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इंजीनियर बना किसान, स्ट्रॉबेरी की खेती से बदली जिंदगी

पलामू, बिपिन सिंह : इंजीनियर से किसान बने दीपक मेहता हरिहरगंज स्थित कौवाखोह में 35 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. वह बताते हैं कि उनके जन्म के पहले ही पिता का देहांत हो गया. मां ने किसी तरह से पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर बनाया. धनबाद से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के […]

पलामू, बिपिन सिंह : इंजीनियर से किसान बने दीपक मेहता हरिहरगंज स्थित कौवाखोह में 35 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. वह बताते हैं कि उनके जन्म के पहले ही पिता का देहांत हो गया. मां ने किसी तरह से पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर बनाया. धनबाद से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद वह काम की तलाश में ससुर गोपाल मेहता के पास हरियाणा गये और यहीं से शुरू हुई किसान बनने की कहानी. वहां पहली बार स्ट्राबेरी की खेती देखी. खेती से मुनाफा कमाने की ऐसी सीख मिली कि 2017 में नौकरी का मोह त्याग कर कौवाखोह आ गये. 12 एकड़ जमीन लीज पर ली और स्ट्राबेरी की खेती करने.

पहले साल ही तीन महीने के अंदर 3 से 4 लाख रुपये की आमदनी हुई. इससे जहां एक ओर घर के हालात बदले तो दूसरी ओर धीरे-धीरे झारखंड के बाहर भी क्लाइंट्स भी मिलने लगे. आज 24 साल की उम्र में दीपक सफल किसान बन गये हैं. दीपक बताते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती है स्ट्राॅबेरी की मार्केटिंग और किसानों को अपने तरीके बदलने के लिए तैयार करना.
लेकिन यह तभी संभव है, जब किसानों को व्यावहारिक उदाहरण देकर समझाया जाये. बकौल दीपक ने ससुर के फार्म से एक अनुभवी किसान को झारखंड बुलाया. उनसे खेती की तकनीक को जाना. कृषि-विशेषज्ञों से सलाह ली. साथ ही इंटरनेट और यूट्यूब के जरिए स्ट्रॉबेरी की खेती के संबंध में नोट्स तक बनाया.
हुनर के साथ सरकार का मिला साथ
दीपक ने स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी हर बारीकी को समझा. सरकार ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया. ड्रीप इरिगेशन में 90 फीसदी तक सब्सिडी का लाभ मिला. इसके अलावा दो बार सरकार से ग्रीन हाउस के लिए 1.55 लाख और शेड और नेट के लिए 1.77 लाख की आर्थिक मदद मिली.
खेती के परंपरागत तरीके को बदला
दीपक ने पाया कि किसान पुराने तरीके से खेती कर रहे हैं और साल दर साल एक ही फसल लगा रहे हैं. इस वजह से पर्याप्त मुनाफा भी नहीं मिल रहा है. धीरे-धीरे परंपरागत तरीकों को स्ट्राबेरी की खेती में बदल डाला. दीपक बताते हैं कि खेती के परंपरागत तरीकों पर उनका विश्वास नहीं था.
नेतरहाट में उगाये जा रहे हैं स्ट्रॉबेरी के पौधे
दीपक ने सबसे पहले अपने फार्म में एक एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी के 20 हजार पौधे उगाये. जब स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी, तब 14 रुपये में एक पौधा खरीदा था. अब ये पौधे नेतरहाट की नर्सरी में उगाये जा रहे हैं. सितंबर में लगाये गये ये पौधे नवंबर के पहले हफ्ते से फल देना शुरू कर देंगे. जो गर्मियों की शुरुआत के साथ ही मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत तक देते रहेंगे.
दो लाख की पूंजी लगा चार लाख की कमाई की
दीपक कहते हैं कि सिर्फ तीन महीनों में स्ट्रॉबेरी से प्रति एकड़ दो लाख रुपये लगा कर चार लाख रुपये की कमाई की. पिछले साल दो किलो वाले 36,000 ट्रे स्ट्राॅबेरी यानी 72,000 केजी का उत्पादन कर उसे 120 प्रति केजी के हिसाब से बेचा था.
मिट्टी-तापमान के लिहाज से मुफीद है झारखंड
दीपक को यह पता नहीं था कि उनकी जमीन स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उपयुक्त है या नहीं, इसलिए उन्होंने मृदा परीक्षण विभाग की मदद ली. स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 30-32 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए.
स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए मिट्टी का पीएच स्तर सात और पानी का स्तर 0.7 होना चाहिए. इस लिहाज से झारखंड की नमी वाले इलाके और यहां की दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है.
आधुनिक तरीकों का किया इस्तेमाल
बतौर दीपक छुट्टियों के दौरान हरियाणा, पुणे और महाबलेश्वर गये थे, तब उन्होंने सतारा और जलगांव में किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करते देखा. इसके बाद मल्किंग जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया और खेतों में ड्रिप सिंचाई के लिए मशीनें लगवायी.
दीपक का कहना है कि झारखंड की जलवायु काफी हद तक महाराष्ट्र जैसी ही है. इसके बाद ही उन्हें स्ट्रॉबेरी की खेती करने का ख्याल आया. लेकिन निराशा भी हुई, जब पता चला कि अधिकतर किसान स्ट्रॉबेरी के बारे में जानते ही नहीं हैं. उनके गांव में अधिकतर किसान चना, मूंग, मकई और सब्जी उगाते हैं. दीपक ने गांव के किसानों को बताया कि वह स्ट्रॉबेरी की खेती करने जा रहे हैं, तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया था.

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