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एनकाउंटर से न्याय व्यवस्था पर सवाल

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in हैदराबाद के बहुचर्चित रेप कांड में चारों अभियुक्तों को पुलिस के एक एनकाउंटर में मार दिये जाने पर देशभर में चर्चा हो रही है. एनकाउंटर के जरिये ‘तत्काल न्याय’ से पूरी न्याय प्रणाली पर देशव्यापी बहस छिड़ गयी है. एक ओर लोग इस एनकाउंटर की प्रशंसा कर […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
हैदराबाद के बहुचर्चित रेप कांड में चारों अभियुक्तों को पुलिस के एक एनकाउंटर में मार दिये जाने पर देशभर में चर्चा हो रही है. एनकाउंटर के जरिये ‘तत्काल न्याय’ से पूरी न्याय प्रणाली पर देशव्यापी बहस छिड़ गयी है.
एक ओर लोग इस एनकाउंटर की प्रशंसा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर अनेक लोग इसकी आलोचना भी कर रहे हैं. सोशल मीडिया तो इस विमर्श का केंद्र बन गया है. मुठभेड़ की खबर पूरे देश में आग की तरह फैली और स्थानीय लोग घटनास्थल पर पहुंच गये.
कुछेक लोग पुलिस पर फूल बरसाते भी नजर आये. घटनास्थल पर कुछ महिलाएं भी पहुंचीं, जो पुलिस को मिठाई खिलाती हुईं और तेलंगाना पुलिस जिंदाबाद के नारे भी लगाती नजर आयीं. घटनास्थल पर स्थिति यह हो गयी कि पुलिस को लोगों को संभालने के लिए बड़ी संख्या में फोर्स बुलानी पड़ी. हैदराबाद पुलिस के मुताबिक इन अभियुक्तों ने पुलिस जांच के दौरान पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया था और जवाबी कार्रवाई में चारों मारे गये.
यह एनकाउंटर हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर उसी स्थान पर हुआ, जहां दुष्कर्म हुआ था. इस घटना पर बहस का दौर चल ही रहा था, तब तक एक और दुखद खबर आयी कि दुष्कर्म के बाद जला दी गयी उन्नाव की रेप पीड़िता की दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गयी. इस मामले में भी मांग उठने लगी कि अभियुक्तों को हैदराबाद की तरह का ‘न्याय’ प्रदान कर दिया जाए.
इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसा चला, तो इससे हमारी पूरी न्याय व्यवस्था के लिए संकट उत्पन्न होने का खतरा है, लेकिन इस सवाल का जवाब भी देना जरूरी है कि क्या दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध की शिकार बेटी को तुरंत न्याय मिलने का अधिकार नहीं है? दरअसल, लोगों का यह रुख न्याय प्रणाली को लेकर हताशा से उपजा है.
बड़ी संख्या में लोगों का इसके पक्ष में आना सामाजिक व्यवस्था की विफलता का भी संकेत है. इसमें धीमी चाल से चलने वाली अदालतें, कार्रवाई में सुस्ती बरतने वाली हमारी पुलिस, कड़े कानून बनाने में विफल हमारे जनप्रतिनिधि और एेसी घटनाओं को रोकने में विफल समाज, सभी बराबर के दोषी हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद मेनका गांधी ने कहा कि वह इस एनकाउंटर के पूरी तरह खिलाफ हैं.
जो कुछ भी हुआ, वह बहुत ज्यादा भयानक है. आप कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते. अगर न्याय से पहले ही उन्हें बंदूकों से मार दोगे, तो फिर अदालत, पुलिस और कानूनी प्रणाली का क्या मतलब है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि एनकाउंटर पर लोग जश्न जरूर मना रहे हैं, लेकिन यह हमारे कानून और विधि व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है. उन्होंने कहा कि पूरे देश और समाज को इस बात पर चिंतन करना होगा कि न्याय प्रणाली को दुरुस्त कैसे किया जाए.
राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने हैदराबाद एनकाउंटर पर कहा- देर आये, दुरुस्त आये. इसके पहले जया बच्चन ने संसद में कहा था कि दुष्कर्म के अभियुक्तों को जनता के बीच लाकर उन्हें लिंच कर देना चाहिए. जानी मानी बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने ट्वीट किया- बेहतरीन काम हैदराबाद पुलिस, हम आपको सलाम करते हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि न्याय कभी आनन-फानन में नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर न्याय बदले की भावना से किया जाए, तो अपना मूल चरित्र खो देता है.
