श्रीनगर/नयी दिल्ली : जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर आये यूरोपीय संघ (ईयू) संसद के सदस्यों ने बुधवार को कहा कि ‘अनुच्छेद 370 हटाना भारत का आंतरिक मामला है’.
उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में वह उसके साथ खड़े हैं. ईयू संसद के 23 सदस्यों के शिष्टमंडल का विवादों में रहा यह दौरा सरकार के खिलाफ विपक्ष की नाराजगी और आलोचना के साथ आज संपन्न हो गया.
कांग्रेस सहित कुछ प्रमुख विपक्षी दलों और यहां तक कि भाजपा की सहयोगी शिवसेना तथा जदयू ने भी ईयू संसद सदस्यों के जम्मू-कश्मीर दौरे को लेकर बुधवार को नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की.
शिष्टमंडल में शामिल सांसदों ने वापस नयी दिल्ली के लिये रवाना होने से पहले श्रीनगर हवाईअड्डा पर चुनिंदा पत्रकारों से मुलाकात भी की. फ्रांस के हेनरी मेलोसे ने कहा, यदि हम अनुच्छेद 370 की बात करें, तो यह भारत का आंतरिक मामला है.
हमारी चिंता का विषय आतंकवाद है, जो दुनियाभर में परेशानी का सबब है और इसके खिलाफ लड़ाई में हमें भारत के साथ खड़ा होना चाहिए. आतंकवादियों द्वारा पांच निर्दोष मजदूरों की हत्या करने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई. हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं.
यूरोपीय आर्थिक एवं सामाजिक समिति के पूर्व अध्यक्ष मेलोसे ने कहा कि उनकी टीम को सेना और पुलिस ने यह जानकारी दी. युवा कार्यकर्ताओं से भी उनकी बातचीत हुई तथा विचारों का आदान-प्रदान हुआ. उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल के पांच प्रवासी मजदूरों की मंगलवार को कुलगाम जिले में आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
इस हमले में एक अन्य मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गया था, जिसकी बुधवार को मौत हो गई. शिष्टमंडल में शामिल जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी के निकोलस फेस्ट ने पत्रकारों से अलग से कहा कि यूरोपीय संघ संसद सदस्यों को (कश्मीर का) दौरा करने की इजाजत दी गई, लेकिन भारत के विपक्षी सांसदों को इजाजत देने से इनकार किया जा रहा है। सरकार को इसमें मौजूद ‘असंतुलन’ को दूर करना चाहिए.
शिष्टमंडल में शामिल कई सांसद धुर दक्षिणपंथी या दक्षिणपंथी दलों से हैं और अपने-अपने देशों में मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा नहीं हैं. इस यात्रा ने विवाद पैदा कर दिया है. इस यात्रा पर हुए खर्च के लिये मिले धन को लेकर कई सवाल किये जा रहे हैं और कुछ खबरों में कहा गया है कि इसे एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने आयोजित किया, जिसने ईयू संसद के सदस्यों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात कराने का वादा किया था.
जम्मू कश्मीर में स्थिति का जायजा लेने के लिये शिष्टमंडल की दो दिवसीय यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है. केंद्र द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और इसका दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन करने का फैसला करने के बाद से कश्मीर में विदेशी प्रतिनिधियों का यह पहला उच्च स्तरीय दौरा है.
वृहस्पतिवार 31 अक्टूबर से राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित हो जाएगा. पोलैंड के सांसद रेजार्ड जारनेकी ने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि कश्मीर के बारे में अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने जो दिखाया, वह पक्षपातपूर्ण था. उन्होंने कहा, हमने जो देखा है, अपने देश लौटकर हम उसकी जानकारी देंगे.
ब्रिटेन में लिबरल डेमोक्रेट पार्टी के न्यूटन डन ने इसे ‘आंखें खोलने वाला दौरा’ बताया. डन ने कहा, हम यूरोप से आते हैं, जो वर्षों के संघर्ष के बाद अब शांतिपूर्ण स्थान है. हम भारत को दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण देश बनता देखना चाहते हैं. इसके लिए जरूरत है कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम भारत के साथ खड़े रहें। यह दौरा आंखें खोलने वाला रहा है और जो कुछ हमने जमीन पर देखा है, हम उस पर अपनी बात रखेंगे.
फ्रांस की रीएसेम्बलमेंट नेशनल पार्टी से आने वाले थियेरी मारियानी ने कहा कि वह पहले भी कई बार भारत आ चुके हैं और यह दौरा भारत के आंतरिक मामले में दखल देने के लिए नहीं है बल्कि कश्मीर में जमीनी हालात के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी लेने के लिए किया गया है.
उन्होंने कहा, आतंकवादी एक देश को बर्बाद कर सकते हैं. मैं अफगानिस्तान और सीरिया जा चुका हूं और आतंकवाद ने वहां जो किया है, वह देख चुका हूं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम भारत के साथ खड़े हैं.
मारियानी ने कहा, हमें फासीवादी कह कर हमारी छवि को खराब किया गया. बेहतर होता कि हमारी छवि खराब करने से पहले हमारे बारे में अच्छे से जान लिया गया होता.
शिष्टमंडल का यह दौरा विपक्ष के साथ-साथ शिवसेना के भी निशाने पर रहा. दरअसल, पांच अगस्त के बाद से विपक्ष के कई नेताओं को श्रीनगर हवाईअड्डा पहुंचने पर वहां से बाहर नहीं जाने दिया गया था.
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के एक संपादकीय में हैरानी जताते हुए कहा गया है कि क्या यूरोपीय संघ के शिष्टमंडल की यात्रा भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता में बाहरी हस्तक्षेप नहीं है? इसके साथ ही संपादकीय में विदेशी टीम को जम्मू-कश्मीर का दौरा करने की अनुमति देने के पीछे के तर्क पर भी सवाल उठाया गया है.
इसमें पूछा गया है कि जब इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में ले जाने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू की अब तक आलोचना की जाती है, तो फिर यूरोपीय संघ के सांसदों को कश्मीर का दौरा करने की अनुमति क्यों दी गई? मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि भारत के आंतरिक मामले का ‘अंतरराष्ट्रीयकरण करने’ और ‘संसद का अपमान करने’ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी स्पष्टीकरण दें.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘इंटरनेशनल ब्रोकर’ की प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच है, लेकिन देश के किसानों और बेरोजगारों को यह सुविधा हासिल नहीं है.
भाजपा की एक अन्य सहयोगी जदयू के नेता पवन वर्मा ने कहा, इस दौरे में कई विरोधाभास हैं. एक तरफ भारत इस मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण के खिलाफ है, लेकिन दूसरी तरफ हमने इन सांसदों को उनकी निजी हैसियत से दौरे की इजाजत दे दी. क्या उचित समय था? इन सदस्यों के चयन का आधार क्या था? अधिकारियों ने बताया कि मूल रूप से 27 सांसदों को आना था, लेकिन इनमें से चार नहीं आये. बताया जाता है कि ये सांसद अपने-अपने देश लौट गये.
शिष्टमंडल मंगलवार को जब यहां पहुंचा तो शहर पूरी तरह बंद था. श्रीनगर तथा घाटी के अन्य हिस्सों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच कुछ जगह झड़पें हुई. पथराव की भी कुछ घटनाएं हुईं.
यूरोपीय संसद के इन सदस्यों ने अपनी दो दिवसीय कश्मीर यात्रा के पहले, सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नयी दिल्ली में मुलाकात की थी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी शिष्टमंडल को जम्मू कश्मीर के हालात की जानकारी दी थी.
उल्लेखनीय है कि कुछ सप्ताह पहले अमेरिका के एक सीनेटर को कश्मीर जाने की इजाजत नहीं दी गई थी. करीब दो महीने पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित विपक्षी सांसदों के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली से आने पर श्रीनगर हवाई अड्डे से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गयी थी और उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया गया था.