नयी दिल्ली : जैसे हर पीला धातु सोना नहीं होता, वैसे ही हर सफेद तरल पदार्थ दूध नहीं होता. भारत में दूध के नाम पर गोरखधंधा करने वालों की कमी नहीं है. दूध में पानी की मिलावट तो आम है, लेकिन अब धंधेबाज लोगों की जान की परवाह किये बगैर इसमें केमिकल, मेडिसीन और कीटनाशकों की मिलावट करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं. यदि आप बाजार से खरीदकर कच्चे या प्रोसेस्ड पैकेट बंद दूध का सेवन कर रहे हैं, तो यह मान लें कि वे प्योर नहीं हैं. किसी न किसी रूप में उसमें मिलावट की गयी है. यह हम नहीं कह रहे, बल्कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकार (एफएसएसएआई) के अध्ययन में यह नतीजा सामने आया है. अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दूध का कारोबार करने वाली चाहे कोई ब्रांडेड कंपनी ही क्या न हो, उसका दूध मानकों के आधार पर शुद्ध नहीं है.
खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने एक अध्ययन में कहा कि प्रमुख ब्रांड सहित विभिन्न कंपनियों के कच्चे दूध और प्रोसेस्ड दूध के नमूने निर्धारित गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर पूरी तरह खरे नहीं उतरे. शुक्रवार को अपने अध्ययन को जारी करते हुए एफएसएसएआई के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) पवन अग्रवाल ने कहा कि मिलावट से ज्यादा दूध का दूषित होना एक गंभीर समस्या है, क्योंकि प्रोसेस्ड दूध के नमूनों में एफ्लाटॉक्सिन-एम1, एंटीबायोटिक्स और कीटनाशकों जैसे पदार्थ अधिक पाये गये.
उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए नियामक ने संगठित डेयरी क्षेत्र को गुणवत्ता मानकों का कड़ाई से अनुपालन करने का निर्देश दिया है और एक जनवरी, 2020 तक संपूर्ण मूल्य शृंखला में ‘परीक्षण और निरीक्षण’ की व्यवस्था करने को कहा है. एफएसएसएआई अध्ययन ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मई और अक्टूबर, 2018 के बीच 1,103 शहरों और कस्बों से कुल 6,432 दूध के नमूने एकत्रित किये. संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों से दूध के नमूने एकत्र किये गये थे. गुणवत्ता जांच में ये नमूने खरे नहीं उतरे.
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