रांची : संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता के 30 वर्ष पूरे होने के मौके पर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू की उपस्थिति में एक कार्यक्रम का आयोजन यहां राजभवन में किया गया, जिसमें यूनिसेफ के बाल पत्रकारों के अलावा, विभिन्न विभागों के अधिकारी तथा यूनिसेफ झारखंड के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इस अवसर पर बाल पत्रकारों ने बाल अधिकारों के लिए उनके द्वारा किये गये कार्यों एवं अनुभवों को साझा किया.
दुनिया के बच्चों की आबादी का पांचवां हिस्सा भारत में रहता है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते के प्रस्ताव पर 1992 में हस्ताक्षर किया तथा बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण एवं संरक्षण के अधिकारों को लागू करने की प्रतिबद्धता जतायी. संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता (यूएनसीआरसी) इतिहास का सबसे व्यापक रूप से प्रमाणित मानवाधिकार संधि है, जिसने पिछले 30 वर्षों में दुनिया में बच्चों की स्थिति को बदलने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.
इस अवसर बच्चों के अधिकारों के प्रति झारखंड सरकार की प्रतिबद्धता को जाहिर करते हुए झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि 38 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाला खनिज संपन्न राज्य झारखंड, जिसका एक बड़ा हिस्सा दूरदराज इलाकों में रहता है, वहां समाज के सभी वर्गों के सहयोग से ही हम बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि आज हम यहां बाल अधिकारों, जिसकी नींव 30 साल पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा रखी गयी थी को याद करने और इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के लिए एकत्र हुए हैं. हम सबको मिलजुलकर एक साथ काम करना होगा, क्योंकि केवल सरकार के प्रयासों से ही बच्चों के लिए निर्धारित इन लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो सकती. मुझे विश्वास है कि सबके समर्थन और सहयोग से हम बच्चों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील समाज का निर्माण कर सकते हैं. जैसा कि बाल अधिकार समझौता में भी वर्णित है.
मौके पर यूनिसेफ झारखंड के प्रमुख प्रसांता दास ने बाल अधिकारों की पैरोकारी करने और लोगों में जागरुकता लाने के लिए बाल पत्रकारों की सराहना की. उन्होंने यूनिसेफ की पहल ‘जेनरेशन अनलिमिटेड’ एवं ‘युवा’ पहल की रूपरेखा के बारे में बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य युवाओं को उनके उम्र के अनुरूप कौशल एवं रोजगार परक शिक्षा में प्रशिक्षित करना है, ताकि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें और एक योग्य नागरिक बन सकें.
उन्होंने कहा कि, ‘यूनिसेफ, भारत सरकार समेत संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों, नागरिक समाज संगठनों, निजी क्षेत्र तथा युवाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि किशोरों और युवाओं की समस्याओं का समाधान किया जा सके तथा उनको अवसर एवं मंच प्रदान किया जा सके. हम चाहते हैं कि युवा और किशोर दक्ष बनें, ताकि वे इतने सक्षम हों कि जब वे शिक्षा समाप्त कर रोजगार के क्षेत्र में जाएं या फिर बचपन से प्रौढावस्था में कदम रखें तो हुनर एवं कौशल से युक्त हों, ताकि उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़े.
बाल पत्रकार एवं सरकारी स्कूल पिर्रा, कांके की कक्षा आठ की छात्रा कुशमा कुमारी ने अपने सपनों और उसकी राह में आने वाली बाधाओं का जिक्र करते हुए कहा कि मैं एक आर्मी ऑफिसर बनना चाहती हूं, लेकिन मेरे सपनों की पूर्ति की राह में कई बाधाएं हैं. मेरे स्कूल में अंग्रेजी तथा कंप्यूटर की शिक्षा नहीं है, जो कि बेहतर नौकरी के लिए आवश्यक है. इसके अलावा मेरे समुदाय में लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित नहीं किया जाता. कई लड़कियों की शादी कक्षा 8 की पढ़ाई के बाद कर दी जाती है. मैं चाहती हूं कि प्रत्येक लड़की को बेहतर शिक्षा और समान अवसर मिले, ताकि वह अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति कर सके. इसके अलावा, किसी भी लड़की का बाल विवाह नहीं कराया जाए, क्योंकि यह उनसे बचपन छीन लेता है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर देता है.
इस अवसर पर माननीय राज्यपाल ने यूनिसेफ की ‘वॉलेंटियर फॉर चाइल्ड राइट्स’ अभियान के विजेताओं को अवार्ड देकर सम्मानित किया तथा एक कॉफी टेबल बुक ‘फॉर एवरी चाइल्ड, एवरी राइट’ का भी विमोचन किया, जिसमें बाल पत्रकारों की सफलता की कहानियां, चित्रांकन, तस्वीरें, वीडियो साक्षात्कार तथा कविताएं संग्रहित हैं, जो कि उनके द्वारा किये गये कार्यों का संग्रह है, जो कि उन्होंने बाल अधिकारों के बारे में जागरुकता के प्रयास के लिए किया है.