिकों की पहचान करनी होगी. दूसरे देशों की नागरिकों की पहचान करते समय यह भी देखना होगा कि कौन घुसपैठिया है और कौन शरणार्थी. इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि घुसपैठियों ने मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड और आधार कार्ड तक बनवा लिये हैं. इस सिलसिले को रोकना ही होगा.
डॉ हेमंत कुमार, भागलपुर, बिहार
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