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शिक्षा के साथ सेहत की सीख

डॉ रुक्मिणी बनर्जीनिदेशक, प्रथमdelhi@prabhatkhabar.in केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में देश के सभी ग्रामीण और शहरी स्कूलों में किचन गार्डन स्थापित करने के लिए कहा है. इस गार्डन का प्रबंधन स्कूल के बच्चों और शिक्षकों को ही करना है. इस परिकल्पना में यह बात अच्छी है कि स्कूल गार्डन के लिए बीज, […]

डॉ रुक्मिणी बनर्जी
निदेशक, प्रथम
delhi@prabhatkhabar.in

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में देश के सभी ग्रामीण और शहरी स्कूलों में किचन गार्डन स्थापित करने के लिए कहा है. इस गार्डन का प्रबंधन स्कूल के बच्चों और शिक्षकों को ही करना है. इस परिकल्पना में यह बात अच्छी है कि स्कूल गार्डन के लिए बीज, पौधे, जैविक खाद, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता आदि सुविधाओं को कृषि विज्ञान केंद्रों से, कृषि विभागों से, खाद्य और पोषण बोर्ड से, कृषि विश्वविद्यालयों से और वन विभागों से प्राप्त कर सकते हैं.
अगर कुछ बातों को ध्यान में रखा जाये और इसे सही तरीके से क्रियान्वित किया जाये, तो स्कूली बच्चों में लर्निंग बाइ डूइंग (आओ करके सीखें) की अवधारणा सफल हो जायेगी और बच्चे भी मेहनत से उपज की महत्ता को समझ सकेंगे. किचन गार्डन है, तो जाहिर है कि उसमें भारी अनाज नहीं उगाये जायेंगे, बल्कि कुछ सब्जियां ही उगायी जायेंगी. इसलिए यह एक अच्छी योजना है.
स्कूलों में किचन गार्डन एक तरह से समूह में काम करने की सीख को बढ़ावा दे सकता है. हमारी शिक्षा व्यवस्था में समूह में सीखने की कमी अक्सर महसूस की जाती रही है. ऐसे में इसे एक प्रोजेक्ट की तरह किया जा सकता है. हालांकि, इसमें भी डर यह है कि कहीं यह दूसरी योजनाओं की तरह मैकेनिकल न हो जाये और बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हटकर कहीं गार्डन में ही न लगा रह जाये.
संसाधनों के अभाव में बहुत सी योजनाएं ठप्प पड़ जाती हैं, लेकिन किचन गार्डन के लिए किसी बड़े संसाधन की जरूरत भी नहीं है, सिर्फ इस चीज के कि स्कूल के पास जमीन हो. हालांकि, शहरों में स्कूलों के पास जमीन नहीं होती, यह समस्या तो है, लेेकिन इसके लिए भी मंत्रालय ने यह कहा है कि स्कूल की छत पर ही किचन गार्डन स्थापित किया जा सकता है.
इस योजना में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है, जिसे शामिल किया जाये तो किचन गार्डन की परिकल्पना अपने बेहद सकारात्मक रूप में सामने आयेगी. गांवों में बहुत से बच्चे किसान परिवारों से ही आते हैं. हमारे गांवों के किसानों में फसलों की बुवाई से संबंधित सबसे अच्छी जानकारी होती है.
इसलिए स्कूल चाहे, तो बच्चों के ऐसे अभिभावकों को भी इसमें सप्ताह में एक दिन शामिल करके गार्डन में उगायी जानेवाली फसल के लिए राय-मशवरा ले सकता है. इससे न सिर्फ उपज उम्दा होगी, बल्कि स्कूल के साथ बच्चों और अभिभावकों का जुड़ाव प्रगाढ़ होगा. स्कूल और परिवारों के बीच की दूरी को इससे कम किया जा सकता है. बाहर से किसी ट्रेनर को बुलाने की भी जरूरत नहीं है.
मैंने तो कई स्कूलों में देखा भी है, जहां शिक्षक बच्चों के साथ मिलकर अपने प्रांगण में सब्जियां उगाते हैं. बाकी स्कूलों को भी चाहिए कि अपने आसपास के ऐसे स्कूलों से सीख हासिल करें और इस योजना को सफल बनाने में आगे आयें. यह एक बेहतरीन मौका है, जिसका फायदा उठाया जा सकता है. एक क्लस्टर में हम देख सकते हैं कि खेल के क्षेत्र में किस स्कूल के बच्चे चैंपियन हैं.
उस स्कूल से दूसरे स्कूल के लोग सीख और प्रेरणा हासिल करते हैं. उसी तरह से किचन गार्डन के स्थापित होने के बाद यह देखा जा सकता है कि किसके यहां की उपज अच्छी है. समय-समय पर कुछ नया सीखने-समझने के लिए स्कूलों के बीच आपस में दौरे रूपी कार्यक्रम आयोजित हो सकते हैं, ताकि गार्डन संबंधी तकनीकों का आदान-प्रदान हो सके.
ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों को ग्राम पंचायताें का भी सहयोग मिल सकता है. ग्राम पंचायतों की मदद से तमाम संसाधनों को स्कूलों तक पहुंचाया जा सकता है. कोई भी योजना उतनी खराब नहीं है, जितना कि उसके बारे में सोच लिया जाता है.
मसला उसके क्रियान्वयन का होता है. एक खराब योजना का भी क्रियान्वयन ईमानदारी से और अच्छी तरह से किया जाये, तो वह भी एक अच्छी योजना में परिवर्तित हो जायेगी. हो सकता है कि लोग सोचें कि बच्चे किचन गार्डन में मेहनत नहीं कर पायेंगे, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है.
सब्जियां उगाने में कोई ज्यादा मेहनत नहीं लगती, बशर्ते कि उसे सही तरीके से योजना बनाकर और तकनीकों का इस्तेमाल करके किया जाये. हमने देखा है कि कुछ लोगाें को बागवानी का शौक होता है, तो वे अपने घर के एक कोने में कुछ गमलों में ही बहुत सी चीजें उगा लेते हैं और इसमें कोई ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती.
जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हीं लोगों को स्कूलों में प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया जा सकता है. स्कूल को अपने हिसाब से सोचना चाहिए कि किस बात के लिए किसकी सलाह ले, ताकि गार्डन में अच्छी सब्जियां उगायी जा सकें. महज एक किसान परिवार कई एकड़ की भूमि पर कृषि कर लेता है. लेकिन स्कूलों में तो सैकड़ों बच्चे होते हैं, जो बहुत कम मेहनत में भी अच्छे परिणाम हासिल कर सकते हैं.
स्कूलों में किचन गार्डन की अवधारणा की सबसे खास बात यह है कि बच्चों को ताजी और बिना पेस्टिसाइड से उगी सब्जियां खाने को मिलेंगी, जिससे उनकी सेहत भी अच्छी रहेगी. स्कूलों में हर चीज एकल प्रक्रिया है, हर बच्चे पर अपनी पढ़ाई करने और मार्क लाने की अपनी-अपनी जिम्मेदारी होती है.
लेकिन, किचन गार्डन का काम तो एक समूह में किया जानेवाला काम है, जिससे बच्चों में एकता का भाव भी उत्पन्न होगा और दूसरे के साथ मिलकर काम करने का नजरिया भी विकसित होगा. साथ ही, बिना रसायन के इस्तेमाल के खेती करने की सीख हासिल होगी, जो ऑर्गेनिक खेती के ऐतबार से भी सही है.

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