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संबंधों में अहम मोड़

दो दशकों से भारत और अमेरिका के आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक संबंध लगातार मजबूत होते रहे हैं. इस दौरान दोनों देशों की निकटता का रणनीतिक महत्व भी कई बार साबित हुआ है, विशेषकर आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई तथा दक्षिण एशिया में सुरक्षा सुनिश्चित करने के संदर्भ में. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संबंध […]

दो दशकों से भारत और अमेरिका के आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक संबंध लगातार मजबूत होते रहे हैं. इस दौरान दोनों देशों की निकटता का रणनीतिक महत्व भी कई बार साबित हुआ है, विशेषकर आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई तथा दक्षिण एशिया में सुरक्षा सुनिश्चित करने के संदर्भ में.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संबंध को बेहतर करने की दिशा में प्रयासरत हैं और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत की मित्रता को बहुत मान देते हैं.
फिर भी पिछले साल से दोनों देशों के बीच असहजता बढ़ी है. ट्रंप प्रशासन की संरक्षणवादी नीतियों का असर भारत पर भी पड़ा है. वर्ष 2018 में अमेरिका से भारतीय आयात में लगभग 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जो अमेरिका को लक्षित भारतीय निर्यात की बढ़त से ढाई गुना अधिक है.
विभिन्न उत्पादों पर शुल्कों को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बन पायी है. भारत की ई-कॉमर्स नीति पर भी अमेरिका ने आपत्ति जतायी है. भारतीय उपभोक्ताओं के डिजिटल डेटा को निजता और सुरक्षा की दृष्टि से देश के भीतर ही रखने के भारत के आग्रह को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. अमेरिका ने कुछ भारतीय उत्पादों के आयात पर लगानेवाले शुल्क में छूट को भी वापस ले लिया है.
हालांकि, पाकिस्तान की धरती से भारत-विरोधी गतिविधियों को संचालित करनेवाले गिरोहों और सरगनाओं पर लगाम लगाने की कोशिशों तथा जम्मू-कश्मीर से संबंधित भारत की हालिया पहलों में भारत को अमेरिका का साथ मिला है, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान से बातचीत और वहां से अपनी सेनाओं को बाहर निकालने के प्रयासों में उसने पाकिस्तान से जो सहयोग लिया है, वह दक्षिण एशिया के लिए अच्छा संकेत नहीं है. इस कारण भारत ने उस प्रयास से अपने को अलग रखा, जबकि लंबे समय से हमारे देश की ओर से अफगानिस्तान के नवनिर्माण में योगदान दिया जा रहा है. पिछले दिनों तालिबानी हमलों की वजह से अमेरिका ने उसके साथ बातचीत को रोक दिया. इससे भारत की आशंकाएं सही साबित हुई हैं.
रूस से भारत द्वारा सैन्य साजो-सामान की खरीद पर भी अमेरिका ने एतराज जताया है. ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा का महत्व बहुत बढ़ जाता है. अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद वे दो बार राष्ट्रपति ट्रंप से मिल चुके हैं. उन मुलाकातों की सकारात्मकता से यह उम्मीद बंधी है कि इस दौरे से मामूली मुद्दों पर बरकरार तनातनी को खत्म करने की दिशा में ठोस प्रगति होगी. इस यात्रा में एक सप्ताह में दोनों नेताओं की दो बैठकें होंगी.
अमेरिकी शहर ह्यूस्टन में भारतीय अमेरीकियों की रैली के बाद न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के आयोजन के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप बातचीत करेंगे. ह्यूस्टन रैली भी इस दौरे की अहम घटना है, जिसे राष्ट्रपति ट्रंप की भागीदारी से समझा जा सकता है. दोनों नेताओं की नजदीकी भी अहम कारक है. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को एक नया आयाम मिलने की प्रबल संभावना है.

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