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कश्मीर आतंक का गढ़ तो बाक़ी देश लिंचिस्तान: इल्तिजा मुफ़्ती

<figure> <img alt="कश्मीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/111E6/production/_109081107_gettyimages-1171469183.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और उसे दो हिस्सों में बांटने के बाद भी कश्मीर घाटी में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं, इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं अभी भी पूरी तरह नहीं चल रही हैं. </p><p>हालांकि सरकार का दावा है कि इनमें से अधिकतर बंदिशें […]

<figure> <img alt="कश्मीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/111E6/production/_109081107_gettyimages-1171469183.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और उसे दो हिस्सों में बांटने के बाद भी कश्मीर घाटी में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं, इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं अभी भी पूरी तरह नहीं चल रही हैं. </p><p>हालांकि सरकार का दावा है कि इनमें से अधिकतर बंदिशें हटा ली गई हैं, लेकिन अभी भी घाटी के छोटे-बड़े नेता नज़रबंद हैं. इनमें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर हुर्रियत के नेता भी शामिल हैं. </p><p>जम्मू-कश्मीर पर जब केंद्र सरकार ने इतना बड़ा फ़ैसला लिया तब वहां राष्ट्रपति शासन लागू था, इससे पहले जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन सरकार थी. </p><p>इस सरकार की कमान पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती के हाथों में थी वो राज्य की मुख्यमंत्री थीं. फ़िलहाल उन्हें नज़रबंद किया गया है. </p><p>महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा मुफ़्ती ने बीबीसी के ख़ास बातचीत में बताया कि कश्मीर के लोग किस तरह के हालात में जी रहे हैं और भारत सरकार के इस फ़ैसले के बाद वहां के लोगों के मन में क्या चल रहा है.</p><p>पढ़िए <strong>इल्तिजा मुफ़्</strong><strong>ती</strong> के साथ बीबीसी संवाददाता<strong> शकील अख़्तर </strong>की बातचीत.</p><p><strong>सरकार का कहना है कि अगर वो सभी पाबंदियां हटा लेंगे तो दोबारा कश्मीर में हालात ख़राब हो जाएंगे</strong><strong>, </strong><strong>उन्होंने कश्मीर के भले के लिए यह फ़ैसला किया है. आपका क्या कहना है</strong><strong>?</strong></p><p>अगर आप जम्मू-कश्मीर को विकास के पैमानों पर देखेंगे तो कश्मीर में ग़रीबी नहीं है. दो महीने पहले जिस तरह से टूरिस्ट को निकाला गया, बहुत सारी तादाद में बिहारी मज़दूरों को निकाला गया. बिहार के मज़दूर कश्मीर में काम करने जाते हैं, इसकी वजह यह है कि उनको कश्मीर में बेहतर आमदनी मिलती है. </p><p>कश्मीर के बारे में जो छवि बनाई जाती है कि कश्मीर के लोग पत्थरबाज़ी करना चाहते हैं, अमन नहीं चाहते. यह बिलकुल ग़लत है.</p><p>जब आप कश्मीर के बारे में इतना अहम फै़सला लेने जा रहे थे तो क्या यहां के लोगों को यह हक़ नहीं बनता कि उनकी राय पूछकर तब यह फै़सला लिया जाता, कश्मीर में भी लोकतंत्र है. यहां लोगों को भी अपनी बात रखने का हक़ है.</p><p>कश्मीर में हालात क्यों ख़राब हुए, क्योंकि केंद्र सरकार ने इतनी बड़ी हरकत की है. अगर वो जम्मू-कश्मीर का विकास और उसका भला चाहते थे तो उन्होंने इसके दो हिस्से क्यों किए. </p><p>असल में ये कश्मीर को शक्तिहीन करना चाहते हैं और यह बताना चाहते हैं कि कश्मीर को मज़ा चखाएंगे.</p><p>जब साल 2015 में मेरी मां ने इनके साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी तो कई बार इनसे कहा गया कि कश्मीर में बिजली से जुड़ी परियोजनाओं को वापस दीजिए क्योंकि कश्मीर में बिजली गुल होने का मसला बहुत बड़ा रहता है.</p><p>विकास करने के लिए तो बिजली बेहद ज़रूरी होती है, तो उन्होंने वो प्रोजेक्ट क्यों नहीं दिए.</p><figure> <img alt="महबूबा मुफ़्ती" src="https://c.files.bbci.co.uk/75A6/production/_109081103_94d9c909-6c2e-4c06-9efb-af9a357f7468.