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अयोध्या में राम मंदिर के िनर्माण के लिए तीन महीने में बनेगा ट्रस्ट

ब्यूरो/नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर शनिवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाते हुए राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना. इस पूरी जमीन को मंदिर निर्माण के लिए दे दी. व्यवस्था […]

ब्यूरो/नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर शनिवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाते हुए राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना. इस पूरी जमीन को मंदिर निर्माण के लिए दे दी.

व्यवस्था दी कि अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख जगह पर आवंटित किया जाये. फैसले के अनुसार विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब बतौर रिसीवर केंद्र सरकार के पास रहेगी, जिसे सरकार द्वारा बनाये जाने वाले ट्रस्ट को सौंपा जायेगा. केंद्र सरकार को कोर्ट ने आदेश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाये और इसकी योजना तैयार करे.
स्पष्ट किया कि विवादित स्थल के नीचे बनी संरचना इस्लामिक नहीं है. निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए कोर्ट ने रामलला विराजमान व सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना. इस तरह संविधान पीठ ने 1045 पेज का सर्वसम्मति का निर्णय सुना कर 134 साल पुराने कानूनी विवाद का पटाक्षेप कर दिया. सीजेआइ गोगोई ने 45 मिनट में फैसले के मुख्य अंश पढ़ कर सुनाये.
इस ऐतिहासिक फैसले का हिंदू व मुस्लिम पक्षकारों ने सम्मान करते हुए देशवासियों से शांति-सौहार्द बनाये रखने की अपील की. राजनीतिक दलों ने कहा कि यह अब आगे बढ़ने का समय है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसला दिया और कहा कि हिंदुओं का यह विश्वास निर्विवाद है कि संबंधित स्थल पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था और वह प्रतीकात्मक रूप से भूमि के मालिक हैं.
फैसले में कहा गया कि यह स्पष्ट है कि राम मंदिर बनाने गये कारसेवकों द्वारा 16वीं सदी के तीन गुंबद वाले ढांचे को ढाहना गलत था और उसका निवारण होना चाहिए. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे.
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि यह धर्म व विश्वास से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि इसकी जगह इस मामले को तीन पक्षों-रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़े व सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड के बीच भूमि के स्वामित्व से जुड़े वाद के रूप में देखा गया. यह विवाद अचल संपत्ति के ऊपर है़ अदालत स्वामित्व का निर्धारण धर्म या आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि साक्ष्यों के आधार पर करती है.
कोर्ट के निर्णय में कहा गया कि संभावनाओं के संतुलन पर, स्पष्ट साक्ष्य है, जो संकेत देता है कि बाहरी हिस्से में हिंदू पूजा करते थे, जो 1857 से पहले भी निर्बाध जारी थी, जब अंग्रेजों ने अवध क्षेत्र को अपने साथ जोड़ लिया.
सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाये, जिससे संकेत मिले कि 1857 से पहले मस्जिद पूरी तरह उनके कब्जे में थी. वहीं, हिंदुओं का यह विश्वास निर्विवाद है कि ढहाये गये ढांचे की जगह ही भगवान राम का जन्म हुआ था.
कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष यह साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में विफल रहा है. पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना अन्याय होगा, जिसने कहा है कि विवादित ढांचे में ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में हिंदुओं की आस्था अविवादित है. यही नहीं, सीता रसोई, राम चबूतरा और भण्डार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक तथ्य की गवाह हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहबाद हाइकोर्ट ने विवादित भूमि तीन हिस्सों में बांटने का रास्ता अपनाकर गलत तरीके से मालिकाना हक के मामले का फैसला किया, क्योंकि विवादित भूमि राजस्व रिकॉर्ड में सरकारी जमीन है.
यह भी कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट से यह तथ्य स्थापित हुआ है कि नष्ट ढांचे के नीचे मंदिर था और नीचे कोई इस्लामी ढांचा नहीं था. राजनीतिक व आध्यात्मिक सामग्री के जरिये देश का इतिहास व संस्कृति सच की खोज का केंद्र रहे हैं. इस अदालत से सच की खोज के मुद्दे पर निर्णय करने का अनुरोध किया गया, जहां एक की स्वतंत्रता के दूसरे की स्वतंत्रता को प्रभावित करने और विधि के शासन के उल्लंघन से जुड़े दो सवाल थे़
अयोध्या में संबंधित स्थल पर विवाद सदियों पुराना है, जहां मुगल बादशाह बाबर ने या उसकी तरफ से तीन गुंबद वाली बाबरी मस्जिद बनवायी गयी थी. हिंदुओं का मानना है कि मुस्लिम हमलावरों ने वहां स्थित राम मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बना दी थी.
