नयी दिल्ली : मालती अक्सर छोटी-मोटी चीजें इधर-उधर रखकर भूल जाया करती थी. कई बार उसे लगता उसकी याददाश्त कम हो रही है, लेकिन उसने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उस दिन हद हो गयी, जब वह अपने बच्चों को स्कूल से लाने के लिए घर से निकली और स्कूल का रास्ता भूल गयी. वह घंटों सड़क पर कार दौड़ाती रही और उधर बच्चे स्कूल के बाहर मां का इंतजार करते रहे. बाद में पता चला कि मालती को अल्जाइमर है.
इसी तरह की एक अन्य घटना में अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति की कमीज की जेब पर एक कार्ड लगा था, जिस पर उनका नाम, टेलीफोन नंबर और घर का पता लिखा था. पूछने पर पता चला कि उन्हें अल्जाइमर की बीमारी है और उन्हें घर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता था.
वह नजर बचाकर घर से निकलते, तो उस स्थिति के लिए उनकी कमीज पर वह कार्ड लगा दिया गया था, ताकि अगर वह भटक जायें, तो कोई उन्हें घर पहुंचा दे. यह इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षण हैं.
उम्र और बीमारी बढ़ने के साथ-साथ लक्षण गंभीर होने लगते हैं और व्यक्ति अपने आसपास मौजूद लोगों और यहां तक कि अपने पड़ोसियों, दोस्तों रिश्तेदारों और यहां तक कि अपने जीवनसाथी और अपने बच्चों तक को नहीं पहचान पाता.
विभिन्न देशों में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार, करीब साढ़े तीन करोड़ लोग इस बीमारी के शिकार हैं. बीमारी के कारण अब तक रहस्य ही हैं.
अल्जाइमर रोग के लक्षण और प्रभाव स्पष्ट होने के बावजूद इसके कारणों को लेकर भ्रम की स्थिति है. यह रोग मस्तिष्क की कोशिकाओं को विकृत और नष्ट कर देता है, जिससे शरीर और दिमाग का संपर्क टूटने लगता है, स्मृति विलोप होने लगता है और तंत्रिका कोशिकाओं का संचार अवरुद्ध हो जाता है.
इसके फलस्वरूप व्यक्ति के सोचने-समझने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है और बीमारी में बेबसी के चलते व्यक्ति चिड़चिड़ा और शक्की होने लगता है. यह बीमारी अब केवल बूढ़ों तक ही सीमित नहीं रही है. यह बीमारी अब बच्चों में भी देखी जा रही है.
अल्जाइमर से पीड़ित लोगों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के लिए पूरी दुनिया में 21 सितंबर को ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाया जाता है.
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ राजुल अग्रवाल ने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को रोजमर्रा के कामकाज में परेशानी होती है, फोन मिलाने और किसी काम में ध्यान लगाने में दिक्कत आने लगती है, फैसला लेने की क्षमता कम हो जाती है, चीजें इधर-उधर रखकर भूल जाते हैं, शब्द भूलने लगते हैं, जिससे सामान्य बातचीत में रुकावट आती है, अपने घर के आसपास के रास्ते भूल जाते हैं और उनके रोजमर्रा के व्यवहार में तेजी से बदलाव आता है.
इस रोग को रोकना तो संभव नहीं, लेकिन कुछ सामान्य उपाय करके रोगी की परेशानी को कम जरूर किया जा सकता है.
डॉ अग्रवाल बताते हैं कि उपरोक्त लक्षण दिखने पर व्यक्ति की तत्काल जांच करायें. अल्जाइमर की पुष्टि होने पर पीड़ित को पौष्टिक भोजन देने के साथ ही सक्रिय बनाये रखें. माहौल गमगीन न होने दें और पीड़ित को अकेला न छोड़ें, उसे अवसाद से बचायें.
रोगी के परिचित उसके संपर्क में रहें, ताकि उनके चेहरे उसकी स्मृमि से विलुप्त न होने पायें. पीएसआरआइ हॉस्पिटल के न्यूरोसाइंसेज चेयरमैन डॉ शमशेर द्विवेदी बताते हैं कि अल्जाइमर रोग के भी तीन चरण होते हैं.
प्रारंभिक चरण में रोगी अपने दोस्तों और अन्य व्यक्तियों को पहचान सकता है, लेकिन उसे लगता है कि वह कुछ चीजें भूल रहा है. मध्य चरण में उसकी स्मृति के विलोप की प्रक्रिया और अन्य लक्षण धीरे-धीरे उभरने लगते हैं. अंतिम चरण में व्यक्ति अपनी गतिविधियों को नियंत्रण करने की क्षमता खो देता है और अपने दर्द के बारे में भी नहीं बता पाता. यह चरण सबसे दुखदायी है.
अब अगर इस बीमारी से बचाव की बात की जाये, तो धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरो-सर्जरी डॉ आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि सामान्यत: यह रोग वृद्धावस्था में होता है, परंतु खान-पान एवं जीवनशैली के परिवर्तनों के कारण यह समस्या कम उम्र में भी होने लगी है.
यदि आपके किसी परिजन, मित्र या परिचित में उपरोक्त लक्षण दिखते हैं, तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें. रोग की जानकारी में ही इसका बचाव है. नियमित व्यायाम, पौष्टिक भोजन के साथ ही यदि रोगी को रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग में से कोई बीमारी है, तो उनकी समुचित चिकित्सा करें और पीड़ित को तंबाकू, मद्यपान आदि से दूर रखें.