आर के सिन्हा
सांसद, राज्यसभा
rkishore.sinha@sansad.nic.in
जिस समय बिहार की जनता भीषण बारिश के प्रकोप के कारण त्राहि-त्राहि कर रही है, तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनसे सहानुभूति जताने की बजाय उनके आत्मसम्मान को गहरी चोट पहुंचायी है.
वे यह कह रहे हैं कि ‘बिहार के लोग (उनका तात्पर्य झारखंड समेत पूर्वांचल से है) दिल्ली में 500 रुपये का टिकट लेकर आ जाते हैं और फिर लाखों रुपये का मुफ्त इलाज करवाकर वापस चले जाते हैं.’ क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतना संवेदनहीन होना शोभा देता है? क्या दिल्ली के अस्पतालों में इलाज के लिए बिहारियों का आना निषेध है?
क्या दिल्ली में अन्य राज्यों का कोई हक ही नहीं है? क्या एम्स अस्पताल में कोई बिहारवासी इलाज न करवाये? केजरीवाल जी, आपको इन सवालों के उत्तर तो देने ही होंगे. वे जरा यह बता दें कि वे कब से दिल्ली वाले हो गये. वे पहली बार जब दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, तब वे गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में रहते थे.
उनका तो दिल्ली में अपना वोट भी नहीं था. तब उनसे किसी ने नहीं कहा था कि वे मूलत: हरियाणा से हैं, रहते हैं उत्तर प्रदेश में और चुनाव दिल्ली विधानसभा का लड़ रहे हैं. चूंकि वे भारत के नागरिक हैं, इसलिए उन्हें देश के किसी भी भाग में जाकर चुनाव लड़ने या इलाज कराने का हक है. वे भी अस्वस्थ होने पर कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु जाते रहे हैं. तब तो उनसे किसी कन्नड़ भाई ने नहीं पूछा कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री होकर कर्नाटक में क्या कर रहे हैं.
केजरीवाल जैसे नेताओं के कारण ही देश कमजोर होता है और विभिन्न प्रदेशों के नागरिकों में परस्पर अविश्वास की भावना पैदा होती है. देश ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए के समाप्त होने के बाद यह संदेश दिया कि यह देश एक है. इसके सभी संसाधनों पर सबका समान अधिकार है. यहां जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा. दुखद है कि एक प्रदेश का मुख्यमंत्री जिसने संविधान की शपथ ले रखी है, एक अन्य प्रदेश के नागरिकों पर ओछी टिप्पणी कर रहा है.
कभी-कभी लगता है कि जब सारा संसार आगे बढ़ रहा है, तब हम अपने कदम पीछे खींच रहे हैं. अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पिता जर्मनी से अमेरिका में आकर बसे थे. अमेरिकी समाज ने उन्हें अपने देश में आगे बढ़ने के इतने अवसर दिये कि उनका पुत्र उस देश का राष्ट्रपति ही बन गया. इसी तरह से बराक ओबामा के पिता केन्या से थे. ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये. हमारे अपने बहुत से भारतवंशी संसार के विभिन्न देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन रहे हैं.
साठ के दशक के शुरू में कैरिबियाई देश गुयाना के राष्ट्रपति छेदी जगन बने थे. माॅरीशस के प्रधानमंत्री (बाद में राष्ट्रपति भी) चाचा शिवसागर रामगुलाम बने थे. इन सबके पुरखे बिहार से ही गुयाना और माॅरीशस में गन्ने के खेतों में काम करने के लिए गये थे. अब भी माॅरीशस, फीजी, सिंगापुर, कनाडा समेत लगभग दो दर्जन देशों की संसद में भारतीय हैं. उनसे वहां पर किसी ने यह नहीं कहा कि वे भारत से हैं. पर भारतीयों को अपने ही मुल्क में अपमानित किया जा रहा है.
बिहारियों का कसूर क्या है? उन्हें महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लफंगे क्यों मारते-पीटते हैं? दिल्ली में केजरीवाल से पहले स्वर्गीया शीला दीक्षित ने भी कहा था कि दिल्ली में पूर्वांचल के लोगों के आने के कारण स्थिति बदत्तर हो रही है.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ भी उनमें शामिल हो गये हैं, जिन्हें बिहार और उत्तर प्रदेश वालों से चिढ़ है. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने तब कहा था कि प्रदेश में स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिलने का कारण बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग हैं. हालांकि, कमलनाथ खुद भी मध्य प्रदेश से नहीं हैं.
दरअसल समस्या के मूल में आबादी कारण है, जिस पर काबू पाने के लिए ठोस पहल जरूरी है. बिहारियों को बाहरी कहना देश के संघीय ढांचे पर चोट पहुंचाएगा. यह स्थिति हर हालत में थमनी चाहिए.
शीला दीक्षित मूलत: पंजाब से थीं. उनका विवाह उत्तर प्रदेश के एक परिवार में हुआ. पर दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहारी बाहरी लगने लगे. उन्होंने 2007 में राजधानी की तमाम समस्याओं के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से आकर बसनेवालों को जिम्मेदार ठहरा दिया था.
तब शीला दीक्षित ने कहा था कि दिल्ली एक संपन्न राज्य है और यहां जीवनयापन के लिए बाहर से और विशेषकर उत्तर प्रदेश तथा बिहार से बड़ी संख्या में लोग आते हैं और यहीं बस जाते हैं. इस कारण से यहां पर समस्याएं बढ़ रही हैं. राज ठाकरे, शीला दीक्षित, केजरीवाल जैसे लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि दिल्ली और मुंबई को इतना आलीशान बनाने में खून-पसीना भी तो बिहारियों और पूर्वांचलियों का ही बहा है. उनका अब कोई हक ही नहीं बनता क्या?
केजरीवाल और कमलनाथ जैसे नेताओं को क्यों समझ नहीं आता है कि सिर्फ समावेशी समाज ही आगे बढ़ते हैं? असम में भी जब चरमपंथी संगठन उल्फा को अपनी ताकत दिखानी होती है, तब वह निर्दोष हिंदी भाषियों (यूपी-बिहार वालों) को ही मारने लगता है. असम तथा मणिपुर में हिंदी भाषियों पर लगातार हमले होते रहे हैं. उधर हिंदी भाषी का अर्थ बिहारी और यूपी वाले से ही होता है.
अपना भारत सबका है. यहां पर जनता का कोई निर्वाचित व्यक्ति संकुचित बयानबाजी करे, तो वास्तव में बड़ा कष्ट होता है. इस तरह के तत्वों को चुनाव में खारिज किया जाना चाहिए.