बड़े-बुजुर्ग किसी भी घर-परिवार की शान होते हैं. बुजुर्ग घर के मुखिया कहलाते हैं. हमारे भारतीय समाज में बड़े-बुजुर्गों का सम्मान सदियों से चला आ रहा है. क्योंकि बड़े-बुजुर्ग हमें बहुत से अनुभवों का बोध कराते हैं. यह अनुभवों का ऐसा खजाना होते हैं जिनसे हम सीख लेकर अपना जीवन संवारते हैं. ये अपना स्वार्थ का त्याग कर हमारी खुशी के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो उनके बचपन का ज्यादातर समय दादा-दादी, नाना-नानी की गोद में गुजरता है. मां-बाप से ज्यादा बच्चों को चलना-फिरना और बोलना यही सिखाते हैं. इतना ही नहीं ये विभिन्न तरह की कहानियां सुनाकर हमारे अंदर अच्छे संस्कार भरने का काम भी करते हैं. अपने प्यार से रिश्तों को सींचने वाले इन बुजुर्गाें को आज न तो अपने बच्चों का प्यार मिल पाता है और न ही समाज का सम्मान. इन्हें सम्मान और अपने परिवार में स्थान देने के बजाए वृद्धाश्रम में छोड़ दिया जाता है. यह सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे भारत में एक समस्या बनकर उभर रही है. अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर पेश है मनीष कुमार की रिपोर्ट.
न करें इन्हें नजरअंदाज
आज के युवा अपने वृद्ध माता पिता या दादा-दादी को मान-सम्मान नहीं देते हैं. इतना ही नहीं वृद्धों को वृद्धा आश्रम में छोड़ आते हैं. कई घरों में मुझे देखने को मिला कि अगर कोई वृद्धि बीमार पड़ गये हो तो उन्हें सेवा करना अपना कर्तव्य भी नहीं समझते हैं. जब वह वृद्ध व्यक्ति मौत के करीब आते-आते दुनिया से चले जाते हैं. तब उनके घर वालों को होश आता है कि वृद्ध व्यक्ति हमारे जीवन के लिए विशिष्ट अंग थे. आज कल हर दिन अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खियों में वृद्धों की हत्या और मारपीट की घटनाएं देखने व सुनने को मिलती है. वृद्धाश्रमों में बढ़ती संख्या इस बात का साफ सबूत है कि वृद्धों को उपेक्षित किया जा रहा है.
बदलनी होगी सोच : हेल्पेज इंडिया बिहार के प्रमुख गिरिश मिश्र बताते हैं कि सरकार यह मानती है कि बुजुर्ग 60 के बाद जब रिटायर हो जा रहे हैं तो इनमें काम करने की क्षमता नहीं होती. पर यह देखा गया कि रिटायरमेंट के बाद भी 40 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग सक्रिय होते हैं. पर सरकार के पास ऐसा कोई प्लान नहीं है कि उन बुजुर्गों को कोई रोजगार से जोड़ा जाये. दूसरी बात यह कि जो सामाजिक सुरक्षा वृद्धा पेंशन योजना है उनकी मासिक राशि इतनी कम है कि कोई भी वृद्ध एक सम्मानित जीवन जी ही नहीं सकता है. अगर हम बिहार की बात करें तो केंद्र सरकार का 200 रुपये अंशदान और राज्य सरकार से 200 रुपये का अंशदान यानी 400 रुपये प्रति महीने मिलता है जो जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है.
इसलिए मनाया जाता है बुजुर्ग दिवस
संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे अपमान, तिरस्कार और दुर्व्यव्हार को खत्म करने के लिए और लोगों व समाज को अवेयर करने के लिए 14 दिसंबर,1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल एक अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मनाकर हम बुजुर्गों को उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश करेंगे. एक अक्तूबर, 1991 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाया गया था. जिसके बाद से इसे हर साल इसी दिन के रूप में मनाया जाने लगा.
