उर्मिला कोरी
सिद्धार्थ मल्होत्रा और तारा सुतारिया स्टारर फिल्म ‘मरजावां’ सिनेमाघरों में है. पावर पैक्ड एक्शन से भरपूर यह फिल्म मिलाप जावेरी ने बनायी है. इसमें रितेश देशमुख व रकुल प्रीत सिंह भी अहम रोल में हैं. सिद्धार्थ इस फिल्म को 70-80 के दशक वाली लार्जर देन लाइफ करार देते हैं.
फेस्टिवल्स में अपने होमटाउन दिल्ली जाना होता है?
दिल्ली में अब जाता हूं, तो बहुत अलग-सा लगता है, क्योंकि सारे दोस्त अपनी-अपनी जिंदगी में मशरुफ हो गये हैं. दिल्ली भी बदल गयी है. जगह-जगह फ्लाईओवर बन गये हैं, तो रास्ते भी अलग हो गये हैं. मेरा अब घर मुंबई ही है. यहीं सबकुछ सेलिब्रेट करता हूं. बच्चन साहब के घर दिवाली पर जाना एक रिवाज बन चुका है. सोनम के घर भी जाता हूं. पहले इंडस्ट्री में होली मनाने का रिवाज था. अब होली वाला कल्चर तो रहा नहीं. हां, अगर मेरा इतना बड़ा घर हो गया कि लोगों को बुला सकूं, तो जरूर एक बार फिर से होली सेलिब्रेशन का कल्चर शुरू करना चाहूंगा.
‘मरजावां’ में आपको एंग्रीमैन के तौर पर प्रस्तुत किया गया है. कैसा लगा?
मैं और निर्देशक मिलाप जावेरी जी 70 और 80 के दशक के सिनेमा के फैन रहे हैं, जो लार्जर देन लाइफ हुआ करती थीं. उस समय की डायलॉगबाजी कमाल की थी. लड़की के लिए हीरो विलेन से लड़ता था. हमारी पिक्चर बेशक आज के दौर की एक इंटेंस लवस्टोरी है, लेकिन वह उसी दौर के सिनेमा से प्रभावित है. मुझे बहुत मजा आया, क्योंकि बचपन में मैं बच्चन साहब की ‘हम’, ‘चुपके चुपके’, ‘अग्निपथ’ आदि फिल्में बार-बार देखा करता था. ‘हम’ में एक सीक्वेंस है, जहां अमिताभ बच्चन ‘बख्तावर’ बोलते हुए जोर से भागते नजर आते हैं. मैं बचपन में अपने दोस्तों को वह डायलॉग बहुत सुनाता था. छोटा था तो मुझे लगता था कि ‘बख्तावर’ कोई गाली है. बाद में समझ आया कि वह विलेन का नाम है. मेरे घर पर इस बात को लेकर सब मेरा मजाक उड़ाते थे.
एक्टर बन जाने पर फैमिली आपको एप्रीशिएट करती है?
मैं 21 साल का था जब मुझे मुंबई आने के लिए पहली फिल्म मिली थी. पहले घरवाले खिलाफ थे. महीने लग गये उन्हें समझाने में. अब जाकर उन्हें समझ आने लगा कि मैं कुछ कर रहा हूं. मेरी फैमिली मेरी तारीफ नहीं करती. वे दर्शक की तरह मेरे काम को देखते हैं. मेरी मां अपने दोस्तों के साथ मेरी फिल्म देखने जाती हैं और फिल्म में मेरी खामियों पर वह डिस्कस भी करती हैं. वैसे मां बोलती हैं कि मुझे लेकर उनको टेंशन नहीं. कहती हैं- तुमने अपना कैरियर खुद चुना. मुंबई में घर भी ले लिया, अब शादी भी खुद ही कर लेना.
आप लव मैरिज करेंगे या अरेंज? शादी के लिए कैसी लड़की चाहेंगे?
मुझे लगता है कि मैं अरेंज नहीं, बल्कि लव मैरिज करूंगा. मेरे माता-पिता ने लव मैरिज की है. उनको मैंने पूरी जिंदगी में हमेशा खुश देखा है, तो मैं भी अपनी शादी से यही चाहता हूं. मैंने सपने में ऐसे कोई लड़की नहीं देखी है कि उसी से मुझे शादी करना है. हां, एक कनेक्शन जुड़ना चाहिए बस. मैं एक ऐसा साथी चाहता हूं, जो अपने जज्बातों को लेकर ईमानदार हो, फिर चाहे वह किसी भी बैकग्राऊंड से हो, वह मायने नहीं रखता. मुझे लगता है कि जब मैं किसी लड़की से बात करता हूं, तो उसकी आंखों में देख कर मुझे बहुत कुछ समझ आने लगता है. वैसे 40 की उम्र से पहले तक शादी कर लेने का प्लान है.