यह मामला 1885 में तब कानूनी विवाद में तब्दील हो गया था, जब एक महंत ने अदालत पहुंचकर मस्जिद के बाहर छत डालने की अनुमति मांगी. यह याचिका खारिज कर दी गयी थी. दिसंबर 1949 में अज्ञात लोगों ने मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति रख दी. कारसेवकों की बड़ी भीड़ ने छह दिसंबर, 1992 को ढांचे का ध्वस्त कर दिया था.
शि‍या वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावे खारिज
राजस्व रिकाॅर्ड के अनुसार यह जमीन सरकारी
2.77 एकड़ जमीन की रिसीवर अब केंद्र सरकार
विवादित स्थल के नीचे बनी संरचना इस्लामिक नहीं
करीब 45 मिनट में सीजेआइ ने फैसले के मुख्य अंश को पढ़ा
134 साल पुराना कानूनी विवाद
आजादी के बाद 70 साल तक चला मुकदमा
40 दिन तक लगातार हुई सुनवाई
दावा खारिज होने का दुख नहीं : निर्मोही अखाड़ा
निर्मोही अखाड़े के वरिष्ठ पंच महंत धर्मदास ने कहा कि विवादित स्थल पर अखाड़े का दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि वह भी रामलला का ही पक्ष ले रहा था. कोर्ट ने रामलला के पक्ष को मजबूत माना है. इससे अखाड़े का मकसद ही पूरा हुआ है.
पुनर्विचार याचिका पर करेंगे विचार: जफरयाब जिलानी
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वह कोर्ट के फैसले का सम्मान करता है. बोर्ड के सचिव व वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि हम विचार करेंगे कि पुनर्विचार याचिका दायर करनी हैं या नहीं. यह मुकदमा किसी की जीत और हार नहीं है और सभी को शांति बनाये रखनी चाहिए.
कोर्ट ने जो कुछ कहा ठीक कहा : इकबाल
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष के पैरोकार इकबाल अंसारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ कहा, ठीक कहा. हम पहले से ही कहते रहे हैं कि कोर्ट जो भी फैसला करेगा, उसे स्वीकार करेंगे.
विधिसम्मत व अंतिम निर्णय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि दशकों तक चली लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह विधिसम्मत और अंतिम निर्णय हुआ है. अतीत की बातों को भुला कर सभी को भव्य राम मंदिर का निर्माण करना है.
मैं धन्य महसूस कर रहा हूं
भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि वह पूरे दिल से कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि उनके रुख की पुष्टि हुई है और वह खुद को धन्य मानते हैं.
फैसले का सम्मान हो
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान होना चाहिए. परस्पर सद्भाव बनाये रखा जाना चाहिए. यह समय भारतीयों के बीच बंधुत्व, विश्वास और प्रेम का है.
कोर्ट ने हर सवाल का दिया जवाब
मालिकाना हक किसका
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि पर रामलला िवराजमान का हक बताया और तीन महीने में ट्रस्ट के जरिये मंदिर बनाने का फैसला दिया है. कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के मालिकाना हक को खारिज कर दिया.
क्या विवादित स्थल ही भगवान राम का जन्मस्थान है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवादित स्थल को भगवान राम का जन्म स्थान मानते रहे हैं. उनकी यह आस्था सबूतों के जरिये साबित हुई है. एएसआइ की रिपोर्ट में बाबरी ढांचे के नीचे गैर इस्लामिक िनर्माण की बात कही गयी है. हिंदुओं का यह विश्वास कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था
इस पर कोई विवाद नहीं है.
क्या जन्मस्थान को कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है
इस सवाल का जवाब भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टता से देते हुए कहा कि जन्मस्थान को नहीं, बल्कि राम लला विराजमान को कानूनी पक्ष माना जा सकता है.
क्या मस्जिद के नीचे मंदिर था
शीर्ष अदालत ने इस सवाल को लेकर कहा कि ढांचे की खुदाई के दौरान नीचे बड़े िनर्माण के अवशेष मिले हैं.
क्या मंदिर तोड़ा गया था
कोर्ट ने कहा कि ऐतिहासिक सबूतों के मुताबिक मस्जिद का निर्माण खाली स्थान पर नहीं हुआ था, हालांकि कोर्ट ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद के निर्माण की बात नहीं कही.
पूजा होती थी या नमाज
कोर्ट ने कहा कि विवादित स्थल पर 1856 से पहले नमाज पढ़े जाने के सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन पूजा वहां हमेशा से होती रही है.
मस्जिद टूटने के बाद भी मस्जिद रहती है क्या
इस संबंध में शीर्ष अदालत ने सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आप अपने तर्कों को साबित नहीं कर सके.
क्या वहां मूर्ति रखी गयी
कोर्ट ने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता. 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गयी.
विदेशी यात्रियों के कथनों पर विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत यह प्रमाण देते हैं कि अयोध्या में ही भगवान राम का जन्मस्थान था.

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