बुजुर्गों को दें प्यार और सम्मान
बुजुर्ग यानी ‘हमारी धरोहर’, आज हमारी तेज रफ्तार जिंदगी में कहीं ये पीछे छूटते जा रहे हैं. परिवार की नींव रखने वाले बुजुर्ग अक्सर खुद को नयी पीढ़ी और खासकर अपने बेटे-बहू और नाती-पाेतों आदि से जुदा मानते हैं. इसके पीछे वजह है, बुजुर्गों के साथ बदलता रवैया. आज न सिर्फ उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव कम हो रहा है, बल्कि बर्ताव भी खराब हो रहा है. परिवार के लोग उनसे ठीक से बात तक नहीं करते. घर के किसी कोने में वे यूं ही पड़े रहते हैं. बुजुर्गों को अपने बच्चों से सिर्फ प्यार और सम्मान चाहिए अपमान व तिरस्कार नहीं. अपने बच्चों की खातिर अपना जीवन दांव पर लगा चुके बुजुर्गों को अब अपनों के सिर्फ प्यार की जरूरत होती है. भले ही परिवार वाले तीन वक्त के बजाये उन्हें दो वक्त का ही भोजन दें, पर प्यार से यदि उसका बेटा-बहू यह पूछ ले कि- पिता जी आप कैसे हैं? खाना खाया कि नहीं? कोई परेशानी तो नहीं? आदि, यही उसके लिए बड़ी बात होती है. यदि हम इन्हें सम्मान और अपने परिवार में स्थान देंगे तो शायद वृद्धाश्रम की अवधारणा ही इस समाज से समाप्त हो जायेगी.
वृद्धों की रक्षा के लिए कानून : भारत में भी वृद्धों की सेवा और उनकी रक्षा के लिए कई कानून और नियम बनाये गये हैं. केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्ठ नागरिकों के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्यों के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार की है. इस नीति का उद्देश्य व्यक्तियों को स्वयं के लिए तथा उनके पति या पत्नी के बुढ़ापे के लिए व्यवस्था करने के लिए प्रोत्साहित करना इसमें परिवारों को अपने परिवार के वृद्ध सदस्यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करने का भी प्रयास किया जाता है. इसके साथ ही 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया है.
केरल से हमें भी सीखने की है जरूरत
केरल में साल 2013 में वायोमित्रम-केरल सोशल सिक्योरिटी मिशन नामक योजना चलायी जाति है, जिसके अंतर्गत घर के माहौल में ही बुजुर्गो की देखभाल की व्यवस्था की जाती है ताकि अपने घर के वातावरण में ही वो पूरी सुरक्षा और गरिमा के साथ आराम से रह सकें. केरल एक ऐसा राज्य है जहां बुजुर्गों पर खास ध्यान दिया जाता है. इतना ही नहीं बुजुर्गों के लिए क्या किया जाना चाहिए यहां पंचायत स्तर पर योजनाएं बनती हैं. यहां ऐसा इसलिए है क्योंकि केरल के युवा बहुत ज्यादा पलायन करते हैं. पढ़ लिखकर वह बाहर के देश में चले जाते हैं. इसलिए घर में ज्यादा से ज्यादा बुजुर्ग ही रह जाते हैं. इसलिए यहां पंचायत स्तर पर कि इनके लिए योजनाएं बनायी जाती हैं. ताकि अधिक से अधिक उनको लाभ मिल सके.
हमें समझना चाहिए कि वरिष्ठ नागरिक समाज के अमूल्य विरासत होते हैं. उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का हमसे ज्यादा अनुभव होता है. आज के युवा को उनकी देखभाल और यह अहसास कराये जाने की जरुरत है कि वे हमारे लिए खास महत्व रखते हैं.
– गिरिश मिश्र, हेल्पेज इंडिया के प्रमुख (बिहार )
आज छोटी से उम्र में बच्चों का एडमिशन स्कूल में करा दिया जाता है. कम उम्र में ही उन्हें मोबाइल और इंटरनेट दे दिया जाता है. ऐसे में उन्हें न तो दादा-दादी की जरूरत पड़ती है न ही नाना-नानी की. ऐसे में वे इन्हें कैसे महत्व देंगे. हमारे देश में वेस्टर्न कल्चर का भी ज्यादा प्रभाव पड़ा है.
– ऊषा किरण खान, वरिष्ठ साहित्यकार