‘मरजावां’ में आपको क्या चुनौतियां दिखती हैं?
विश्वास बहुत जरूरी है. अगर आपको नहीं लगता कि आप दस लोगों को मार सकते हैं या टैंकर को खींच सकते हैं या फिर हेलमेट एक ही बार में हाथ से तोड़ सकते हैं, तो दर्शक भी पचा नहीं पायेगा. मिलाप जी और मैं फिल्म में इन सीक्वेंस को डालते हुए बहुत उत्साहित थे, क्योंकि फिल्म को ये सीन्स और इंटरटेनिंग बनाते हैं.
तीन फुटिया विलेन के साथ शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
रितेश जी को तीन फुट का विलेन बनाना बहुत मुश्किल था. हमने बहुत कम बजट में इस फिल्म को किया है, तो हमारे लिए बहुत मुश्किल था रितेश जी को बौना दिखाना. फिजिकल एक्शन फिल्म में उनके हाइट की वजह से ज्यादा नहीं है. उनके किरदार का प्रभाव जबरदस्त है. जिनलोगों को हम एक विलेन में पसंद आये थे, वे हमें इस फिल्म में नये अवतार में देखना जरूर पसंद करेंगे. (हंसते हुए) रितेश जी जब भी आते हैं, मेरी लव स्टोरी खराब करके चले जाते हैं. अगली बार लड़की जिंदा रखूंगा.
ऑफ कैमरा रितेश के साथ कैसी बॉन्डिंग रही?
जितनी सीरियस यह फिल्म है, ऑफ कैमरा उतने ही हंसी-मजाक में हमने काम किया है. हमारे निर्देशक मिलाप जावेरी जानते हैं कि किस तरह से अपने एक्टर्स का मूड लाइट रखा जाता है. रितेशजी बहुत मजाकिया हैं. फिल्म टेक्निली वैसी थी, तो कभी वे घुटने पर होते थे, कभी सीधे खड़े. फिर भी मैं नीचे देखकर ही बात करता था, ताकि शूटिंग में आसानी हो. लेकिन इस पर रितेश जी बहुत हंसते थे कि अरे देख कहां रहा है. कभी ग्रीन स्क्रीन पर उनके बिना एक्टिंग की है, लेकिन उनको सोचकर ही पूरा सीन करना था. रितेश जी का किरदार बहुत ही पावरफुल है. वह बौना है, ऊपर से निगेटिव. वैसे निर्देशक मिलाप जावेरी को इसका आयडिया सुभाष घई की अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म ‘देवा’ से आया था. उस फिल्म में अमिताभ के अपोजिट लिलिपुट विलेन थे. वैसे वह फिल्म कभी बन ही नहीं पायी.
आपकी पिछली फिल्में कामयाब नहीं रहीं. इससे क्या उम्मीदें हैं?
मैं आशा करता हूं कि यह कामयाब जरूर होगी. एडिसन ने जब बल्ब बनाया था, तो कितने बार फेल हुए थे. वह इस दौरान समझ रहे थे कि किस तरह से बल्ब बनेगा. इसी तरह अपनी हर फिल्म से मैंने कुछ न कुछ हर सीखा है. स्क्रिप्टिंग, रिलीज की प्लानिंग से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक बहुत कुछ सीखा है. भविष्य में अगर मैं फिल्में बनाता हूं, तो मैं जरूर इस स्किल का इस्तेमाल करूंगा.
मॉडलिंग से हुई कैरियर की शुरुआत
एक्टिंग में आने से पहले सिद्धार्थ मल्होत्रा एक प्रसिद्ध मॉडल रह चुके हैं. वे ग्लैडरैग्स मेगा मॉडल के रनर अप रह चुके हैं. मिलान सहित कई फैशन शोज में उन्होंने रैंप वॉक भी किया है. लगातार चार वर्षों तक मॉडलिंग करने के बाद सिद्धार्थ ने मॉडलिंग छोड़ दिया, क्योंकि हमेशा से एक्टिंग ही उनके जेहन में थी. दिल्ली से वे मुंबई आये और अपना संघर्ष शुरू किया. फिल्म ‘माय नेम इज खान’ के लिए वह असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुके हैं.