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पिंडदान से श्राद्धकर्ता को भी होता है लाभ

आचार्य लाल भूषण मिश्र ‘याज्ञिक’21 सितंबर शनिवार काे सप्तमी तिथि का श्राद्ध अर्थात आठवें दिन का श्राद्ध 16 वेदी तीर्थ पर चंद्र पद वेदी से प्रारंभ कर गणेश पद सम्याग्नि पद, आवसथयाग्निपद दधीचि पद एवं कण्व पद छह वेदियाें पर संपन्न करें. शास्त्र विधान के अनुसार प्रथम वेदी पर पार्वण विधि से श्राद्ध करें तथा […]

आचार्य लाल भूषण मिश्र ‘याज्ञिक’
21 सितंबर शनिवार काे सप्तमी तिथि का श्राद्ध अर्थात आठवें दिन का श्राद्ध 16 वेदी तीर्थ पर चंद्र पद वेदी से प्रारंभ कर गणेश पद सम्याग्नि पद, आवसथयाग्निपद दधीचि पद एवं कण्व पद छह वेदियाें पर संपन्न करें.

शास्त्र विधान के अनुसार प्रथम वेदी पर पार्वण विधि से श्राद्ध करें तथा अन्य वेदियाें पर पिंडदानात्मक तीर्थ श्राद्ध करें. उक्त 16 वेदी तीर्थ का आधार धर्मशिला ‘गय’ असुर काे स्थिर करने के लिए स्थापित हुआ था. कंपित हाेता हुआ असुर काे भी वरदान प्राप्त था कि सभी तीर्थ सहित देवता व ऋषि निरंतर निवास करेंगे.

भगवान शंकर व विष्णु विविध स्वरूप से हमेशा रहेंगे. यहां किया हुआ तर्पण श्राद्ध अक्षय हाेगा. साथ ही श्राद्धकर्ता काे भी धन, आराेग्य एवं पुत्र आदि का लाभ हाेगा. उक्त गणेश पद से रूद्र लाेक, सम्याग्निपद से श्राद्धकर्ता काे यज्ञ का फल, आवसयाग्निपद से ब्रह्मलाेक, दधिचि पद से ब्रह्मलाेक एवं कण्व पद से ब्रह्म लाेक की प्राप्ति हाेती है. विष्णुपद से दक्षिण में स्थित दंडीबाग काे शास्त्र में चंपक वन कहा गया है. यहां पांडु शिला है. इस पर युधिष्ठिर अपने पिता पांडु का श्राद्ध किया था. शिला पर ही पिंडदान किया था.

इसे पांडु काे परम पद प्राप्त हुआ था. पांडु ने पांडवाें काे देह त्याग नहीं करके शरीर के साथ स्वर्ग जाने का आशीर्वाद दिया था.

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