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दुनियाभर में हृदय संबंधी (सीवीडी) बीमारियां और इससे मौतें

1.77 करोड़ मौतें हृदय से जुड़ी बीमारियों की वजह से होती हैं दुनियाभर में हर साल. 1/3 मौतें 70 वर्ष कम आयु वर्ग के लोगों की होती हैं. यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. 80 प्रतिशत मौतें हृदयघात और स्ट्रोक की वजह से होती हैं कुल सीवीडी मौतों में. 70 प्रतिशत हृदय से संबंधी […]

  • 1.77 करोड़ मौतें हृदय से जुड़ी बीमारियों की वजह से होती हैं दुनियाभर में हर साल.
  • 1/3 मौतें 70 वर्ष कम आयु वर्ग के लोगों की होती हैं. यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है.
  • 80 प्रतिशत मौतें हृदयघात और स्ट्रोक की वजह से होती हैं कुल सीवीडी मौतों में.
  • 70 प्रतिशत हृदय से संबंधी बीमारियों से होनेवाली मौतें विकासशील देशों में होती हैं.
हृदय रोग बढ़ानेवाले प्रमुख कारक
  • तंबाकू का इस्तेमाल
  • अत्यधिक नमक युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन
  • हृदय से जुड़ी बीमारियां : उच्च रक्तचाप
पैदाइशी हृदय संबंधी बीमारी (कॉन्जेंटल हार्ट डिजीज) :
यह बीमारी जन्मजात होती है. उम्र बढ़ने के साथ समस्याएं बढ़ती हैं. इस बीमारी में मरीज के हृदय की संरचना त्रुटिपूर्ण होती है. धमनियों और शिराओं की संरचना दोषपूर्ण होने के कारण हार्ट फंक्शन प्रभावित होता है. इस बीमारी में वॉल्व संकरा हो जाता है, जिससे रक्त संचार बाधित होता है और इसी वजह से मौत हो जाती है.
मांसपेशी से जुड़ी बीमारी (कॉर्डियोमायोपैथी) : हर साल दुनियाभर में इस बीमारी से जुड़े लाखों मामले सामने आते हैं. इसमें हृदय की मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे हृदय पर्याप्त ब्लड को पंप नहीं कर पाता है. शरीर में पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं होने से समस्या जटिल हो जाती है. प्राइमरी कॉर्डियोमायोपैथी में हृदय मांसपेशियों की संरचना व क्रियाविधि प्रभावित होती है, तो सेकेंडरी कॉर्डियोमायोपैथी में शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते हैं.
रक्तसंकुलता से हृदय की बीमारी (कंजेस्टिव हार्ट फेलियर) :
इस बीमारी में हृदय शरीर के ऊतकों के लिए पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं कर पाता है. इससे ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. सांस लेने में दिक्कत, जोड़ों पर सूजन और वजन बढ़ना इसके प्रमुख लक्षण हैं.
धमनी की बीमारी (कॉरोनरी आर्टरी डिजीज) :
यह हृदय से जुड़ी सबसे बड़ी बीमारी मानी जाती है. इसमें धमनियों के संकुचित हो जाने से हृदय की मांसपेशियों में बदलाव होने लगता है. तनाव और कठोर परिश्रम करते हुए एक या एक से अधिक धमनियों के संकुचित होने का खतरा रहता है.
रक्तवाहक छिद्र से हृदय रोग (वॉल्वुलर डिजीज)
हृदय में होनेवाली यह बीमारी जन्मजात, गठिया रोग (रुमैटिक फीवर) या रुमैटिक हार्ट डिजीज की वजह से हो सकती है. इस बीमारी में शरीर को रक्त की आपूर्ति करने के लिए हार्ट ज्यादा पंप करना पड़ता है, जिससे हार्ट मसल के डैमेज होने का खतरा रहता है. (स्रोत : डिपार्टमेंट ऑफ सर्जरी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी)
25 वर्षों में दोगुने हो गये हृदय रोग से मौत के मामले
लांसेट समेत अनेक शोधों के अनुसार, हमारे देश में वर्ष 1990 से 2016 के बीच हृदय रोग और स्ट्रोक के प्रसार में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
देश में होनेवाली कुल मौतों और बीमारियों के बोझ में इन रोगों का योगदान पिछले 25 वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है. आज हमारे देश में सबसे ज्यादा लोग हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं, जबकि इस मामले में स्ट्रोक पांचवें स्थान पर है.
हृदय रोग और स्ट्रोक के कारण 2016 में 28.1 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हुई थी, जबकि 1990 में इस कारण होनेवाली मृत्यु का प्रतिशत 15.2 था. हृदय रोग से होनेवाली मौत और विकलांगता का अनुपात महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिक था, जबकि स्ट्रोक के मामले में लैंगिक तौर पर कोई असमानता नहीं थी.
28 लाख थी कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से मरनेवालों की संख्या 2016 में 1990 के 13 लाख की तुलना में.
