शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो गया है. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है. मां शैलपुत्री मनोवांछित फल देने वाली देवी है. माता मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृष पर आरुढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी है. शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन शुक्ल पक्ष एकम को कलश स्थापना के साथ होती है. कलश स्थापना के माध्यम से आदि शक्ति जगदम्बा का आह्वानकिया जाता है.
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कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र आज से शुरू, घर-घर हो रही है मां शैलपुत्री की पूजा
शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो गया है. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है. मां शैलपुत्री मनोवांछित फल देने वाली देवी है. माता मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करनेवाली, वृष पर आरुढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी है. शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन शुक्ल पक्ष एकम को कलश स्थापना के साथ होती है. कलश स्थापना के […]
त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कारः स्वरात्मिका
नवरात्र के अवसर पर मां दुर्गा की उपासना करने से मानव का हर प्रकार से कल्याण होता है. वह मानव चाहे अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फंस गया हो, उसका कोई अमंगल नहीं होता. उसे शोक-दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती.
शास्त्रों के अनुसार ऐश्वर्य तथा पराक्रम स्वरूप एवं इन दोनों को प्रदान करनेवाली मां दुर्गा की शक्ति नित्य के व्यावहारिक जीवन में आपदाओं का निवारण कर ज्ञान, बल, क्रियाशक्ति प्रदान कर, धर्म, अर्थ, काम की याचक की इच्छा से भी अधिक प्रदान कर जीवन को लौकिक सुखों से धन्य बना देती हैं.
मां के उपासक का व्यक्तित्व सबल, सशक्त, निर्मल एवं उज्ज्वल कीर्ति से सुरभित हो जाता है तथा अलौकिक परमानंद को प्राप्त कर मुक्ति का अधिकारी हो जाता है. इसलिए देवी भागवत में कहा गया है-
ऐश्वर्यवचनः शश्च क्तिः पराक्रम एव च ।
तत्स्वरूपा तयोर्दात्री सा शक्तिः परिकीर्तिता ॥
इस महाशक्ति दुर्गा कौन है इस संबंध में देवर्षि नारदजी की जिज्ञासा को शांत करते हुए भगवान नारायण ने कहा था कि देवी नारायणी शक्ति नित्या सनातनी ब्रह्मलीला प्रकृति है.
तया युक्तः सदात्मा च भगवांस्तेन कथ्यते ।
स च स्वेच्छामयो देवः साकारश्च निराकृतिः ॥
अग्नि में दाहकता, चंद्र तथा पद्म में शोभा और रवि में प्रभा की भांति वह आत्मा से युक्त है, भिन्न नहीं. जैसे स्वर्ण के बिना स्वर्णकार अलंकार तथा मिट्टी के बिना कुम्हार कलश का निर्माण नहीं कर सकता, उसी प्रकार सर्वशक्तिस्वरूपा प्रकृति (दुर्गा) के बिना सृष्टिकर्ता सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकता.
इसलिए आचार्य शंकर की दृष्टि में इस महाशक्ति की उपासना हरि (विष्णु), हर (शिव) तथा विरिंचि (ब्रह्मा) सभी करते हैं. शिव शक्ति से (इ-शक्ति) युक्त होने पर ही समर्थ होते हैं. इ-शक्ति से हीन शिव मात्र शव रहते हैं. वे स्पंदन रहित हो जाते हैं. अतः नवरात्र के अवसर पर महाशक्ति स्वरूपिणी मां दुर्गा की आराधना करना चाहिए. उनकी कृपा से मनुष्य की निश्चित अभीष्ट-सिद्धि होती है. प्रसिद्धि है- कलौ चण्डी विनायक अर्थात कलियुग में देवी चंडी और गणेश प्रत्यक्ष फल देते हैं.
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