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जीवित रहे लोकतंत्र की आत्मा
महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच जो द्यूत क्रीड़ा (जुआ) खेली गयी, उसमें राजनीतिक आकांक्षाओं की खातिर सारी हदें पार कर दी गयीं. इस खेल में अप्रत्यक्ष रूप से पितामह भीष्म जैसे गुणी और प्रबुद्ध जनों ने अपनी कुछ मजबूरियों से खुली आंखों से इस कुकृत्य को होने दिया, परंतु आज 21वीं सदी के […]
महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच जो द्यूत क्रीड़ा (जुआ) खेली गयी, उसमें राजनीतिक आकांक्षाओं की खातिर सारी हदें पार कर दी गयीं. इस खेल में अप्रत्यक्ष रूप से पितामह भीष्म जैसे गुणी और प्रबुद्ध जनों ने अपनी कुछ मजबूरियों से खुली आंखों से इस कुकृत्य को होने दिया, परंतु आज 21वीं सदी के उत्तरार्ध में जो कुछ महाराष्ट्र में सत्ता की खातिर हो रहा है, वह बेहद शर्मनाक है.
आज के भीष्म का चुपचाप इस खेल को देखना समझ से परे है. भारत एक लोकतंत्र है, राजतंत्र नहीं, जो जनता के जनादेश को हाशिये में रखकर सत्ता के लिए हर पार्टी अपनों को दांव में लगाकर राजनीति का गंदा खेल खेल रहे हैं और हमारे संवैधानिक उच्च पदों पर बैठे आधुनिक भीष्म बने बैठे हैं. इस जुए के खेल में सभी पार्टियों की राजनीतिक अधोगति सामने आ रही है. संविधान में ऐसे प्रावधान किये जायें कि जनादेश का अपमान न हो और लोकतंत्र की आत्मा जीवित रह सके.
देवेश कुमार देव, गिरिडीह, झारखंड
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