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आत्महत्याओं में चिंताजनक बढ़त, रोकथाम के त्वरित उपायों की दरकार

तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति को लेकर हमें तुरंत सावधान होने की जरूरत है. यह एक सामुदायिक और चिकित्सकीय आपात स्थिति का रूप ले चुकी है. व्यक्ति और समाज के तौर पर यह समझा जाना चाहिए कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि अवसाद, चिंता और मानसिक बेचैनी पर नियंत्रण से ही […]

तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति को लेकर हमें तुरंत सावधान होने की जरूरत है. यह एक सामुदायिक और चिकित्सकीय आपात स्थिति का रूप ले चुकी है. व्यक्ति और समाज के तौर पर यह समझा जाना चाहिए कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि अवसाद, चिंता और मानसिक बेचैनी पर नियंत्रण से ही रास्ता निकल सकता है.
न तो परेशान व्यक्ति को मदद मांगने में कोई हिचक होनी चाहिए और न ही उसके परिजनों व मित्रों को किसी संकेत के प्रति लापरवाह होना चाहिए. सरकार को अधिक से अधिक काउंसलिंग केंद्र खोलने व जागरूकता का प्रसार करने का प्रयास करना चाहिए. आत्महत्या से जुड़े अहम तथ्यों और सूचनाओं के साथ प्रस्तुत है आज का इन डेप्थ.
भारत में खुदकुशी दर वैश्विक दर से अधिक
वर्ष 2016 पर आधारित डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की आत्महत्या दर वैश्विक दर से अधिक है. 16.5 है आत्महत्या की दर भारत में प्रति 1,00,000 व्यक्ति पर. यह न सिर्फ वैश्विक (10.5) बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया की भी सर्वाधिक ऊंची आत्महत्या दर है. दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में भारत के बाद सबसे ज्यादा खुदकुशी दर श्रीलंका (14.6) और थाईलैंड (14.4) की है.
14.7 है महिला आत्महत्या दर भारत में प्रति 1,00,000 पर, जो विश्व में तीसरी सबसे ऊंची महिला आत्महत्या दर है. लेसोथो (24.4) और दक्षिण कोरिया (15.4) इस मामले में विश्व में क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं.
क्या कहती है लॉन्सेट पब्लिक हेल्थ की रिपोर्ट
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी (1990 से 2016) के आधार पर लॉन्सेट पब्लिक हेल्थ की बीते वर्ष जारी रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में सर्वाधिक आत्महत्याएं भारत में हुई थीं. विश्वभर में 8,17,000 लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि भारत में यह संख्या 2,30,314 थी.
आत्महत्या करनेवाली प्रति तीन महिलाओं में एक भारत से थी वर्ष 2016 में. भारत में वर्ष 2016 में होनेवाली मृत्यु का नौवां प्रमुख कारण खुदकुशी थी.
आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2016 में आत्महत्या से होनेवाली मृत्यु एड्स से होने वाली मृत्यु (62,000) से और वर्ष 2015 में मातृ मुत्यु संख्या (45,000) से अधिक थी.
भारत में महिला आत्महत्या वैश्विक औसत से 2.1 गुना अधिक है.
भारत में खुदकुशी में विवाहित महिलाओं का प्रतिशत बहुतज्यादा है.
वैश्विक महिला आत्महत्याओं में 37 प्रतिशत भारतीय
हमारे देश में विश्व की सबसे अधिक आत्महत्याएं होती हैं. बीते वर्ष लॉन्सेट द्वारा जारी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडीज (1990-2016) के अनुसार, भारत में सबसे अधिक महिलाएं और पुरुष आत्महत्या करते हैं.
दुनिया की कुल महिलाओं द्वारा की जानेवाली आत्महत्याओं में 37 प्रतिशत भारतीय है. हालांकि, वर्ष 1990 के बाद से भारतीय महिलाओं की आत्महत्या में कमी आयी है, लेकिन दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले यह गिरावट काफी कम है.
भारतीय महिलाओं में क्यों बढ़ रही है आत्महत्या की प्रवृत्ति
साल 2016 की रिपोर्ट में बताया गया कि आत्महत्या कुल मौतों में नौवां सबसे बड़ा कारण है. ज्यादातर मामलों में पीड़ित शिक्षित थी और उनके पास सफल करियर था. रिपोर्ट में बताया गया कि आत्महत्या करनेवाली अधिकतर महिलाएं विवाहित और मध्यम वर्गीय परिवार से थीं.