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>महबूबा मुफ़्ती</figcaption> </figure><p><strong>अगर इंटरनेट की पांबदियां खोल दी जाएं तो क्या हालात होंगे</strong><strong>?</strong></p><p>अगर जम्मू-कश्मीर को आतंक का गढ़ कहा जाता है तो बाक़ी देश तो लिंचिस्तान बन चुका है. दरअसल ये चाहते नहीं हैं कि कश्मीर से एक भी आवाज़ उठे. </p><p>अभी जब इंटरनेट वापस आ जाएगा तो लोग यह बता पाएंगे कि कैसे उन्हें दो महीने तक क़ैद में रखा गया. </p><p>कितनी तादाद में छोटे-छोटे बच्चों को हिरासत में लिया गया और उनका उत्पीड़न किया गया है. ये चाहते नहीं है कि ये सब चीज़ें सामने आएं</p><p><strong>पाकिस्तान के प्रधानमंत्री</strong><strong> इमरान ख़ान ने जो भाषण दिया, जो कि पूरी तरह कश्मीर पर ही आधारित था. उस</strong><strong>का क्या असर पड़ा</strong><strong>?</strong></p><p>इमरान ख़ान के भाषण के बाद भारत प्रशासित कश्मीर में लोग बहुत ज़्यादा तादाद में बाहर निकलकर आए. उन्हें अच्छा लगा कि कोई तो उनकी बात कर रहा है. </p><p>लोगों को यह महसूस हुआ कि जिस मुल्क के साथ वो रह रहे हैं, अब वो लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष नहीं रहा है. </p><figure> <img alt="इल्तिजा मुफ़्ती" src="https://c.files.bbci.co.uk/2786/production/_109081101_9d2cd9bc-6249-4900-b9f8-34f1fc269fc9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>इल्तिजा मुफ़्ती</figcaption> </figure><p><strong>अब कश्मीर का भविष्य क्या है?</strong></p><p>अभी तो फ़िलहाल पूरी तरह से अंधेरा ही दिख रहा है. देखते हैं आगे क्या होता है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि कश्मीरी अब उस मुक़ाम पर हैं जहां उन्हें महबूबा मुफ़्ती या उमर अब्दुल्लाह के नेतृत्व की ज़रूरत है. </p><p>मुझे लगता है कि अब यह बिना नेता के चलने वाला मूवमेंट होगा. लोग पूरी जद्दोजहद करके अपना हक़ चाहते हैं और इसके लिए वो शांतिपूर्ण तरीक़े से लड़ेंगे. </p><p>दुख इस बात का है कि यह जो सरकार है उसने लोगों को पिंजड़े में क़ैद करके रख दिया है. उन्हें इतना भी हक़ नहीं दे रहे कि शांतिपूर्ण तरीक़े से विरोध जता पाएं.</p><p><strong>भारत के लोगों के रुझान के बारे में क्या सोचना है?</strong></p><p>मुझे बहुत बुरा लगता है जब भी मैं अपनी मां के ट्विटर पर या किसी इंटरव्यू में कुछ भी बोलती हूं. तो बोलते हैं कि आपने कश्मीरी पंडितों को निकाला. </p><p>असल में ये लोग इतिहास को बिगाड़ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि कश्मीर में हुई हिंसा का असर सिर्फ़ पंडितों पर ही पड़ा और वहां के मुसलमानों पर नहीं पड़ा. </p><p>जब मैं बच्ची थी तब मेरी मां बाहर जाती थीं तो मुझे यह तक नहीं पता होता था कि वो शाम को मेरे पास वापस आएंगी या नहीं. </p><p>कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार हुआ, इस बात को ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल किया जा रहा है. </p><figure> <img alt="जम्मू कश्मीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/C3C6/production/_109081105_5301c013-ccbc-4060-8cfc-1842936f3f4c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>जम्मू में अनुच्छेद 370 के ज़्यादातर प्रावधानों को हटाए जाने का जश्न मनाते लोग</figcaption> </figure><p><strong>क्या आपको हिंदुस्तान बदला हुआ नज़र आ रहा है?</strong></p><p>मुझे पहली बार इस बात से घबराहट होती है कि मैं एक मुसलमान हूं. मुझे इतने सालों में कभी इस तरह का डर नहीं लगा. </p><p>इस सरकार के जो भी फैसले हैं चाहे वो एनआरसी, अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करना हो या सिटिजनशिप बिल हो, इससे ऐसा लगता है कि इस देश की जो रूह है उसे हर रोज़ चोट पहुंचाई जा रही है. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a 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