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झारखंड की राजनीति का फ्लैश बैक : संताल परगना संसदीय क्षेत्र से चुने गये थे लाल हेंब्रम

आनंद जायसवाल लाल बाबा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभानेवाले बरियार व पाइका भी बने थे विधायक दुमका : जंग-ए-आजादी में अहम भूमिका निभानेवाले लाल हेंब्रम, जिन्हें लाल बाबा के नाम से जनता पुकारती थी, वे देश की आजादी के बाद संताल परगना सह हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद चुने गये […]

आनंद जायसवाल
लाल बाबा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभानेवाले बरियार व पाइका भी बने थे विधायक
दुमका : जंग-ए-आजादी में अहम भूमिका निभानेवाले लाल हेंब्रम, जिन्हें लाल बाबा के नाम से जनता पुकारती थी, वे देश की आजादी के बाद संताल परगना सह हजारीबाग संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद चुने गये थे. उनके भाई बरियार हेंब्रम और बेहद करीबी रहे पाइका मुर्मू को बाद के दिनों में विधानसभा जाने का भी अवसर मिला था. दोनों लाल बाबा की तरह स्वतंत्रता आंदोलन के जांबाज सिपाही थे. लाल हेंब्रम के पिता भादो हेंब्रम भी स्वतंत्रता आंदोलन में काफी सक्रिय रहे थे.
आसपास के इलाके में आदिवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ उकसाने के आरोप में भादो हेंब्रम को अंग्रेजों ने भागलपुर के जेल में नजरबंद कर दिया था. उन पर इतना जुल्म ढाया गया कि जेल में ही उनकी मौत हो गयी थी. इस पर भी अंग्रेजी हुकूमत का गुस्सा शांत नहीं हुआ था, तो सरायदाहा स्थित उनके घर को ध्वस्त कर दिया गया. तब किशोरावस्था में उनके बेटे लाल हेंब्रम व भाई बरियार हेंब्रम तथा सहयोगी पाइका मुर्मू ने अंग्रेजी हुकूमत को संताल परगना से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया.
लाल सेना बनाया लाल बाबा ने
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचारों से प्रभावित होकर लाल बाबा ने लाल सेना बनायी थी. लाल सेना के सारे सदस्य लाल कुरते में दस्ते के तौर पर होते थे, तो गांधी जी के सिद्धांतो पर चल कर वह नशा उन्मूलन के पैरोकार भी बन चुके थे.
ऐसे में अंग्रेजों ने इन दोनों को उनके सैन्य दस्ते के साथ घेरने की योजना बनायी. अंग्रेजों की नीति कामयाब भी रही. अंग्रेजों ने लाल बाबा, उनके भाई बरियार को घेर लिया. गोली भी चला दी. बरियार को कंधे पर गोली लगी, पर लाल बाबा कंधे में बरियार को लेकर द्वारिका नदी पार करते हुए अंग्रेजों से बच निकलने में कामयाब रहे.
1952 में लाल हेंब्रम सांसद बने थे : बाद में देश आजाद हुआ, तो कांग्रेस से लाल हेंब्रम 1952 में सांसद बन गये. पर छाया की तरह साथ रहनेवाले बरियार को कांग्रेस का दामन रास नहीं आया. वे तब जयपाल सिंह की झारखंड पार्टी में शामिल हो गये. भाई का साथ न मिला, तो लाल बाबा को 1957 के अगले चुनाव में हार का भी मुंह देखना पड़ा.
जीत झारखंड पार्टी की हुई. बरियार झारखंड पार्टी के साथ थे. 1962 में लाल बाबा ने चुनाव नहीं लड़ा. बरियार को उसी साल 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड पार्टी ने शिकारीपाड़ा से प्रत्याशी बनाया. जनता ने उनको सिर-आंखों पर बिठाया और 54.75 प्रतिशत मत देकर जीत दिलायी थी. पर जिस पार्टी में जाकर बरियार ने अपने भाई से उनकी दूरी बढ़ायी, उसी झारखंड पार्टी ने 1969 के चुनाव में उनको प्रत्याशी नहीं बनाया. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. पर, हार गये. 1972 का चुनाव बरियार ने ऑल इंडिया झारखंड पार्टी से लड़ा. पर वे तीसरे पायदान पर चले गये.
1977 में जनता पार्टी की लहर में हारे पाइका मुर्मू
लाल सेना के अग्रणी लोगों में से एक स्वतंत्रता सेनानी पाइका मुर्मू कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर 1969 में पहली बार 37.54 प्रतिशत वोट लाकर विधायक बने, तो 1972 में 35.30 प्रतिशत वोट लाकर दूसरी बार. पर 1977 का चुनाव जनता पार्टी की लहर में वे हार गये. उन्हें इस बार 22 प्रतिशत ही वोट मिले और उनसे दोगुना वोट लाकर महादेव मरांडी जीते.

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