मुंबई स्थित आत्महत्या से बचानेवाली हॉटलाइन आसरा के डायरेक्टर जॉनसन थॉमस का मानना है कि वैश्वीकरण और मीडिया द्वारा दिखायी जा रही आभासी दुनिया ने महिलाओं की महत्वकांक्षा को बढ़ा दिया है, जबकि समाज इस बदलाव को स्वीकार करने में असफल रहा है. इसलिए महत्वाकांक्षा और वास्तविकता के बीच में बड़ा अंतर बन गया है. यही अवसाद का कारण बन रहा है. उनका मानना है कि एकल परिवार के बढ़ते चलन से महिलाओं पर कमाई का दबाव बढ़ा है. घर संभालने की जिम्मेदारी भी महिलाओं पर है. अब महिलाओं पर करियर और घर की दोहरी जिम्मेदारी है.
11,000 किसानों ने ली खुद की जान
कृषि से जुड़े कुल 11,379 लोगों ने अपनी जान ले थी 2016 में, जिनमें 6,270 किसान (5,995 पुरुष व 275 महिलाएं) और 5,109 कृषि मजदूर (4,476 पुरुष व 633 महिलाएं) शामिल थे. यह देश की कुल आत्महत्या (1,31,008) का 8.7 प्रतिशत था. पश्चिम बंगाल, बिहार, नागालैंड, चंडीगढ़, दादर व नगर हवली, दमन व दीव, दिल्ली और लक्षद्वीप में इस वर्ष एक भी किसान व कृषि मजदूर के आत्महत्या के मामले सामने नहीं आये थे.
अवसाद के लक्षण
परिजनों और दोस्तों से दूरी
व्यवहार में बदलाव (भय, दुख और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण)
खाने और सोने की आदतों में बदलाव
ड्रग और शराब सेवन की आदत
खतरनाक बर्ताव
पहले पसंद किये जानेवाले काम से दूरी बनाना
क्या कहती है एनसीआरबी रिपोर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट जहां भारत में आत्महत्या के मामले बढ़ने की बात करती है, वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूराे के आंकड़े इसमें दो प्रतिशत गिरावट को दर्शाते हैं. एनसीआरबी के अनुसार, 2015 की तुलना में 2016 में आत्महत्या में दो प्रतिशत की कमी आयी है, जबकि आत्महत्या की दर में 0.3 की कमी आयी है.
पांच राज्यों में दर्ज हुए 50 प्रतिशत मामले
वर्ष 2016 में देशभर में हुई आत्महत्याओं का 51.1 प्रतिशत केवल पांच राज्यों में था. शेष 48.9 प्रतिशत 24 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में दर्ज हुए. इस वर्ष सर्वाधिक खुदकुशी महाराष्ट्र (17,195) में हुई, जो कुल आत्महत्या का 13.1 प्रतिशत था. 15,182 (11.6 प्रतिशत) मामले के साथ तमिलनाडु दूसरे, 13,451 (10.3 प्रतिशत) के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे, 10,687 (8.2 प्रतिशत) के साथ कर्नाटक चौथे और 10,442 (8.0 प्रतिशत) के साथ मध्य प्रदेश पांचवें स्थान पर था.
नोट : झारखंड में इस वर्ष जहां 1,292 लोगों ने अपनीजान ले ली, वहीं बिहार में यह संख्या 411 रही.
निम्न आय वाले देशों में आत्महत्या का प्रतिशत ज्यादा
8,00,000 लोग प्रति वर्ष खुदकुशी करते हैं दुनियाभर में.
2,00,000 लोगों (15 से 29 आयु वर्ग) ने आत्महत्या की 2016 में. सड़क दुर्घटना के बाद यह मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण रहा.
15 से 19 आयु वर्ग में जान जाने की यह तीसरी प्रमुख वजह रही. पुरुषों में यह दूसरी प्रमुख वजह (सड़क दुर्घटना के बाद), जबकि महिलाओं में जान जाने की (गर्भधारण से जुड़ी समस्या के बाद) तीसरी प्रमुख वजह रही.
50 प्रतिशत से अधिक आत्महत्या के मामलों में 45 वर्ष से कम उम्र के लोग शामिल होते हैं दुनियाभर में. खुदकुशी करनेवाले किशोरों में 90 प्रतिशत निम्न व मध्यम आय वाले देश के होते हैं.
