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आखिर कब तक भारतीय मूल
हाल ही में नोबेल पुरस्कार 2019 की घोषणा की गयी, जिसमें भारत जैसे विशाल राष्ट्र को एक भी नोबेल पुरस्कार न मिलना चिंतनीय है और जब अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अभिजीत बनर्जी का नाम आया, तो साथ में हर बार की तर्ज पर इस बार भी भारतीय मूल देखने को मिला. वाकई यह सोचने वाली […]
हाल ही में नोबेल पुरस्कार 2019 की घोषणा की गयी, जिसमें भारत जैसे विशाल राष्ट्र को एक भी नोबेल पुरस्कार न मिलना चिंतनीय है और जब अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अभिजीत बनर्जी का नाम आया, तो साथ में हर बार की तर्ज पर इस बार भी भारतीय मूल देखने को मिला.
वाकई यह सोचने वाली बात है कि आखिर क्या कारण है कि भारतीय इस शृंखला में पीछे है? और भारत में क्या कमी रहती है कि इस देश में पले-बड़े होने के बावजूद उन्हें अन्य देश के संसाधनों का सहारा लेने की जरूरत पड़ती है?
क्या आज भी भारत में खोज, अनुसंधान और अन्वेषण के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं है. अतः वर्तमान सरकार से उम्मीद है कि देश में ऐसी पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाए ताकि राष्ट्र का खरा सोना देश में ही रहे और भारत के लिए कार्य करने में सहूलियत महसूस कर सकें ताकि भारत का नाम भी दुनिया में रोशन हो.
कपिल एम वडियार, पाली, राजस्थान
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