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अहम हैं ह्यूस्टन के संदेश

प्रभु चावला एडिटोरियल डायरेक्टर द न्यू इंडियन एक्सप्रेस prabhuchawla @newindianexpress.com ह्यूस्टन अमेरिका के उस अंतरिक्ष कार्यक्रम का गढ़ था, जिसने मनुष्य को चांद पर भेजा. पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ह्यूस्टन के भरे-पूरे स्टेडियम में ‘हाउडी मोदी!’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आकर्षण का संग पाकर फूले नहीं समा रहे थे, जब इस कार्यक्रम […]

प्रभु चावला
एडिटोरियल डायरेक्टर द न्यू इंडियन एक्सप्रेस
prabhuchawla
@newindianexpress.com
ह्यूस्टन अमेरिका के उस अंतरिक्ष कार्यक्रम का गढ़ था, जिसने मनुष्य को चांद पर भेजा. पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ह्यूस्टन के भरे-पूरे स्टेडियम में ‘हाउडी मोदी!’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आकर्षण का संग पाकर फूले नहीं समा रहे थे, जब इस कार्यक्रम ने व्हाॅइट हाउस में दूसरे कार्यकाल के लिए उनके अभियान को पंख दे दिये.
इस तरह, देश हो या परदेश, मोदी ने स्वयं को राजगद्दी के खेल का एक विजेता खिलाड़ी साबित कर दिया. मोदी के हाथ थामे अमेरिकी राष्ट्रपति ‘नमो’ के उस शक्तिशाली विजेता नारे के अमेरिकीकरण- अबकी बार, ट्रंप सरकार-से चमत्कृत थे.
यह दृश्य स्वयं में अहम था-एक करिश्माई विदेशी नेता, जो एक विवादास्पद अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए अपने हाथों में अपने मूल और वर्तमान देशों के झंडे लहराते 50 हजार से अधिक गैर-निवासी भारतीयों के विशाल जन समूह से समर्थन मांग रहा था. विश्व के सबसे अमीर अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र का मुखिया 50 सांसदों के साथ सुदूर वाशिंगटन से उड़कर उस राजनीतिक हस्ती के साथ अपनी अंतरंगता प्रदर्शित करने पहुंचा, जिसे कुछ ही वर्षों पूर्व अमेरिकी वीजा तथा अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने का वक्त देने से इनकार कर दिया गया था.
सच्चाई यही है कि ह्यूस्टन से मोदी ने ट्रंप के चुनावी अभियान का आगाज किया, जब उन्होंने ट्रंप की ओर इंगित करते हुए श्रोताओं से यह कहा- ‘ये असाधारण हैं, अभूतपूर्व हैं. जैसा मैंने आपको बताया, हम कई बार मिल चुके हैं और ये हमेशा ही मित्रतापूर्ण, जोश से भरे और मिलनसार सिद्ध हुए हैं. मैं इनके नेतृत्व बोध, अमेरिका के लिए इनकी तीव्र भावना तथा अमेरिका को फिर से महान बनाने के इनके निश्चय का प्रशंसक हूं.’
वाशिंगटन तथा नयी दिल्ली के बीच नजरिये का फर्क था, उसको मोदी के व्यक्तित्व ने दोनों के बीच की साढ़े बारह हजार किमी की दूरी से ऊपर उठकर काफी कम कर दिया है. मोदी भारत या किसी अन्य देश के ऐसे प्रथम राज्याध्यक्ष हैं, जिन्होंने अपने घरेलू बाजार से प्रवासी भारतीयों की धन तथा वोट शक्ति का सफलतापूर्वक मेल करा अमेरिकी राजनय, अर्थव्यवस्था तथा सियासत को प्रभावित किया और आकार दिया.
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री पद पर आने के पश्चात यह उनकी छठी अमेरिका यात्रा थी, जिसमें वे कुल 25 दिनों का वक्त देकर वहां के कॉरपोरेट प्रधानों, भारतीय प्रभावशीलों और शक्तिशाली रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेट नेताओं से मिले. अपनी पहली ही यात्रा में उन्होंने न्यू यॉर्क में एक प्रभावशाली रैली के द्वारा अपनी एक विशिष्ट शैली सुनिश्चित की. ट्रंप एवं रिपब्लिकनों को यह महसूस करने में चार वर्ष लग गये कि केवल मोदी का जादू ही गैर-निवासी भारतीयों एवं डेमोक्रेट्स का रोमांस भंग कर सकता है.
