कोलकाता : पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में जो बड़ा झटका लगा था, उससे उबरने में एनआरसी विरोधी अभियान और लगातार ‘बंगाली गौरव’ की बात करना पार्टी के लिए काफी सहायक साबित हुआ, जिनके जरिये पार्टी अपना पुराना गौरव और विश्वास हासिल करने में कामयाब रही.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि तीन महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों- करीमपुर, कालियागंज और खड़गपुर सदर में तृणमूल की जीत इस बात का संकेत देती है कि लोकसभा चुनाव में पार्टी को अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी भाजपा से कड़ी चुनौती मिलने के बाद राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन हासिल करने के लिए पार्टी ने सार्थक प्रयास किये हैं.
इस साल की शुरुआत में, भाजपा ने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत दर्ज कर ममता बनर्जी के गढ़ में भारी सेंध लगा दी थी और तृणमूल की झोली में सिर्फ 22 सीटें ही आयी थीं, जबकि 2014 में टीएमसी ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की थी. राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक ने बताया कि ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी अपने राजनीतिक भाग्य को बदलने के लिए जून से कड़ी मेहनत कर रही है.
उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने संसदीय चुनाव के बाद भाजपा से हारी सभी सात नगरपालिकाओं पर फिर से सफलतापूर्वक अपना नियंत्रण बनाया. मल्लिक ने कहा, ‘ये संकेत हैं कि आम लोगों के साथ-साथ हमारे नेता, जो भाजपा में चले गये थे, खुश नहीं हैं और पार्टी में वापस लौटना चाहते हैं. हमने भगवा पार्टी से निपटने के लिए दोतरफा रणनीति लागू की- अपनी कार्य योजना को संशोधित किया और संगठनात्मक कमियों को दूर किया.’