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10 हजार विद्यार्थियों के लिए केवल 15 हैं स्थायी शिक्षक

लोहरदगा : लोहरदगा जिले में उच्च शिक्षा बदहाली के दौर से गुजर रहा है. जिले के इकलौते डिग्री कॉलेज बीएस कॉलेज में शिक्षा का हाल देख कर यह समझ में आ जायेगा कि क्यों शिक्षा की दुर्गति हमारे देश, राज्य और जिले में है. करीब 10 हजार विद्यार्थी इस कॉलेज में नामांकित हैं. इतनी तादाद […]

लोहरदगा : लोहरदगा जिले में उच्च शिक्षा बदहाली के दौर से गुजर रहा है. जिले के इकलौते डिग्री कॉलेज बीएस कॉलेज में शिक्षा का हाल देख कर यह समझ में आ जायेगा कि क्यों शिक्षा की दुर्गति हमारे देश, राज्य और जिले में है. करीब 10 हजार विद्यार्थी इस कॉलेज में नामांकित हैं.

इतनी तादाद में नामांकित विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए मात्र 15 स्थायी और 16 अस्थायी शिक्षक हैं. इसके अलावा महज छह बड़े और 10 छोटे कमरे हैं. शिफ्ट में पढ़ाई होने पर भी इतने विद्यार्थी कहां बैठेंगे. कई विभाग केवल एक शिक्षक के भरोसे है. उर्दू शिक्षक नहीं होने से पढ़ाई बंद है. भूगोल सहित कई महत्वपूर्ण विषयों को मान्यता नहीं मिली है.

कॉमर्स डिपार्टमेंट शिक्षक के अभाव के कारण तकरीबन पढ़ाई ठप है. तात्पर्य है कि रांची विश्वविद्यालय का यह अंगी भूत कॉलेज शिक्षा देनेवाला नहीं, बल्कि परीक्षा के एडमिट कार्ड और सर्टिफिकेट बांटने का सेंटर बनकर रह गया है. यह बात खुद शिक्षक स्वीकार करते हैं. कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो गोस्सनर कुजूर का कहना है कि संसाधन इतना कम है कि कॉलेज चलाने में काफी परेशानी होती है.
राज्यपाल से लेकर कई संस्थाओं और लोगों को समस्याओं से कई बार अवगत कराया जा चुका है. बरसों बाद 12 करोड़ की लागत से मल्टीपरपस हॉल निर्माण का रास्ता प्रशस्त हुआ है. इसमें 1500 विद्यार्थियों के बैठने की क्षमता होगी. यह बन जाये, तो थोड़ी राहत होगी.
परीक्षाओं के वक्त कॉलेज प्रशासन की हालत और खराब हो जाती है, क्योंकि कक्षाओं से नदारद रहनेवाले विद्यार्थियों की भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाता है. शिक्षक कहते हैं कि सभी विद्यार्थी कक्षा में उपस्थित होने लगे, तो उन्हें बैठाना मुश्किल हो जाएगा. जितने नामांकित हैं, उसके एक चौथाई को भी बैठाने की जगह नहीं है. समस्याओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी है. यूजीसी और यूनिवर्सिटी ने पीजी की पढ़ाई दो साल पहले शुरू तो करा दी, लेकिन शिक्षक को नहीं भेजा.
पहले से ही शिक्षकों की कमी है, अब जो हैं उन्हें यूजी (अंडर ग्रेजुएट) के साथ पीजी में भी पढ़ाना पड़ रहा है.बस कोरम पूरा किया जा रहा है. लाइब्रेरी में पीजी के लिए एक भी किताब नहीं है. नए और जरूरी एडिशन की किताबें नदारद हैं. तकनीक के इस दौर में जब तमाम अच्छे शिक्षण संस्थान ई लाइब्रेरी शुरू करा चुके हैं. इस कॉलेज की लाइब्रेरी काफी पुरानी है. किताबें अलमारी में सजी रहती है.
साठ के दशक में स्थापित इस कॉलेज में संसाधन का विकास समय के साथ नहीं हुआ. फर्नीचर, लैब अपग्रेडेशन, कैंपस, तकनीकी शिक्षा से जुड़े विषयों को शुरू कराने के मामले में कॉलेज फिसड्डी रह गया. बीसीए और बीबीए की पढ़ाई शुरू कराने की अनुमति मिली, लेकिन न शिक्षक आये, न कोर्स शुरू हुआ. बीएड की पढ़ाई शुरू कराने के लिए यूनिवर्सिटी एकेडमिक काउंसिल की सिफारिश भी धरी की धरी रह गयी है.
60 लाख रुपये की लागत से बना लैंग्वेज लैब धूल फांक रहा है. कंप्यूटर बेकार पड़ा हैं. खेल प्रतिभाएं भी हतोत्साहित हैं क्योंकि खेल प्रशिक्षक का पद सालों से खाली है. 70 के दशक में जब कॉलेज में क़रीब एक हजार विद्यार्थी हुआ करते थे, कर्मचारियों की संख्या उस वक्त से भी कम हो गयी है. स्वीकृत पद नहीं बढ़े, रिटायर और मृत कर्मचारियों के जगह नियुक्ति नहीं हुई.
हाल यह है कि मात्र पांच थर्ड ग्रेड और 12 फोर्थ ग्रेड कर्मचारियों के सहारे व्यवस्था की गाड़ी खींची जा रही है. विद्यार्थी कक्षाएं नहीं होने और ऑफिस के कामकाज में लेटलतीफी को लेकर आये दिन आंदोलित होते हैं. मगर कॉलेज प्रबंधन लाचारी और बेबसी जाहिर करने के अलावा और कुछ कर नहीं पाता.

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