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जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक की रिपोर्ट – तेजी से सिकुड़ रहा है साॅल्टलेक

कोलकाता : जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि पश्चिम बंगाल के साॅल्टलेक का क्षेत्र खतरनाक दर से सिकुड़ रहा है. साॅल्टलेक ज्यादातर जल निकायों और झीलों से बना है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक डॉक्टर संदीप सोम ने कहा : साॅल्टलेक का ज्यादातर जल निकायों और झीलों से मिल […]

कोलकाता : जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि पश्चिम बंगाल के साॅल्टलेक का क्षेत्र खतरनाक दर से सिकुड़ रहा है. साॅल्टलेक ज्यादातर जल निकायों और झीलों से बना है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक डॉक्टर संदीप सोम ने कहा : साॅल्टलेक का ज्यादातर जल निकायों और झीलों से मिल कर बना है. यह भूजल में कमी का सामना कर रहा है, जो भूमि के उप-विभाजन के कारणों में से एक हो सकता है.

उन्होंने कहा कि हो सकता है इसी कारण से कोलकाता के कई स्थान सिकुड़ रहे हैं. जीएसआइ के साॅल्टलेक ऑफिस में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) स्टेशन द्वारा पिछले ढाई सालों में दर्ज आंकड़ों से पता चला है कि यह क्षेत्र प्रति वर्ष की दर से लगभग 19-20 मिलीमीटर कम हो रहा है.
श्री सोम ने कहा कि स्टेशन 300 किलोमीटर के दायरे में आंकड़े इकट्ठा करने में सक्षम है इसी वजह से हम कह सकते हैं कि कोलकाता सिकुड़ रहा है. जीएसआइ इसे ठीक करने के लिए प्रमुख समस्याग्रस्त क्षेत्रों का पता लगाने की कोशिश कर रहा है. भूमि उप-विभाजन भूजल निकासी या टेक्टोनिक के कारण हो सकता है. हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते.
सोम ने जोर देते हुए कहा कि देश के मेट्रो शहर इसी समस्या से जूझ रहे हैं. उन्होंने बताया कि देशर में लगे जीपीएस स्टेशन से पता चला है कि जयपुर, देहरादून, हैदराबाद और बंगलुरु भी सिकुड़ रहे हैं.
डेटा ने आगे दिखाया कि संपूर्ण हिमालयी तलहटी और उसके आस-पास के क्षेत्र अलग-अलग दरों पर घट-बढ़ रहे हैं. हालांकि हिमालय पर्वत श्रृंखला बढ़ रही है. इसके अलावा पटना और नागपुर भी बढ़ रहे हैं. यह सभी टेक्टोनिक प्लेट की मूवमेंट के कारण हो रहा है. जीएसआइ निदेशक ने कहा कि जयपुर और कोलकाता में साॅल्टलेक सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं. वर्तमान में देशभर में 22 जीपीएस और 10 ब्राडबैंड स्टेशन कार्य कर रहे हैं.

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