आंकड़ों से शायद हमें इस हताशा को समझने में मदद मिले. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 में अदालतों ने दुष्कर्म के 27.4 फीसदी मामलों में फैसला सुनाया गया था.
2017 में दुष्कर्म के मामलों में फैसला सुनाने की गति मामूली तेज हुई और 31.8 फीसदी तक हो गयी, लेकिन पिछले समय से एक और चिंताजनक खबर आ रही है कि अपराधी सबूत मिटा देने की गरज से दुष्कर्म पीड़िता को जला दे रहे हैं. देश में इस तरह के चल रहे कुल 574 मामलों में से 90 फीसदी अब भी अदालतों में लंबित हैं. ऐसे तीन मामलों की स्थिति पर नजर डालते हैं, जिन्होंने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. सन् 2012 में दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ दुष्कर्म किया गया था. बाद में उसकी मौत हो गयी.
इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था. इसके बाद रेप कानूनों को कड़ा किया गया. दुष्कर्म के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किये जाने की व्यवस्था की गयी. इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से एक नाबालिग था. दिल्ली पुलिस ने पांच लोगों के खिलाफ हत्या, रेप और अन्य मामलों में चार्जशीट दाखिल की. 2013 में फास्ट ट्रैक अदालत ने इन्हें दोषी पाया और मौत की सजा सुनायी. 2013 में ही हाइकोर्ट ने इस सजा की पुष्टि कर दी. इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.
सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पर रोक लगा दी. दो साल बाद चली सुनवाई के बाद सर्वोच्च अदालत ने मौत की सजा को बहाल रखा. इसके बाद तीन दोषियों ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी. 2018 में पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गयी. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति से दया की अपील की, जिस पर फैसला आना बाकी है.
दिल्ली का एक ओर चर्चित मामला था- सन् 2009 में आइटी प्रोफेशनल जिगिशा घोष की हत्या कर दी गयी थी. एक आइटी कंपनी में ऑपरेशन मैनेजर 28 साल की जिगिशा को 18 मार्च, 2009 की रात में तब अगवा कर लिया गया था, जब वह अपने दफ्तर की कैब से घर के बाहर उतरी. तीनों आरोपी जिगिशा को अपनी सेंट्रों कार से गुडगांव और दिल्ली के विभिन्न इलाकों में घुमाते रहे. उसके एटीएम कार्ड से पैसे निकाले, उसके मोबाइल और गहने छीनने के बाद गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी. हत्या के बाद शव को सूरजकुंड में फेंक दिया.
अगले दिन सुबह एक मॉल में जिगिशा के क्रेडिट कार्ड से अभियुक्तों ने शापिंग की. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर तीनों कातिलों को पकड़ा. इस मामले में निचली अदालत ने दो अभियुक्तों को फांसी और एक को उम्र कैद की सजा सुनायी थी. बाद में दिल्ली हाइकोर्ट ने दोनों दोषियों की फांसी की सजा को घटाकर उम्र कैद कर दिया और तीसरे की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी. फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है. दिल्ली की टीवी पत्रकार सौम्या विश्वनाथन हत्या का मामला भी सुर्खियों में रहा.
30 सितंबर, 2008 को जब सौम्या अपनी ड्यूटी खत्म कर देर रात अपनी कार से घर जा रही थीं, तब उनकी हत्या कर दी गयी. पुलिस ने तीन लोगों को आरोपी बनाया, जो बाद में जिगिशा घोष की हत्या के भी अभियुक्त पाये गये. 2008 से इस मामले की सुनवाई अभी निचली अदालत में ही चल रही है.
यह हाल तो देश की राजधानी दिल्ली के तीन चर्चित मामलों का है. न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए, लेकिन इसका जवाब किसी भी स्थिति में एनकाउंटर तो नहीं है. दुष्कर्म की सभी घटनाएं सभ्य समाज को शर्मसार करती हैं. सरकारों, न्यायपालिका और समाज का यह दायित्व है कि इन घटनाओं का कोई भी दोषी बच कर नहीं निकल पाना चाहिए.

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