दुनिया की अधिकांश आत्महत्याएं (79 प्रतिशत) निम्न व मध्यम आय वाले देशों में होती है, लेकिन आयु-मानकीकृत आत्महत्या दर (प्रति 1,00,000 पर 11.5) उच्च आय वाले देश में अधिकतम है. उच्च आय वाले देशों में पुरुष खुदकुशी दर अधिकतम और महिला दर
निम्नतम है.
11.5 (प्रति 1,00,000 पर) के साथ महिला खुदकुशी दर सर्वाधिक है दक्षिण-पूर्व एशिया में, जो 7.5 के वैश्विक महिला औसत से कहीं
अधिक है.स्रोत : विश्व स्वास्थ्य संगठन
आत्महत्या रोकने की जिम्मेदारी सबकी
अगर हमारे आसपास कोई व्यक्ति अवसाद में है, तो हमारी जिम्मेदारी है कि उसे इस स्थिति से निकलने में मदद करें. यह कार्य व्यक्तिगत, शैक्षणिक और सामुदायिक स्तर पर होना चाहिए.
व्यक्तिगत या पारिवारिक स्तर पर
अगर कोई करीबी तनाव में है, तो उसके लिए सबसे पहली और जरूरी मदद है कि उसे ‘ध्यानपूर्वक सुना जाये’. उसकी समस्याओं को समझने की कोशिश करें और सहयोगी भाव रखें और कोई पूर्वाग्रह न रखें.
कोई समस्या लेकर आपके पास आयेगा, इसका इंतजार करने की बजाय मदद की पहल खुद करें.
आत्महत्या मेडिकल इमरजेंसी है, तत्काल स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से संपर्क करें. ऐसे में साइकियाट्रिस्ट या साइकोलॉजिस्ट की मदद लें. मेडिकेशन, थेरेपी और फैमिली काउंसलिंग से स्थिति को संभाला जा सकता है.
यह समझाने की कोशिश करें कि हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं रहती. मरीज को अकेलेपन का एहसास न होने दें.
शैक्षणिक स्तर(स्कूल/ कॉलेज) पर
अनिवार्य रूप से मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है. विशेषकर किशोरों को बदलावों के बारे में और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने जैसी जानकारी देना जरूरी है.
शैक्षणिक संस्थानों में लाइफ स्किल प्रोग्राम, वर्कशॉप, स्वयं जागरूकता, स्ट्रेस मैनेजमेंट, क्रिटिकल थिंकिंग आदि के बारे में बताया जाना चाहिए.
शिक्षकों समेत सभी स्टाफ को बच्चों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए. बकायदा सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी के साथ स्कूल में साइकोलॉजिस्ट, काउंसलर और स्कूल एडमिनिस्ट्रेटर का होना आवश्यक है. बच्चों के साथ निरंतर संवाद और बच्चों के बर्ताव पर शिक्षकों की बारीक नजर होनी चाहिए.
सामुदायिक स्तर पर
किसी व्यक्ति को एक छोटी सी उम्मीद जिंदगी के सकारात्मक हिस्से को देखने का नजरिया दे देती है. संभावित खतरे से घिरे इंसान के लिए साइकोलॉजिस्ट या सोशल नेटवर्क की बहुत बड़ी अहमियत है, लेकिन आपका एक छोटा सहयोग भी बदलाव ला सकता है.
प्रति वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (आईएएसपी) द्वारा 10 सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाया जाता है. इस दौरान स्ट्रीट प्ले, प्रदर्शनी, रेडियो और टीवी शो के माध्यम से आम जनता को जागरूक किया जाता है.
झारखंड में 55 प्रतिशत बढ़े आत्महत्या के मामले
वर्ष 2015 की तुलना में 2016 में जिन राज्यों में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं, उनमें 61.9 प्रतिशत के साथ नागालैंड पहले और 54.7 प्रतिशत के साथ झारखंड दूसरे स्थान पर है. इस सूची में 37.3 प्रतिशत के साथ पंजाब तीसरे, 18.2 प्रतिशत के साथ हिमाचल प्रदेश चौथे और 16.8 प्रतिशत के साथ दिल्ली पांचवें स्थान पर है.
बिहार में कम हुए हैं आत्महत्या के मामले
वर्ष 2015 की तुलना में 2016 में जिन राज्यों में आत्महत्या के मामले में सबसे ज्यादा कमी दर्ज हुई उनमें उत्तराखंड (68.0 प्रतिशत), दादर व नगर हवेली (48.1 प्रतिशत), लक्षद्वीप (40.0 प्रतिशत), पुद्दुचेरी (21.1 प्रतिशत) अौर बिहार (20.3) शामिल हैं.
स्रोत : एनसीआरबी

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