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बीएयू ने सूबे में पहली बार की बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन की ट्रेनिंग की शुरुआत

कम लागत और कम समय में अधिक मछली का उत्पादन कर सकेंगे किसान केवीके में बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन का जल्द शुरू होगा प्रशिक्षण सबौर : बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (बीएयू) की देखरेख में बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन की शुरुआत की गयी है. भागलपुर का यह केवीके पूरे राज्य में मत्स्य पालकों […]

कम लागत और कम समय में अधिक मछली का उत्पादन कर सकेंगे किसान

केवीके में बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन का जल्द शुरू होगा प्रशिक्षण
सबौर : बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (बीएयू) की देखरेख में बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन की शुरुआत की गयी है. भागलपुर का यह केवीके पूरे राज्य में मत्स्य पालकों को बायो फ्लॉक विधि से मछली की ट्रेनिंग देने वाली जगह होगी. जल्द ही वृहद स्तर पर बीएयू की निगरानी में सबौर केवीके युवा किसानों को बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन की ट्रेनिंग देने की शुरुआत करेगा. इसे मत्स्य पालन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव माना जा रहा है.
क्या है बायो फ्लॉक विधि : यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें टैंक के अंदर मछली पालन किया जाता है. टैंक में पहले बैक्टीरियल कल्चर का ग्रोथ किया जाता है. इसमें सामान्य रूप से पाये जाने वाले तालाब की अपेक्षा कई गुना अधिक उत्पादन होता है. जब हम मछलियों को टैंक के अंदर डालते हैं, तब मछलियां अमोनिया गैस का उत्सर्जन करती हैं. साथ ही जो अपच्य भोज्य पदार्थ होते हैं, उसको ये बैक्टीरियल कल्चर उसमें पाये जाने वाले नाइट्रोजन व ऑर्गेनिक कार्बन का इस्तेमाल कर उसे प्रोटीन सेल्स में परिवर्तित कर देती हैं. जो मछलियों के भोजन के रूप में काम आती हैं. इससे भोजन पर आने वाले खर्च में काफी कमी आती है.
इस विधि से मछली पालन से लो प्रोटीन फीड का इस्तेमाल किया जाता है, जो मछली पालन की लागत को कम कर देता है. इस विधि की सबसे खास बात यह है कि जहां तालाब के अनुकूल जमीन की उपलब्धता नहीं होती है, वहां भी मछली पालन बड़ी आसानी से किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से तेलापिया, श्रीम्प और सतह पर भोजन करने वाली मछलियों का पालन बड़ी आसानी से किया जा सकता है.
1.30 लाख की लागत से तैयार होता है तीन टैंक : लगभग 1.30 लाख की लागत से तीन बायो फ्लाॅक टैंक का निर्माण एवं संचालन बड़ी आसानी से किया जा सकता है. मत्स्य पालकों व किसानों को ध्यान देने योग्य बातें यह हैं कि कभी भी इसमें जीरा व फ्राइ मछलियों के बच्चे नहीं डालना है और अधिक बेहतर यह होता है कि अंगुलिका मछली के 3 माह के बच्चे के पालन से अत्यधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं.
युवा मत्स्य पालकों के लिए बेहतर अवसर : केवीके के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ विनोद कुमार ने बताया कि इस तकनीक के माध्यम से क्षेत्र के युवा मछली पालन कर अपना स्वरोजगार स्थापित कर सकते हैं. इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर केंन्द्र में बायो फ्लॉक प्रदर्शन इकाई की स्थापना की गयी है और 10 से 15 दिनों के अंदर मछली पालन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा.

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