पीयूष पांडे
व्यंग्यकार
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सरकार बहुत दूरदर्शी है. मंदी आने की खबर क्या हुई, सरकार ने उसकी राह में नये ट्रैफिक नियम के रूप में स्पीड ब्रेकर लगा दिया. अब हर तरफ चालान पर चर्चा है. मंदी कंफ्यूज है कि आऊं या जाऊं? जहां तक मंदी से प्रभावित लोगों का सवाल है, तो यहां लोगों की चार कैटेगरी हैं.
पहली इतनी गरीब है कि उसे एक वक्त का भोजन तक नसीब नहीं होता. मंदी उसकी भूख से टकराकर उसके घर में दम तोड़ देती है. दूसरी कैटेगरी के लोग जैसे-तैसे दो जून की रोटी का इंतजाम कर लेते हैं. उन्हें न कार चाहिए न पेट्रोल. तीसरी कैटेगरी इतनी रईस है कि मंदी और महंगाई जैसे शब्द उनके शब्दकोष में नहीं हैं. चौथी कैटेगरी में वे मध्यवर्गीय हैं, जो मंदी और महंगाई के आने पर जितना प्रभावित होते हैं, उससे दस गुना ज्यादा हल्ला मचाते हैं. लेकिन सरकार बहुत सयानी है. वह नहीं चाहती कि मंदी को लेकर मचे हल्ले से ‘नॉइस पॉल्यूशन’ फैले. सो सरकार ने मंदी की राह में नये ट्रैफिक नियम के कांटे बो दिये.
आप पूछ सकते हैं कि मंदी का चालान से क्या लेना-देना? यहां लोगों की एक समस्या यह भी है कि वे किसी से कुछ पूछते नहीं. लेकिन, मैं बिना पूछे बता देता हूं. दरअसल, चालान के जरिये सरकार पूरी मंदी को पटखनी देना चाहती है. अब नये ट्रैफिक नियम के लागू होते ही हेलमेट इंडस्ट्री में बहार आ गयी है. इंडस्ट्री के लोगों के पास पैसा आयेगा, तो जरूर खर्च करेंगे. घर, टीवी, कार खरीदेंगे. अपनी दुकान पर एक-दो कर्मचारी रखेंगे. यानी मंदी को मात देने में अपनी भूमिका निभायेंगे.
इसी तरह प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र बनानेवाला मंदी को मात देने में अपनी भूमिका निभायेगा. पुलिसकर्मी तो मंदी को भगाने में पहले दिन से सक्रिय हो ही गये हैं. ट्रैफिक नियम उल्लंघन के बाद पहले जिस बंदे से वो 50 रुपये की रिश्वत लेते थे, वह रेट अब 500 रुपये हो गया है. पुलिसकर्मी कमाकर ज्यादा रकम घर ले जायेंगे, तो उनकी बीवियां ज्यादा गहने खरीदेंगी. नया फ्लैट खरीदा जायेगा या नया कमरा बनेगा. एक पुलिसकर्मी की जेब में ज्यादा नोट आने से सीमेंट से लेकर ऑटो इंडस्ट्री तक की मंदी को मात मिलेगी.
जिनके हजारों-लाखों के चालान होंगे, वे उसकी भरपाई के लिए ज्यादा काम करेंगे. नये आइडिया सोचेंगे. नये विचारों से नये स्टार्टअप्स खोले जायेंगे.
कुछ लोग चालान की रकम चुकाने के लिए बैंक से लोन लेंगे या क्रेडिट कार्ड से भुगतान करेंगे. इससे बैंकिंग इंडस्ट्री की ग्रोथ होगी. मोटा चालान ना भर पाने की वजह से जिनकी गाड़ियां जब्त होंगी, वे ओला-उबर से घर जायेंगे. इससे इन कंपनियों का व्यवसाय भी बढ़ेगा.
चालान की चिल्ल-पों इसी तरह जारी रहेगी, तो मॉब लिंचिंग, हिंदू-मुसलमान, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर भी लोगों का ध्यान नहीं जायेगा. इन मुद्दों पर बहस से असहिष्णुता फैलती है. जितने ज्यादा रुपये का चालान कटेगा, उतनी ही बड़ी खबर बनेगी. इससे चर्चा में चालान रहेगा, मंदी-वंदी की कोई बात नहीं होगी. दरअसल, चालान का चाबुक मंदी की ऐसी पिटायी करेगा कि मंदी रहे भले कहीं, लेकिन वह चूं भी नहीं करेगी.