हालांकि, मोदी ने ट्रंप को सर्वोत्तम सौदेबाज बताया, पर यह वे स्वयं ही थे, जिन्होंने अमेरिकियों से अपने समर्थन के बदले अधिकतम कीमत वसूली. मोदी ने अपनी यात्राओं का लाभ उठाकर सियासत तथा अर्थव्यवस्था को हथियार बनाते हुए अपनी वैश्विक छवि निखारी. विभिन्न वैश्विक मंचों पर अपनी लगातार मुलाकातों के बल पर उन्होंने न केवल ट्रंप, बल्कि पुतिन, शिंजो आबे और शी जिनपिंग से व्यक्तिगत मित्रता स्थापित कर ली. प्रवासी भारतीयों की बड़ी तादाद अपने अंतरराष्ट्रीय समकक्षों के समक्ष मोदी को एक ताकत देती है.
चूंकि उनमें से बेशुमार लोग अहम पदों पर बैठे हैं, बेहतर रूप से शिक्षित हैं और प्रतिवर्ष लाख डॉलर से ज्यादा उपार्जित करते हैं, अतः विदेशी नेता सार्वजनिक विचारों को आकार देने में उनकी अहमियत स्वीकार करते हैं. मोदी के रोडमैप में अमेरिका की बड़ी उपयोगिता है. अमेरिका के सक्रिय समर्थन तथा कश्मीर पर उसकी अर्थभरी चुप्पी के बल पर मोदी ने अपने घरेलू लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए शक्ति हासिल की है.
ट्रंप तथा मोदी में कई चारित्रिक समानताएं हैं. दोनों खरी-खरी सुनाते हैं. दोनों सम्मोहक संचार माध्यमों से सीधा जनसंपर्क किया करते हैं. दोनों सोशल मीडिया के उपयोग में प्रवीण हैं. दोनों ही निस्संकोच रूप से आक्रामक बहुमतवादी और राष्ट्रवादी हैं. वर्ष 2016 में ट्रंप ‘अमेरिका को फिर महान बनाने’ के नारे पर जीते. मोदी ने एक ज्यादा मजबूत तथा समृद्ध भारत के वायदे पर विजय हासिल की.
वर्ष 2017 में व्हाॅइट हाउस में ट्रंप से अपनी पहली मुलाकत में मोदी ने कहा, मुझे पूरा यकीन है कि एक नये भारत के लिए मेरे विजन तथा राष्ट्रपति ट्रंप के ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ के विजन का मेल हमारे सहयोग को एक नया आयाम देगा. दोनों कुछ देने-कुछ लेने में यकीन करते हैं.
ट्रंप की अपेक्षा है कि मोदी भारतीय मूल के लगभग 40 लाख अमेरिकी नागरिकों के वोट रिपब्लिकन के पक्ष में मोड़ दें, क्योंकि वर्ष 2016 के वोट विश्लेषण से यह पता चला कि 84 प्रतिशत भारतीय अमेरिकियों ने हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में वोट किया.
मगर, डोनाल्ड ट्रंप अपने ‘यू टर्न’ के लिए भी जाने जाते हैं. पिछले ही वर्ष उन्होंने भारत को ‘चुंगी सम्राट’ कहते हुए अमेरिका में भारतीय निर्यातों पर भारी चुंगी लगाने की धमकी दी थी.
इस वर्ष अगस्त में उन्होंने कहा कि भारत तथा चीन अब विकासशील राष्ट्र नहीं रहे, जबकि वे विश्व व्यापार संगठन से अपने इसी ठप्पे के बल पर फायदे लेते जा रहे हैं. अब तक वे कश्मीर पर कभी ठंडा, तो कभी गर्म रुख अख्तियार करते रहे हैं और इसी क्रम में उन्होंने भारत तथा पाकिस्तान के बीच बिन मांगी मध्यस्थता की पेशकश भी कर डाली थी. पर अब ट्रंप भी शेष विश्व की ही तरह राजनय एवं अर्थव्यवस्था पर मोदी मंत्र का प्रयोग कर रहे हैं.
मोदी अपनी 85 से भी अधिक विदेश यात्राओं के दौरान 175 देशों का भ्रमण कर चुके हैं. अपने दृढ़ बर्ताव तथा भाषण कला के साथ घरेलू मोर्चे पर अपनी भारी जीत से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने भारत के लिए विशिष्ट स्थान हासिल किया है.
विश्व के नेतागण कोई विपरीत मत व्यक्त कर उनका विरोध करने से हिचकिचाते हैं. मिसाल के तौर पर कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और वहां निवारक प्रतिबंध लगाने के भारत के हैरतभरे फैसले को पहले से अधिक समर्थक मिले हैं.
विश्व महसूस करता है कि हिंदुत्व के प्रतीक को समर्थन देना अंतरराष्ट्रीय तथा घरेलू सत्ता के खेल में ज्यादा फायदेमंद है. मोदी ने धर्म निरपेक्षता तथा झूठी समावेशिता के संदिग्ध आकर्षण को अपनी विशिष्ट शैली तथा कथ्य से नष्ट कर दिया है. ह्यूस्टन ने एक नये शक्तिशाली मोदी की शुरुआत की है.
(अनुवाद: विजय नंदन)

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