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चमकीली होती सोने की चमक

सतीश सिंह आर्थिक विशेषज्ञ singhsatish@sbi.co.in सोने की चमक फीकी पड़ने का नाम नहीं ले रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत बढ़कर 1,500 डॉलर प्रति औंस के स्तर तक पहुंच चुकी है. भारत के वायदा बाजार में अक्तूबर का वायदा भाव 37,800 रुपये प्रति 10 ग्राम हो चुका है. सितंबर के पहले सप्ताह में […]

सतीश सिंह

आर्थिक विशेषज्ञ

singhsatish@sbi.co.in

सोने की चमक फीकी पड़ने का नाम नहीं ले रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत बढ़कर 1,500 डॉलर प्रति औंस के स्तर तक पहुंच चुकी है. भारत के वायदा बाजार में अक्तूबर का वायदा भाव 37,800 रुपये प्रति 10 ग्राम हो चुका है. सितंबर के पहले सप्ताह में मुंबई के हाजिर बाजार में स्टैंडर्ड सोने (.995 शुद्धता वाले) का भाव लगभग 37,500 रुपये प्रति 10 ग्राम था, जो वायदा बाजार से लगभग 300 रुपये कम है.

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एमसीएक्स) पर वायदा भाव अक्तूबर तक 39,000 रूपये प्रति 10 ग्राम के स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो दिसंबर के अंत तक एमसीएक्स पर 42,000 रूपये प्रति 10 ग्राम के स्तर तक पहुंच सकती है. भारत में सोने का कम उत्पादन होता है और वह सोने की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुई सोने की कीमत में आयी तेजी और सरकार द्वारा सोने के आयात पर शुल्क को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत करने के कारण बीते महीनों से सोने की कीमत में उछाल की स्थिति बनी हुई है. इस उछाल का एक बहुत बड़ा कारण रुपये के मूल्य में गिरावट आना भी है. वर्ष 2019 के 8 महीनों में सोने की कीमत में लगभग 21 से 22 प्रतिशत का उछाल आ चुका है.

अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार के खत्म होने की अभी संभावना नहीं है. इससे सोने की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है, क्योंकि अमेरिका इस जंग को जीतने के लिए डॉलर को दूसरी करेंसियों के मुकाबले मजबूत रखने की कोशिश कर रहा है. अगर रुपया कमजोर होकर 72 के स्तर पर आता है, तो सोने का भाव 40,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार कर सकता है.

सोने की कीमत में उतार-चढ़ाव पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति का भी प्रभाव पड़ता है. फेडरल रिजर्व ने जुलाई में ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है, जिसके कारण डॉलर में मजबूती आयी है और रुपये की कीमत में कमी. फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में कटौती करने से वैश्विक वित्तीय निवेशक सोने में निवेश को मुफीद मान रहे हैं, जिसके कारण भी सोने की कीमत लगातार बढ़ रही है.

सोने की मांग में कमी के बाद हाजिर बाजार में प्रति 10 ग्राम सोने पर 550 रुपये की छूट दी जा रही है. हाजिर बाजार की कीमत की तुलना में काफी कम कीमत पर बेचे जानेवाले तस्करी के सोने की वजह से भी हाजिर बाजार में छूट दी जा रही है.

कारोबारी आधिकारिक घरेलू कीमतों पर प्रति औंस लगभग 40 डॉलर तक की छूट दे रहे हैं. यह छूट अगस्त 2016 के बाद से सर्वाधिक है. बहुत से कारोबारी ग्राहकों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार और कम मेकिंग चार्ज की भी पेशकश कर रहे हैं.

मौके का फायदा उठाने के लिए कुछ कारोबारी और उपभोक्ता सोना बेच रहे हैं, जिससे बाजार में सोने की आपूर्ति बढ़ रही है. हालांकि, बहुत सारे निवेशक मंदी के माहौल में सोने में निवेश को सुरक्षित मान रहे हैं, क्योंकि मौजूदा समय में शेयर, रियल एस्टेट और म्युचुअल फंड आदि में सुस्ती का माहौल बना हुआ है.

इधर, चालू वित्त वर्ष में सोना 16 से 17 प्रतिशत रिटर्न के साथ सबसे अधिक रिटर्न देनेवाली निवेश परिसंपत्ति के रूप में उभरा है. निकट भविष्य में शेयर बाजार में भी सोने की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलने का कोई संकेत नहीं है.

जुलाई में भारत के स्वर्ण आयात में पिछले वर्ष के मुकाबले 55 प्रतिशत की गिरावट आयी और यह तीन वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गया. हालांकि, इससे देश का व्यापार घाटा कम करने और रुपये को मजबूत करने में मदद मिली है. दूसरे देशों की अपेक्षा भारत में सोने की मांग ज्यादा है. जून तिमाही में देश में सोने की मांग 23 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि वैश्विक स्तर पर इसकी मांग में केवल 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है.

आभूषणों की मांग बढ़ने की वजह त्योहारी एवं वैवाहिक सीजन है. विश्व स्वर्ण परिषद द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार इस साल जून तिमाही में सोने की मांग 12.6 प्रतिशत बढ़कर 213.20 टन हो गयी.

दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों की खरीद तथा स्वर्ण आधारित ईटीएफ में निवेश बढ़ने से जून तिमाही में सोने की वैश्विक मांग 8 प्रतिशत बढ़कर 1,123 टन पर पहुंच गयी.

विश्व स्वर्ण परिषद की जून तिमाही की गोल्ड डिमांड ट्रेंड्स रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की समान तिमाही में सोने की वैश्विक मांग 1,038.80 टन रही थी. इस दौरान केंद्रीय बैंकों की मांग 46.9 प्रतिशत बढ़कर 224.40 टन पर पहुंच गयी, जो पिछले साल की सामान्य अवधि में 152.8 टन थी. इस दौरान पोलैंड सोने का सबसे बड़ा खरीदार रहा. उसने आलोच्य तिमाही के दौरान 100 टन सोने की खरीदारी की, जबकि मामले में रूस दूसरे स्थान पर रहा.

सोने की कम खरीदारी करने से सोने की वैश्विक कीमतों में लगाम लग सकती है, लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि निवेशक सोने में निवेश को निवेश का सबसे बेहतर विकल्प मान रहे हैं.

वर्तमान में सोने की बढ़ती कीमत के लिए आयात शुल्क में बढ़ोतरी, सोने एवं मेकिंग दोनों पर जीएसटी का आरोपण, फेडरल रिजर्व द्वारा अपनायी जा रही नीति, घरेलू बाजार में सुस्ती, नीतिगत समस्याएं, अमेरिका और चीन के बीच चल रही कारोबारी जंग आदि जिम्मेदार हैं, लेकिन फिलहाल सोने की कीमत को बढ़ानेवाले कारकों के प्रभाव के कम होने या खत्म होने की संभावना न्यून है. इसलिए कयास लगाये जा रहे हैं कि आनेवाले महीनों में भी सोने की कीमत में तेजी का रुख बना रहेगा.

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