2.57 करोड़ कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के मामले थे 1990 में जो 2016 में बढ़कर 5.45 करोड़ पर पहुंच गये. इस बीमारी का प्रसार केरल, पंजाब, तमिलनाडु में सबसे ज्यादा था. इसके बाद आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा और पश्चिम बंगाल का स्थान था.
वर्ष 2016 में होनेवाली कुल मृतकों में आधे से अधिक 70 वर्ष से कम उम्र के लोग थे. मौत का यह अनुपात कम विकसित राज्यों में सर्वाधिक था.
भारत में 2.38 करोड़ इस्केमिक हार्ट डिजीज और 65 लाख स्ट्रोक के मामलों का अनुमान लगाया गया था 2016 में, जो 1990 के मुकाबले तीन गुना ज्यादा था.
वर्ष 2016 में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के अतिव्यापी जोखिमवाले कारकों में आहार संबंधी जोखिम (56.4 प्रतिशत), हाइ सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर (54.6 प्रतिशत), वायु प्रदूषण (31.1 प्रतिशत), हाइ टोटल कोलेस्ट्रॉल (29.4 प्रतिशत), तंबाकू का इस्तेमाल (18.9 प्रतिशत), हाइ फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज (16.7 प्रतिशत) और हाइ बीएमआइ (14.7 प्रतिशत) शामिल थे.
सरकार की पहल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन भारत उच्च रक्तचाप प्रबंधन पहल के माध्यम से देश में प्राणघातक हृदय रोगों की रोकथाम का प्रयास चल रहा है. नवंबर, 2017 में प्रारंभ हुई इस पहल का संचालन स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग एवं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के द्वारा होता है.
देश में लगभग 20 करोड़ व्यस्क उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में तो केवल 20 प्रतिशत ऐसे लोग ही समस्या से परिचित हैं. इस योजना में 2025 तक हृदय रोगों से होनेवाली मौतों में 25 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
रक्तचाप प्रबंधन के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्तर पर रक्तचाप की निगरानी और पीड़ितों के उपचार की व्यवस्था की जा रही है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के अनुरूप है. इस पहल का आधार चिकित्सा अनुसंधान परिषद, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग तथा बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से हुए भारत के राज्यों के स्वास्थ्य का अध्ययन है. वर्ष 1990 से 2016 तक की स्थिति का विश्लेषण किया गया है.
भारत में 90 हजार कार्डियोलॉजिस्ट की जरूरत
हेल्थ इंडिया इश्यू के 2018 के रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय लोगों के हृदय की उचित देखभाल के लिए हमारे देश में लगभग 90 हजार कार्डियोलॉजिस्ट की जरूरत है. जबकि वर्तमान में इसकी संख्या महज चार हजार है. भारतीय जीवनशैली से जुड़ी स्थितियां भी भारतीयों में हृदय रोगों के जोखिम का कारक हैं. इनमें डायबिटिज और हाइपरटेंशन सबसे प्रमुख कारक हैं. हालांकि, जीवनशैली बदलकर इन बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है.
स्वस्थ हृदय सबका अधिकार
अपने हृदय की देखभाल और उसे स्वस्थ रखने के लिए एक छोटा, लेकिन जरूरी कदम उठाकर उसे बीमारियों से दूर रखा जा सकता है. संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम करके और शराब एवं धूम्रपान को छोड़कर इस दिशा में सफल प्रयास किया जा सकता है. यह प्रयास न केवल हमें स्वस्थ्य बनाने में मददगार होगा, बल्कि जीवन भी आनंदपूर्ण होगा.
स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है
दुनियाभर में कुल हृदयगत बीमारियों में होनेवाली 80 प्रतिशत असामयिक मौतें मुख्य रूप से चार कारणों की वजह से होती हैं- तंबाकू का इस्तेमाल, अस्वस्थ्य खान-पान, शारीरिक गतिविधियों का अभाव और शराब का सेवन.
तंबाकू के इस्तेमाल और सेकेंडहैंड स्मोक की वजह से हर साल दुनियाभर में 60 लाख मौतें होती हैं. ये मौतें कुल हृदय संबंधी बीमारियों से होनेवाली मौतों का 10 प्रतिशत से अधिक होती हैं.
हर साल छह लाख मौतें सेकेंडहैंड स्मोक से होती हैं, इनमें 28 प्रतिशत बच्चे होते हैं.
धूम्रपान रोकने के दो साल के भीतर हृदय की बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है. धूम्रपान छोड़ने के 15 साल के भीतर सीवीडी का खतरा नॉन-स्मोकर के स्तर पर आ जाता है.

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