22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ईरानी महिलाओं का संघर्ष : मतदान, हिजाब, तलाक से लेकर फुटबॉल मैच तक

फीफा से निलंबन की चेतावनी मिलने के बाद, ईरान की महिलाओं के लिए खुशखबरी आयी और आज यानी 10 अक्तूबर को दशकों बाद ऐसा होगा कि ईरान की महिला फुटबालप्रेमी स्टेडियम में प्रवेश करके फुटबॉल मैच का लुत्फ उठा सकेंगी. अबतक जो हालात थे उनके अनुसार ईरान में महिलाओं को स्टेडियम में प्रवेश नहीं दिया […]

फीफा से निलंबन की चेतावनी मिलने के बाद, ईरान की महिलाओं के लिए खुशखबरी आयी और आज यानी 10 अक्तूबर को दशकों बाद ऐसा होगा कि ईरान की महिला फुटबालप्रेमी स्टेडियम में प्रवेश करके फुटबॉल मैच का लुत्फ उठा सकेंगी. अबतक जो हालात थे उनके अनुसार ईरान में महिलाओं को स्टेडियम में प्रवेश नहीं दिया जाता था. इसके मौलवियों का तर्क यह है कि महिलाओं को पुरूषप्रधान माहौल और अर्धनग्न पुरूषों के बीच जाने से रोका जाना चाहिए. खैर यह तो बात हुई पुरुषवादी सोच और उसकी प्रधानता की, लेकिन यहां हम चर्चा करेंगे उन संघर्षों की जिनका बदौलत आज ईरानी महिलाएं एक इंसान होने का रुतबा हासिल कर रही हैं और अपने तरह से जिंदगी जी रही हैं. उनके संघर्ष का इतिहास काफी लंबा है, क्योंकि ईरान के कानून ने ही उन्हें पुरुषों से कमतर आंका है और कानून के समक्ष समानता का अधिकार पाने के लिए लड़ाई लड़ी है.

कानूनी आधार पर ही होता है ईरानी महिलाओं के साथ भेदभाव
वूमेन,पीस एंड सिक्यूरिटी की रिपोर्ट के अनुसार (2017-18) ईरान उन 153 देशों में 116वें स्थान पर था, जहां कानूनी आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार ईरान की विवाहित महिलाओं पर 23 तरह के प्रतिबंधित थे, मसलन वे अकेले सफर नहीं कर सकतीं, पासपोर्ट नहीं बनवा सकती, घर की मुखिया नहीं हो सकती, रहने के लिए जगह नहीं चुन सकतीं, इत्यादि. महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की कोई व्यवस्था नहीं है, ना ही उन्हें यह अधिकार है कि वे नौकरी जाने पर शिकायत कर सकें और ना ही उन्हें घरेलू हिंसा के खिलाफ कोई सुरक्षा प्राप्त है. ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी जिन महिलाओं ने अधिकारों की जंग लड़ी और सफलता पायी, उन्हें सैल्यूट तो बनता है.

संघर्ष का इतिहास
ईरानी महिलाओं के संघर्ष का इतिहास ईरानी संवैधानिक क्रांति के साथ ही शुरु होता है. इस क्रांति में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और शुरुआत शिक्षा की मांग और बहुविवाह और घरेलू हिंसा के विरोध से हुई. यह 1905-1925 का काल था. इस क्रांति में जिन महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई उनमें बीबी खातून अस्टाराबादी, नूर-ओल-होदा मांगेनेह, मोहतरम एस्कंदारी, सेदिकेह दोलताबाड़ी और क़मर ओल-मोलौक वज़िरी प्रमुख हैं. 1962 ईरानी महिलाओं को पहली बार स्थानीय चुनावों में मतदान का अधिकार मिला, जो उनकी बड़ी सफलता थी. वर्ष 2013 में एक नये या आधुनिक युग की शुरुआत हुई और महिलाओं के मुद्दे राष्ट्रपति के चुनाव में प्रमुख बने. महमूद अहमदीनेजाद के दूसरे कार्यकाल में मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा हावी हो गया. महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा था. देश में परमाणु कार्यक्रम के कारण काफी प्रतिबंध थे, बेरोजगारी बढ़ी थी, महिला आंदोलन जोर पकड़ा. हसन रूहानी राष्ट्रपति बने और उन्होंने महिला अधिकारों की वकालत की और उन्हें समानता का अधिकार देने की बात की.


सफलता की कहानी
ईरानी महिलाओं को आज भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि वे सफलता की सीढ़ी लगातार चढ़ रही हैं. ईरानी महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ.

हिजाब के खिलाफ भी मुस्लिम महिलाओं को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. अगस्त 2019 में ईरानी मानव अधिकार कार्यकर्ता सबा अफशरी को सार्वजनिक रूप से हिजाब उतारने के लिए 24 साल की सजा सुनायी थी. हालांकि अब इतनी रियायत महिलाओं को मिल गयी है कि वे घर से बाहर बिना सिर ढंके निकल सकती हैं.

तलाक का अधिकार पहले सिर्फ पुरुषों को प्राप्त था, लेकिन 1967 में इसमें संशोधन हुआ और अब महिलाओं को भी यह अधिकार दिया गया है कि वे तलाक ले सकती हैं.

शिक्षा के अधिकार से वंचित महिलाओं ने सबसे पहले शिक्षा की मांग की थी और उन्हें इसमें सफलता भी मिली. खेल के क्षेत्र में भी ईरानी महिलाओं ने अपनी पैठ बढ़ायी है, जिसे उत्साहवर्धक माना जा सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें