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झारखंड की राजनीति का फ्लैश बैक : छठे प्रयास में जीते भेड़ा सिंह छह महीने भी नहीं रहे विधायक
नीरज अमिताभ रामगढ़ : रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में गोल पार रामगढ़ निवासी स्वर्गीय शब्बीर अहमद कुरैशी उर्फ भेड़ा सिंह गरीबों के नेता व हितैषी के रूप में जाने जाते थे. उनको सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता था. वह हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी धर्मों में सामान रूप से लोकप्रिय थे. भेड़ा सिंह ईमानदार व […]
नीरज अमिताभ
रामगढ़ : रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में गोल पार रामगढ़ निवासी स्वर्गीय शब्बीर अहमद कुरैशी उर्फ भेड़ा सिंह गरीबों के नेता व हितैषी के रूप में जाने जाते थे. उनको सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता था. वह हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी धर्मों में सामान रूप से लोकप्रिय थे.
भेड़ा सिंह ईमानदार व जनप्रिय नेता थे. उन्होंने छह बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के टिकट पर चुनाव लड़ा. छठी बार जीत गये. लेकिन, छह महीने भी विधायक नहीं रह सके. फरवरी-मार्च 2000 में चुनाव जीतनेवाले भेड़ा सिंह का 12 सितंबर 2000 को हृदयाघात से निधन हो गया. भाकपा ने लगातार पांच बार पराजित होने के बाद भी भेड़ा सिंह पर विश्वास जताया था. वर्ष 1977, 1980, 1985, 1990 व 1995 के चुनाव में भाकपा ने भेड़ा सिंह को ही प्रत्याशी बनाया.
पांचों बार वह चुनाव हार गये, लेकिन हर बार अंतर कम होता चला गया. 1995 के चुनाव में वह कांग्रेस उम्मीदवार से महज 466 वोटों से हार गये थे. वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में भेड़ा सिंह लगातार छठी बार भाकपा के टिकट पर चुनावी दंगल में उतरे. अब तक उनकी उम्र हो गयी थी. रामगढ़ की जनता वोट दे या फिर भेड़ा सिंह को कफन दे.
अपील काम कर गयी. रामगढ़ विधानसभा के सभी समुदाय के लोगों ने भेड़ा सिंह को वोट दिया. वह 20 हजार से अधिक मतों से जीत कर विधानसभा पहुंचे. लेकिन ज्यादा दिन तक विधायक नहीं रह पाये. उनके निधन के दो महीने बाद ही झारखंड अलग राज्य बन गया. उपचुनाव हुआ. भाकपा ने उनकी पत्नी नादिरा बेगम को टिकट दिया. हालांकि वह भाजपा के प्रत्याशी व झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से हार गयी.
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