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हमारे लोगों को पिछले कुछ दिनों से मिल रही थीं धमकियां : पीड़ित परिवार

मुर्शिदाबाद : कश्मीर में मंगलवार रात आतंकवादी हमले में मारे गये श्रमिकों के परिवारों के सदस्यों ने बुधवार को कहा कि उनके लोगों को आतंकवादी समूहों द्वारा लगातार धमकियां मिल रही थीं और ‘गैर कश्मीरी’ होने के कारण उनसे घाटी छोड़ने के लिए कहा जा रहा था. परिवार को अब भी यह विश्वास नहीं हो […]

मुर्शिदाबाद : कश्मीर में मंगलवार रात आतंकवादी हमले में मारे गये श्रमिकों के परिवारों के सदस्यों ने बुधवार को कहा कि उनके लोगों को आतंकवादी समूहों द्वारा लगातार धमकियां मिल रही थीं और ‘गैर कश्मीरी’ होने के कारण उनसे घाटी छोड़ने के लिए कहा जा रहा था. परिवार को अब भी यह विश्वास नहीं हो रहा है कि इस सप्ताह ही लौटने का वादा करनेवाले उनके प्रियजन अब कभी वापस नहीं आयेंगे.

दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में सेब के बागानों में काम करनेवाले नइमुद्दीन शेख, मुरसलीम शेख, रफीक शेख, कमरुद्दीन शेख, रफीकुल शेख की मंगलवार रात आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

घायल हुए एक अन्य श्रमिक जहीरुद्दीन शेख की मौत हो गयी है. उसकी दो महीने पहले ही शादी हुई थी. सभी छह मजदूर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के सागरदिघी क्षेत्र के बहल नगर गांव के रहनेवाले थे. मुर्शिदाबाद कोलकाता से करीब 200 किलोमीटर दूर बांग्लादेश सीमा के पास स्थित है. प्रत्येक वर्ष वे अगस्त में मजदूर के तौर पर काम करने के लिए घाटी जाते थे और अक्तूबर के बाद लौट आते थे.

कश्मीर में सेब का मौसम अगस्त के दूसरे सप्ताह में शुरू होता है और यह सितंबर-अक्तूबर तक जोर पकड़ता है. नईमुद्दीन के पिता जरीस शेख स्वयं कश्मीर में सेब के बागान में काम करते हैं. उन्होंने कहा कि उनके पुत्र और अन्य श्रमिकों को लगातार आतंकवादियों से धमकी मिल रही थी, जो उन्हें घाटी छोड़ने के लिए कहा जा रहा था. उन्होंने संवाददाताओं से कहा : मेरे पुत्र और अन्य को कुछ आतंकवादी समूहों से नियमित तौर पर धमकी मिल रही थी. वे घाटी छोड़ने के लिए कह रहे थे, क्योंकि हम गैर कश्मीरी थे, जो कश्मीरियों का काम छीन रहे थे. मैंने वापस लौटने का निर्णय किया और कल लौट आया. मेरा पुत्र गुरुवार को आनेवाला था.

क्योंकि उसे उसका वेतन नहीं मिला था. उन्होंने कहा : जब मैं सोमवार को लौट रहा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने पुत्र को आखिरी बार देख रहा हूं. कमरुद्दीन शेख के बड़े भाई अमिनीरुल ने कहा कि गत सप्ताह जब उन्होंने अपने भाई से बात की थी, तो उसने कहा था कि वह दिवाली के बाद आयेगा. बहलनगर के स्थानीय लोगों के अनुसार गांव के कई युवा पिछले 20 वर्षों से कश्मीर में प्रवासी श्रमिकों के तौर पर सेब के बागान या निर्माण स्थलों पर काम करते हैं. ऐसे कई परिवार हैं, जो कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत अपने लोगों से संपर्क नहीं कर पाये हैं.रोशनी बीबी ने कहा कि वह अपने पति से गत 10 दिनों से संपर्क नहीं कर पायी है.

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