अनिकेत त्रिवेदी, पटना : अकेले पूरे बिहार को दाल खिलाने की क्षमता रखने वाला मोकामा टाल क्षेत्र जलजमाव के संकट से जूझ रहा है. बीते 20 दिनों से टाल क्षेत्र के खेत जलजमाव से डूबे हुए हैं. खेतों में दस फुट तक पानी लगा हुआ है. निकासी की रफ्तार काफी धीमी है.
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जलजमाव से दलहन की खेती पर संकट
अनिकेत त्रिवेदी, पटना : अकेले पूरे बिहार को दाल खिलाने की क्षमता रखने वाला मोकामा टाल क्षेत्र जलजमाव के संकट से जूझ रहा है. बीते 20 दिनों से टाल क्षेत्र के खेत जलजमाव से डूबे हुए हैं. खेतों में दस फुट तक पानी लगा हुआ है. निकासी की रफ्तार काफी धीमी है. स्थिति देख कर […]
स्थिति देख कर ऐसा नहीं लगता कि अगले 10-15 दिनों में पानी निकल पायेगा. अगर ऐसा नहीं हुआ, पानी समय रहते नहीं निकला, तो लगभग सवा लाख हेक्टेयर टाल क्षेत्र में समय पर दलहन की बुआई नहीं हो पायेगी और लगभग 80 फीसदी तक टाल क्षेत्र में दलहन उत्पादन घट जायेगा. जो राज्य के लिए दलहन की समस्या पैदा कर देगा.
लखीसराय से फतुहा तक फैला है क्षेत्र : स्थानीय किसान व दलहन उत्पादक किसान मोर्चा के अरविंद प्रसाद सिंह बताते हैं कि टाल क्षेत्र काफी बड़ा है. इसका फैलाव लखीसराय जिले से लेकर पटना जिले के फतुहा तक है. इस क्षेत्र में लाखों किसान सिर्फ एक ही पैदावार का उत्पादन कर पाते हैं.
बाकी समय पानी लगा रहता है. दलहन में यहां मुख्य रूप से मसूर, दाल व मटर की पैदावार होती है. मात्र एक फसल पैदावार पर किसानों के पूरे साल की आमदनी टिकी रहती है. टाल को आठ क्षेत्र मसलन, बड़हिया टाल, मोकामा टाल, सरहन टाल, बाढ़ व बख्तियारपुर टाल, मोर टाल व एक और टाल में बांटा गया है.
ऐसे घट जाता है उत्पादन: दरअसल, दलहन की बुआई के लिए आदर्श समय 15 अक्तूबर से 30 अक्तूबर तक ही रहता है. इसके बाद ज्यों-ज्यों देरी होती है, उत्पादन घटता जाता है.
किसान बताते हैं कि अगर समय पर बुआई हुई, तो 12 से 16 मन प्रति बीघा उत्पादन होता है. इसके अलावा अगर पांच नवंबर तक बुआई हो जाये, तो पांच मन प्रति बीघा पर उत्पादन हो जाता है. उससे अगर देरी हुई, तो किसान बुआई ही नहीं करते, क्योंकि उत्पादन इतना कम होगा कि लागत तक नहीं निकलती. अगर, किसी ने लेट बुआई कर भी दी, तो कई बार खेत में ही फसल को छोड़ना पड़ता है.
समस्या पुरानी, मगर अब बढ़ गयी है दिक्कत : किसान बताते हैं कि टाल क्षेत्र में जलभराव की समस्या पुरानी है. मगर धीरे-धीरे समस्या और बढ़ती जा रही है. फिलहाल मात्र हरोहर नदी से होकर टाल का पानी गंगा में जाता है.
हरोहर नदी में क्यूल नदी आकर मिलती है. क्यूल बालू वाली नदी है. जंक्शन प्वाइंट पर बालू भर गया है. इसलिए टाल का पानी नहीं निकल पा रहा है. गंगा में गाद का स्तर बढ़ने से ही समस्या हुई है. इस कारण अब दिक्कत और बढ़ती जा रही है. इससे पहले 2004 व 2016 में भी ऐसी समस्या हुई थी.
किया जा रहा है सर्वे
17 जिलों में सूखा व 13 जिलों में बाढ़ को लेकर सर्वे किया जा रहा है. एक सप्ताह में डीएम के माध्यम से रिपोर्ट आ जायेगी. इसके बाद ऑनलाइन पंजीकरण कर किसानों को अनुदान देने का काम किया जायेगा. टाल के किसानों की समस्या भी दूर की जायेगी.
डॉ प्रेम कुमार, कृषि मंत्री
राज्य में दलहन उत्पादन की स्थिति
चना : वर्ष उत्पादन (क्विंटल में)
2016-17 66502
2017-18 67177
2018-19 98857
मसूर: वर्ष उत्पादन (क्विंटल में)
2016-17 146875
2017-18 147492
2018-19 142808
तुअर : वर्ष उत्पादन (क्विंटल में)
2016-17 33173
2017-18 28627
2018-19 350364
मूंग : वर्ष उत्पादन (क्विंटल में)
2016-17 8329
2017-18 5526
2018-19 5483
खेसारी: वर्ष उत्पादन (क्विंटल में)
2016-17 55176
2017-18 50314
2018-19 44335
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